राजनीति में महिलाओं की भागीदारी एवं सामाजिक चेतना

समाज की जनसंख्या की आधी जनसंख्या महिलाओं की हैं। महिलाओं की क्षमताओं का उपयोग किए बगैर आदर्श समाज की नींव नहीं रखी जा सकती। महिलाओं की आने वाली पीढ़ी शिक्षा और स्वतन्त्रता के बल पर सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, व्यापारिक सभी क्षेत्र में आकाश की बुलंदियाँ छुएगी और आने वाले समय में सार्थक भूमिका अदा करेगी। अतः महिलाओं को अपनी अस्मिता पहचाननी होगी, अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना होगा, इन पर उनको अपना निर्णय लेना है और उन्हें अपना व्यवसाय चुनने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए।

आज महिलाएँ शिक्षा, नौकरियों, सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक जागृति में पुरुषो से बहुत पीछे हैं। आज सती के नाम पर हत्या, विधवाओं का शोषण, कन्याओं की नीलामी, यौन शोषण, चरित्र हनन, दहेज हत्याएँ व उत्पीडन, बलात्कार, अपहरण, बाल-विवाह, पर्दा-प्रथा, अशिक्षा, अन्धविश्वास आदि कई तरह के अत्याचार हो रहे हैं। इनके खिलाफ सभी आवाज उठा रहे हैं। नारी-शिक्षा, स्वतन्त्रता व राजनीति में भागीदारी के बिना महिलाओं को अधिकार और सामाजिक न्याय नहीं मिलेंगे।

कई आदर्श नारियों ने देश की नारी में संघर्ष और बलिदान, त्याग की अदम्य क्षमता दिखाई है। इनमें जीजाबाई, महारानी पद्मिनी, गोराधाय, झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई, रानी एलीजाबेथ, सावित्री बाई फूले, इन्दिरा गाँधी, मदर टेरेसा आदि आदि प्रमुख हैं।

19 वीं शतब्दी के प्रारम्भ में न्यूयार्क में महिलाएँ संगठित होकर अपने अधिकारों के लिए विरोध प्रदर्शन कर सडकों पर उतर आई तथा 8 मार्च 1908 को प्रथम बार अन्तर्राष्ट्रीय महिला सम्मेलन कोपैन हेगन डेनमार्क में किया जिसमें समान अधिकारों, समान मजदूरी, मताधिकार के संघर्ष का बिगुल बताया। अब महिलाएँ संगठित होकर हर क्षेत्र में अपने अधिकारों को प्राप्त करने का प्रयास कर रही हैं।

जगह-जगह महिला संगठन आगे आ रहे हैं। हाल में मध्यप्रदेश में रूद्र सागर प्रांगण, चारधाम मन्दिर के सामने उज्जैन में विराट महिला सम्मेलन संयुक्त माली सैनी समाज उज्जैन के तत्वावधान में रविवार 20 मई 2001 को सम्पन्न हुआ। इस सम्मेलन में श्रीमती पुष्पलता लिखीराम कावरे, विधायक अध्यक्ष मध्यप्रदेश माली सैनी महासभा, श्रीमती हर्षराज देवड़ा, राष्ट्रीय कांग्रेस महामन्त्री डॉ. प्रेमलता माली सैनी मरार समाज अध्यक्ष भोपाल, मंजू रामी उज्जैन, कुमरी ईश्वरी बाला महाजन, श्रीमती कंचन कौर, श्रीमती गीतारामी, डॉ. छाया सैनी, श्रीमती सोनू सोनेल, श्रीमती चम्पाबाई रामी इन्दौर आदि व मध्यप्रदेश के मालवा, निभाड विन्ध्य, छत्तीसगढ़ व महाकौशल आदि क्षेत्रों व अन्य प्रदेशों की हजारों महिलाओं ने भाग लिया। उन्होंने संगठन व अधिकारों के लिए स्वतन्त्र होकर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि उच्च जातियों की राजा-महाराजा की रानियाँ घुंघट (पर्दा), हवेलियाँ, महल छोड कर आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक क्षेत्रों में आगे आ रही हैं अतः पिछडे वर्ग की महिलाओं को भी हिम्मत कर बेहिचक आगे आना है। सभी जगह की कुर्सियों पर बैठना है अन्यथा ये कुर्सिया भी खाली रहेगी, और हमें पश्चाप करना पडेगा।

आधुनिक नारी शिक्षा व स्वतन्त्रता के बिना राजनीति में सार्थक भूमिका अदा नहीं कर सकेगी। नारी को आगे बढने का पर्याप्त अवसर पाने के लिए अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना चाहिए।

नारी का शिक्षित होना अति आवश्यक है। इससे उसके ज्ञान व योग्यता का विकास होता हैं, आत्म बल बढ़ता हैं, शक्तिशाली बनती हैं, अपना भला बुरा समझ सकती हैं। किसी से ठगी नही जावे, गुमराह नहीं होगी, उत्तर देने में पीछे नहीं रहेगी, अपने हित के लिए अन्याय, अत्याचार के खिलाफ संघर्ष कर सकती हैं। निर्भय होकर कार्य करती हैं, किसी के सहारे व संरक्षण की आवश्यकता नहीं पड़ती, निर्णय खुद कर सकती है। वर्तमान में बोलना, रहना, चलना, फिरना कार्य करने की क्षमता अर्जित करने के साथ कानून कायदे समझने, सुचारू रुप से कार्य कर सकने के लिए उसे अस्मिता पहिचाननी होगी।

स्वतन्त्रता के बिना वे कार्य नहीं कर सकती, निर्णय खुद नहीं कर सकती हैं, उन्हें कार्य करने का मौका देना हैं। माता-पिता, सास-ससुर, पति आदि के दबाव, बन्दिश तथा अविश्वास होने से आगे नहीं बढ सकतीं। व्यवसाय चुनने व निर्णय लेने में स्वतन्त्रता होना जरूरी है। पत्नी उच्च अधिकारी, सरपंच, मन्त्री आदि हैं उसे खुद को कार्य करना है। ये पद उसकी योग्यता से मिले हैं। उसे वहाँ स्वतन्त्र निर्णय लेना होगा। पति या अन्य उसमें राय दें, रुकावट डाले यह उचित नहीं हैं।