दिव्यांग पूरण सैनी
अंतराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस पर विशेष
दिव्यांग पूरण ने राष्ट्रीय व राज्य स्तर पर 16 गोल्ड, 5 सिल्वर व 2 ब्रांज जीते, जयपुर में हुआ सम्मान।
पिता के कैंसर के बाद पढ़ाई छुटी तो खेतों में काम कर पढ़ाई पूरी की, 6 भाई बहनों की जिम्मेदारी भी उठाई।
विभिन्न पुरस्कारों से मिलने वाले 19 लाख की स्कॉलरशिप के रूपऐ 2017 से आज तक नहीं मिले।
तिंवरी, जोधपुर। अंतराष्ट्रीय दिवस 3 दिसबंर को एक ऐसी छात्रा से रूबरू करवा रहे है जिसने अपने हौसलें व सपनों के आगे कभी हिम्मत नहीं हारी। दिव्यांग होने के बावजूद एक साधारण व्यक्ति के मुकाबले उसने अपने दम पर ना केवल राज्य स्तर बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर स्विमिंग व एथेलेटिक्स में गोल्ड मेडल हासिल किए।
तिंवरी के बिंजवाडिया गांव की दो बहनों को अंतराष्ट्रीय विकलांग दिवस के अवसर पर राज्य सरकार की ओर से विशेष सम्मान दिया गया। ये दोनों बहनें पूरण और निर्मला चैहान बीपीएल परिवार से है। दो वर्ष की उम्र से ही दाएं हाथ से पोलियों की वजह दिव्यांग होने का दंश झेलने के बाद भी पूरण ने कभी हिम्मत नहीं हारी। पूरण ने स्विमिंग में राष्ट्रीय स्तर पर गोल्ड मेडल जितने के साथ ही एथलेटिक्स में राज्य स्तर पर भी गोल्ड मेडल जीता। अभी तक पूरण ने कुल 16 गोल्ड मेडल, 5 सिल्वर व 2 ब्रांज मेडल जीते है। उसकी बहन निर्मला ने पैरा सीटिंग वॉलीबॉल में अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व करने के साथ राष्ट्रीय स्तर पर प्रथम स्थान प्राप्त किया।
साधारण परिवार से अपने दम पर नाम रोशन करने वाली दिव्यांग पूरण पुत्री रघुनाथराम ने स्विमिंग में राष्ट्रीय व राज्य स्तर पर गोल्ड, सिल्वर, ब्रांज मेडल हासिल किए। लेकिन दुर्भाग्य से 2017 से लेकर आज तक अलग अलग मेडल स्कॉलरशिप के कुल 19 लाख रूपए पूरण को अभी तक नहीं मिले। इसको लेकर अनेकों जनप्रतिनिधि कई बार मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन व मुख्यमंत्री कार्यालय में पत्र पेश भेज बकाया राशि के शीघ्र भुगतान की मांग कर चुके है लेकिन ये राशि बकाया ही है। 3 दिसबंर को अंतराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस पर पूरण व उसकी बहन निर्मला को राज्य सरकार की ओर से सम्मानित किया गया।
पिता को कैंसर, खेतों में मजदूरी कर पढ़ाई पूरी की :
पूरण के पिता रघुनाथराम खेतों में मजदूरी कर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे थे। पूरण के 5 बहनें व 1 भाई है। जिसमें उसके साथ एक और बहन भी विकलांग है। इस सबके बावजूद भी पिता सभी को पढ़ाते रहे। लेकिन पूरण जब 10वीं कक्षा में आई तो दुर्भाग्य से पिता को कैंसर की बीमारी हो गइ। सभी भाई बहिनों की पढ़ाई छूट गई। लेकिन पूरण ने हिम्मत नहीं हारी। खुद खेतों में मजदूरी कर अपने खर्च पर पढ़ाई की। उसने 12वीं में जिले की दिव्यांग की मैरिट में टॉप करते हुए पहला स्थान प्राप्त किया। जिसके बाद उसे गार्गी पुरस्कार व इंदिरा गांधी प्रियदर्शनी पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया। अब वह बीएड कर रही है साथ ही अपनी दूसरी बहनों व भाई की शिक्षा की ओर ध्यान देकर उन्हें भी पढ़ाई करवा रही है।