सैनिक क्षत्रियकुलों की खांपें

परमार ( पंवार )

परमार ( पंवार ) बौद्ध धर्म स्वीकार करने के पूर्व चन्द्रवंशी थे। उदयपुर, देलवाड़ा और अचलेश्वर आदि के परमार विषयक शिलालेखों से ज्ञात होता है कि परमारों की उत्पत्ति अग्नि से हुई लेकिन वास्तविकता यह है कि उन्होंने अग्नि को साक्षी बनाकर अपना धर्म परिवर्तित किया था। परमारों का मूल स्थान आबू के आसपास था। ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर उनका राज्य उज्जैन से लगभग 70 मील दक्षिण में नर्मदा तक फैला हुआ था। पश्चिमी राजपूताना में ई. सन् 400 के लगभग नागवंशियों के राज्यों पर परमारों ने अधिकार किया था। इनका राज्य मध्यप्रदेश (मालवा), बागड़ प्रदेश, आबू प्रदेश, भीनमाल, जालोर व बाड़मेर क्षेत्र पर था।

परमार वंश का धरमीवराह किराडू का शासक था। उसके वंशज छहाड़ का पुत्र सांखला था। उसके वंशज सांखला कहलाये। सांखला के पुत्र वैरसी ने रूणेचा पर अधिकार किया था। उसके वंशज रूणेचा सांखला कहलाये। पंवारो के नख हैं-धोकरिया, सांखला, रूणेचा।

चाहमान ( चौहान )

चौहान सूर्यवंशी हैं। डॉ. दशरथ शर्मा ने चैहानों को वत्सगोत्री ब्राह्मण बतलाया है लेकिन डॉ. सत्यप्रकाश ने लिखा है कि उस समय क्षत्रिय भी अपने पुरोहित का गोत्र धारण कर लेते थे। अतः यह कहा जा सकता है कि चौहान भी ब्राह्मणों के वत्सगोत्र में रहे होंगे। क्षत्रियों में गुरूगोत्र और पुरोहित गोत्र अपनाने की परम्परा रही है। हरपालिया (बाड़मेर जिला) के वि.सं. 1346 के कीर्तिस्तम्भ अभिलेख के अनुसार चौहानवंश में विजयसिंह नामक राजा हुआ। वि.सं. 1377 के अचलेश्वर के शिलालेख में चौहान आसराज का सूर्यवंशी बतलाया गया है। जयानक के ‘‘ पृथ्वीराजविजय’ ‘ में भी चौहानों को सूर्यवंशी रघु के कुल में बतलाया गया है। अतः कहा जा सकता है कि चौहान सूर्यवंशी हैं। बिजोलिया का शिलालेख इनका मूल स्थान को हिच्छत्रपुर(सांभर) बतलाया है तो ‘‘ पृथ्वीराज विजय’ ‘ हम्मीर महाकाव्य सूरजनचरित्र आदि में इनका मूल स्थान पुष्कर उल्लिखित किया गया है।

चौहान वंश एक अत्यन्त ही महत्वपूर्ण तथा यशस्वी वंशों में से एक था। उत्तरी भारत में प्रतिहारों के साम्राज्य के पतन के पश्चात् चौहान वंश ही विशाल साम्राज्य की स्थापना कर प्रमुख शक्ति बन गया था। कुछ लेखकों के मत से चौहान शाकम्भरी सपादलक्ष प्रदेश में रहते थे, जिनके आधिपत्य में सवा लाख गाँव थे। यह क्षेत्र जांगल देश भी कहलाता था। इस वंश के वासुदेव ने ई.सन् 551 में सांभर मेंअपना राज्य स्थापित किया। इसी वंश के अजयराज (1105-1130) में अजमेर नगर बसाया। उसके पुत्र अर्णोराज (1130-1150) ने तुरूष्कों को अजमेर के निकट हराकर उस स्थान पर आनासागर नामक झील निर्माण किया। ‘‘ पृथ्वीराजविजय’ ‘ में लिखा है कि ‘‘ यदि वह मुसलमानों को न हराता तो यहाँ के मंदिरों का अस्तित्व ही मिट जाता।‘‘ इसी वंश के पृथ्वीराज तृतीय (1178-1192) ने 1191 में मुहम्मद गौरी को तराईन के युद्ध में बुरी तरह से हराया, लेकिन हिन्दूशास्त्रों के अनुसार भागती मुस्लिम सेना का पीछा न कर उसे सुरक्षित स्थान पर जाने दिया। यह उदारता हिन्दू-स्वाधीनता के लिए दुःखदायी सिद्ध हुई। मुहम्मद गौरी ने 1192 में चुने हुए तुर्क, ताजिक तथा अफगान सवारों की सेना को अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित कर पृथ्वीराज की सेना को धोखा देकर रात्रि में अचानक आक्रमण कर हरा दिया और पृथ्वीराज को मौत के घाट उतार दिया।

भारतीय इतिहार के पृथ्वीराज चौहान की गणना वीर, शौर्यशाली तथा विजेता के रूप में महान् हिन्दू सम्राटों में की जाती है। वह मध्यकालीन भारतीय इतिहास से शक्तिशाली शासकों में था। वह भारत का अंतिम हिन्दू सम्राट् था। उसके पतन के बाद यहाँ प्रथम बार मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना हुई।

मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना के पश्चात् यहाँ क्षत्रियों, जो सैनिक रूप से देश की सुरक्षा के लिए सदैव तैयार रहते थे, की सेना का अपार विघटन हो गया। सेना टूट जाने पर हजारों सैनिक बेकार हो गये और उन्होंने अपनी आजीविका के लिए अपनी योग्यता के अनुसार नाना प्रकार के नये धन्धे अपना लिये। इस प्रकार तराईन के दूसरे युद्ध(1192) के दूरगामी प्रभाव पड़े। बाद में 1194 में मुहम्मद गौरी ने कन्नौज के जयचन्द्र नामक स्थान पर हराया। गाहड़वाल सेना पराजित हुई और जयचन्द्र मारा गया। आक्रामकों ने उसके बाद बनारस को लूटा और वहाँ के 1000 मन्दिरों को ध्वस्त कर उनके स्थान पर मस्जिदें बनवा दीं। इस प्रकार चन्द्रावर युद्ध का परिणाम भारत के विरूद्ध पुनः निर्णायक रहा। तराईन क युद्ध व चन्द्रावर के युद्ध के पश्चात् क्षत्रियों का जो पतन आरम्भ हुआ, वह आगे भी चलता ही रहा। आज विभिन्न जातियों में क्षत्रियों के जो विभिन्न गोत्र पाये जाते हैं, वे सब उन्हीं क्षत्रियों के वंशज हैं जिन्होंने अपनी सुविधा के अनुसार आजीविका अपनाते हुए भी अपने गोत्र अपनाये रखे। वास्तव में वे मूल रूप से क्षत्रिय ही है।

उस समय अजमेर के निकट बागवानी से आजीविका अपनाने वाले क्षत्रियों ने पुष्कर तीर्थ पर माघ सुदी 7 वि.सं. 1257 ( शुक्रवार 12 जनवरी 1201 ) को एक सभा आयोजित की जिसकी अध्यक्षता अजमेर के चौहान कुसुमा के पुत्र महादेव द्वारा की गई।

चौहानों के नख हैं- अजमेरा, निरवाण, सींघोदिया, जंवूरिया, सोनिगरा, बागड़िया, इन्दौरा, गढ़वाल, पीलकनिया, खंडोलिया, भवीवाला, मकडाणा, कंसूभीवाल, बूभणा, सतरावल, सेवरिया, जमलापुरिया, भराडिया, सांचोरा, बानलेचा, जेवरिया, जोजावरिया, खावरिया, वीरपुरा, पाथरिया, मंडोवरा, अधूंध्या सुधरवा, किरोड़वाल, किरमी, बडखेडा, मनावस्या और देवड़ा।