शिक्षिका गीता माली
प्रदेश की शिक्षिका गीता माली राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से हुई सम्मानित
- गीता माली ने अपनी तीन बीघा जमीन राजहित में विद्यालय के लिए की समर्पित।
- गीता माली ने महात्मा फूले व सावित्री बाई फूले के संघर्ष की याद को किया ताजा, कड़े संघर्ष से प्राप्त की अनेकों सफलताएं।
बाड़मेर। शिक्षक दिवस पर राजस्थान की एकमात्र बाड़मेर जिले के राजकीय शिक्षाकर्मी प्राथमिक विद्यालय सरूपोणी मालियों का बास सरकापार-बांदरा की प्रबंधक शिक्षिका गीता माली राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार 220 से 5 सितंबर को दिल्ली में सम्मानित हुई।
गीता माली ने जानकारी देते हुए बताया कि उन्होंने कक्षा एक से आठ तक की पढ़ाई गांव की बालिका विद्यालय से की। वो भी समाज के ताना- बाना से आगे की पढ़ाई की इच्छा जताई तो पिता ने मना कर दिया और कहा बेटी के लिए इतनी पढ़ाई बहुत है तो गीता ने अपने पिता को कहा भाईयों को पढ़ा रहे हो और मुझे घर का काम करने के लिए घर पर रख रहे हो तो पिता ने बताया कि लड़कियों को लड़के के साथ नहीं पढ़ा सकते है। पिता द्वारा लड़के लड़की में यह भेदभाव देखकर गीता दो साल तक परिजनों से रूठी रही।सन् 2000 में गीता की शादी कवास गांव के लक्ष्मणराम पुत्र रेवन्ता राम माली के साथ कर दी। जैसे ही गीता ससुराल आई तो गांव की महिलाएं कहने लगी कि बहू पढ़ी लिखी आई है देखते है घर पर कामकाज कैसे करेगी। ससुराल की लड़कियों से गीता ने पूछा तो बताया कि यहां की लड़कियां तो स्कूल जाती ही नहीं है। लड़के भी 12वीं तक पढ़कर काम धंधा करने लग जाते है। तब गीता ने मन ही मन सोचा अब मेरी पढ़ाई का क्या होगा?
फिर जैसे-तैसे पिताजी से पढ़ाई की जिद्द करके प्राईवेट से दसवीं पास की। 2023 शिक्षाकर्मी बोर्ड की टीम गीता के गांव पहुंची। बोर्ड की योजना दूरदराज गांव ढ़ाणियों में स्कूल खोलना था। टीम के साथ गीता के पिता भी थे। गीता को आगे पढ़ाने की जिद्द के आगे पिता ने ससुराल पक्ष से बात की तो जवाब मिला कि आपकी बेटी नौकरी करेगी तो बेटा चूल्हा-चौका करेगा क्या? टीम ने घर के दो लोगों को सरकारी नौकरी लगाने व मानदेय 1200 रूपये देने की बात कही तो जैसे तैसे गीता के ससुराल वालों ने गीता के पति के हिस्से की उनके ससुर रेंवताराम पुत्र आशु माली निवासी सरकापारा बांदरा खसरा संख्या 998/732 रकबा की तीन बीघा जमीन विद्यालय के लिए राजहित में दान की तब बोर्ड ने गीता को योजना में शामिल किया। गीता के पति व ससुर खेतीबाड़ी का काम करते है। गीता के एक लड़का व एक लड़की है। कार्यग्रहण का आदेश आते ही पेड़ के नीचे कक्षा एक चालू कर पढ़ाना शुरू किया तो 5 साल में नामांकन संख्या 75 हो गई। साथ साथ में गीता ने भी आगे पढ़ाई जारी रखी और सन् 2004 में 12वीं की परीक्षा दी परंतु अग्रेजी विषय पास नही कर पाई फिर अगले साल 12वीं कक्षा पास की और उसके बाद पढ़ने का तरीका बदला। घर व खेत का कामकाज करते समय प्रश्न उत्तर की छोटी-छोटी पर्चियां बनाकर दो किलोमीटर दूर से पाली लाते व जाते समय पढ़ती थी। परीक्षा के समय पीहर में जाकर परीक्षा देना।
सन् 2005 में बी.ए. प्रथम वर्ष पास की। उन दिनों सरकारी आदेश आया कि 12वीं पास वालों को पत्राचार से बीएसटीसी कराया जाएग तो गीता का मनोबल ओर बढ़ गया और पढ़ाई निरंतर जारी रखी। बीएसटीसी में बहुत समस्या का सामना करना पड़ा क्योंकि उसमें सफेद साड़ी वाली यूनिफॉर्म पहननी पड़ती थी। प्रशिक्षण सेंटर पर यूनिफॉर्म पहनना और वहीं बदलकर आना नहीं तो समाज कहता बहू को सफेद पहना दिया। इसी सत्र में 21 अगस्त 200 में कवास गांव में आई बाढ़ ने गीता की जिदंगी की रफ्तार में कोहराम मचा दिया। उस बाढ़ग्रस्त से कवास गांव के आसपास के लोगों की मृत्यु हो गई जिसमें 15 बच्चे गीता के विद्यालय के थे। इस दु:ख के कठिन समय में घरों और टेंट में गीता ने स्कूल चलाया। साथ ही पत्राचार से बीएसटीसी की पढ़ाई भी जारी रखी। बीएसटीसी करने पर सन् 2008 में साक्षात्कार द्वारा गीता को स्थाई कर्मचारी माना गया। सन् 2009 में गीता ने बी.ए. पास कर लिया और सन् 2011 में समाज को समझने के लिए समाजशास्त्र में एम.ए. किया।
समाजशास्त्र विषय में अज्ञानता, अंधविश्वास, कुरीतियों, रूढ़िवाद को गीता ने पढ़ा और समझा। उन बेड़ियों से लड़ने के लिए गांव की महिलाओं व लड़कियों को पढ़ाने का काम किया। साथ ही गीता ने तीन विषयों में एम. ए. कर लिया। विद्यालय में कमजोर वर्ग की लड़कियों को गीता ने पढ़ाया जिसमें एक लड़की तृतीय श्रेणी की शिक्षिका है जो जसोल में अध्ययन करा रही है।
आज गीता के गांव की महिलाएं आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, आशा सहयोगिनी है। बालिकाएं बी.ए. तक पढ़ाई कर रही है। एक घर से तीन महिलाएं सरकारी नौकरी कर रही है। कभी वर्षो पहले लड़कियों को पढ़ाया नहीं जाता था आज पढ़ रही है तो हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर रही है। गीता की स्कूल की गतिविधियों को देखकर शिक्षा विभाग द्वारा तहसील व जिला स्तर पर सम्मानित भी किया जा चुका है।
बहिन गीता माली (प्रबोधक ) ने संघर्ष व अभावो की जिंदगी जीते हुए शिक्षाकर्मी से अपना सफर शुरू किया ओर प्रबोधक केडर पर चयन हुआ ओर आज राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित हेतु चयनित होने पर पुरे प्रबोधक वर्ग मे खुशी की लहर है बहिन गीता जी ने प्रबोधक संघ का पुरे देश मे मान सम्मान बढ़ाया है प्रबोधक संघ को बहिन गीता जी पर नाज है