प्रिया सैनी की दास्तां क्राइम सिटी को आर्ट सिटी में बदला

प्रिया सैनी की दास्तां क्राइम सिटी को आर्ट सिटी में बदला

ग्रामीण क्षेत्रों में विपरीत परिस्थितियों में महिलाओं के उत्थान हेतु कार्य कर माता सावित्री के सपनों को पूरा करती प्रिया सैनी, महिलाओं को मुहैया करा रहीं मुफ्त सेनेटरी नेपकिन

मुजफ्फरनगर। कोई बदलाव तब आता है जब आपको समस्या मालूम होती है। मुझ तक समस्याएं पहुंचाई अखबार ने। गांव की एक लड़की के लिए अखबार पढ़ना किसी प्रिविलेज से कम नहीं। अव्वल परिवारों में सुबह का वक्त लड़कियों के लिए किचन में सिमटकर रह जाने का होता है, लेकिन मैं सुबह स्कूल जाने से पहले अखबार जरूर पढ़ती। घर में 2004 से अखबार आ रहा है और जबसे मैंने होश संभाला तबसे अखबार पढ़ रही । कहने को पांच से 10 रुपए का अखबार किसी के लिए रद्दी तो किसी के लिए आउटडेटेड मीडियम, लेकिन मेरे लिए किस्मत का दरवाजा खोलने वाला बना । इसी से मुझे जानकारी मिली और मेरी किस्मत बदली । अब सरकारी संगठन भी मुझे बतौर वक्ता आमंत्रित करते हैं और नाम के बाद समाजसेविका लगाते हैं। ये शब्द हैं मुजफ्फरनगर की प्रिया सैनी के ।

23 साल की प्रिया सैनी बातचीत में कहती हैं, ‘मैं स्कूल के समय से अखबार पढ़ती आ रही हूं। इसका हर पन्ना मुझे कुछ नया ज्ञान देता है। इसी से मुझे मेरे बघरा क्षेत्र के बारे में मालूम होता है। इसी अखबार से मालूम होता है कि मेरे गांव मुरादपुरा में महिलाओं, बच्चों की स्थिति दयनीय है । मुजफ्फरनगर क्राइम सिटी के नाम से जाना जाता है। नशा चरम पर है। यह सिटी पानी के मामले में डॉर्क जोन में है। अपने क्षेत्र के बारे में यह जानकारी मालूम होती है तो लोगों की मदद कर पाती हूं।’

पहली बार जीते 25 हजार रुपए

घर में पिता जी और बाकी लोग भी अखबार पढ़ने में दिलचस्पी रखते हैं, लेकिन मुझे मेरा ज्ञान केवल अखबार के पन्नों में संहेजकर नहीं रखना था उसे लोगों तक पहुंचाना था। 2015 में अखबार से ही एक प्रतियोगिता के बारे में मालूम हुआ और राष्ट्रीय स्तर की भाषण प्रतियोगिता में पहुंच गई। ब्लॉक स्तर पर प्रथम स्थान मिला। फिर राज्य स्तर पर गई और पहली बार मुजफ्फरनगर के मुरादपुरा गांव से निकलकर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ पहुंची, जहां भाषण प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया और 25 हजार रुपए जीते। ये सबकुछ परिवार के सपोर्ट से कर पाई, क्योंकि अखबार पढ़ने की आदत मुझे

घर से पड़ी। ये मेरी जिंदगी की पहली कमाई थी जिसे बटुए में ऐसे सहेजकर रखा जैसे मां मेरी शादी के लिए गहने संजोती है। इस अमाउंट को जीतने के बाद पूरे गांव की हिरोइन बन गई। जो लोग पिता जी को ताने मारते थे ‘बेटी को सिर पर चढ़ा लिया है। उसे उसकी हद में रखो वही लोग अपनी बेटियों को मेरे पास लेकर आते। अब मैं उनकी बेटियों के लिए आदर्श थी। एक गांव में किसी लड़की का एमए तक पढ़ लेना ही बहुत बड़ी बात होती है। फिर मैंने तो इनाम जीतने और अपनी भाषण कला को दिखाकर रकम जीती। ये पहली कामयाबी थी। अब गांव में लड़कियों के पेरेंट्स कहते हैं कि प्रिया जैसा बनो ।

मुजफ्फरनगर को आर्ट सिटी बनाने का है लक्ष्य

दूसरी कामयाबी भी बाहें फैलाएं खड़ी थी। 2016 में चौधरी चरणजीत सिंह विश्वविद्यालय से बीए खत्म किया और यूनिवर्सिटी टॉपर बन गई। अब मेरी और मेरे परिवार की खुशी की कोई सीमा नहीं थी । बचपन से आर्टवर्क में दिलचस्पी थी। कॉलेज के दौरान ही दीवारों पर पेंटिंग बनाने का काम किया। हमारे कॉलेज के साथ-साथ कई और कॉलेज शामिल हुए। हमारा उद्देश्य था मुजफ्फरनगर को क्राइम सिटी से आर्ट सिटी में बदलना। उस समय हर दीवार ऐसे सजी थी जैसे दिवाली पर अयोध्या । इन दीवारों पर घरेलू हिंसा, दहेज प्रथा, भ्रुण हत्या, नशा जैसे ज्वलंत मुद्दों पर अवेयरनेस के रंग रंगे ।

महिलाओं के पास नहीं होते सेनेटरी नेपकिन खरीदने के पैसे

जबसे अखबार पढ़ना शुरू किया तबसे एक सोशल वर्कर मेरे भीतर पलना शुरू हुआ । जब बड़ी हुई तो ये सोशल वर्कर बाहर निकला और महिलाओं की मदद करने उनके दरवाजे पर पहुंच गया। कॉलेज में भी कई मुद्दों पर डिबेट करती रहती थी। 2016 के बाद दो साल पूरे पढ़ाई पर दिए और ये मेहनत भी रंग लाई और इस बार फिर यूनिवर्सिटी टॉप किया। 2019 में राष्ट्रीय युवा महोत्सव में गई। ये जानकारी सोशल मीडिया से मिली। मूर्ति कला में उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व करने के लिए मैं उस महोत्सव में गई ।

इस जगह मेरी मुलाकात प्रतिष्ठा युवा संगठन के मोहित से हुई। इन्हें मैंने अपने काम के बारे में बताया और भैया (मोहित) ने मेरा मार्गदर्शन किया और बताया कि मुझे लड़कियों की एक टीम बनानी चाहिए जो पूरे मुज्जफरनगर में महिला सशक्तिकरण की मशाल बनें। मेरे क्षेत्र में पेड़ बहुत हैं और इतनी ही महिलाओं की समस्याएं । उस महोत्सव से आने के बाद मैंने वृक्षारोपण नहीं महिलाओं को मुफ्त सेनेटरी नेपकिन बांटने शुरू किए। इस काम को इसलिए चुना क्योंकि पीरियड से हर महिला हर महीने जूझती है, लेकिन हाइजीन के नाम पर इनको कोई सुविधा नहीं मिलती । उन्हें सेनिटरी नेपकिन के बारे में मालूम है, लेकिन उसे खरीदने के लिए पैसे नहीं। मैंने मुजफ्फरनगर की महिलाओं को बहुत नजदीक से देखा है। उन्हें महीने में मात्र 100 रुपए मिलते हैं, जिनमें वे अपनी मूलभूत जरूरतें तक पूरी नहीं कर पातीं |

मनीष गहलोत

मनीष गहलोत

मुख्य सम्पादक, माली सैनी संदेश पत्रिका