माली जाति का प्रमाणिक इतिहास

राजपूत माली

ये मारवाड़ी में बहुत ज्यादा हैं। इनके पूर्वज शहाबुदीन, कुतुबुदीन, शमशुदीन, गयासुदीन और अलाउदीन आदि दिल्ली के बादशाहों से लड़ाई में हारकर अपनी जान बचाने के लिए राजपूत से माली बने थे। उनका माली बनना पृथ्वीराज चौहान का राज्य नष्ट होने के बाद शुरू हुआ था। सवंत् 1249 में पृथ्वीराज चौहान और उनकी फौज के जंगी राजपूत शहाबुदीन गौरी से लड़कर जब मारे गये और उनके हाथों से दिल्ली अजमेर का राज्य छूट गया तो उनके बेटे पोते जो तुर्कों द्वारा लश्कर में पकड़े गये, वे अपना धर्म छोड़ने के सिवाय और किसी तरह अपना बचाव न देखकर मुसलमान हो गये। वे गोरीपठान कहलाते हैं।उस वक्त बादशाह के एक माली ने कुछ राजपूतों को माली बताकर अपनी सिफारिश से उन्हें छुड़ा दिया। बाकी लोग पकड़े और भ्रष्ट किये जाने के भय से हथियार बाँधना छोड़कर इधर-उधर भागते और दूसरी कोमों में छुपते रहे। उस हालत में जिसको जिस-जिस कौम में पनाह मिली, वह उसी कौम में रहकर उसका पेशा करने लगा। ऐसे होते-होते बहुत से राजपूत माली बन गये। नानूराम कहता है कि उनको कुतुबुदीन बादशाह ने जबकि वह अजमेर की तरफ आया था, संवत् 1256 के करीब अजमेर और नागौर के जिलों में बसने और खेती करने का हुक्म दिया। ये माली भी गौरी माली कहलाते हैं।

इस नियमों के आगे भाटों को सगाई ब्याव और मौसर में देने की कलमें हैं। अंत में यह लिखा है कि ‘‘ सारा जणा सोगनखाय, राजपूत कुलछोड़ मालीकुल होने कही कि बादशाह शहाबुदीन गौरी म्हाने माली कीना सो हमें इण लिखतरे उपर लिखी हुई मरजादांरे म्हारों कुलचालसी ने जो कोई म्हारे जाया जामता इण मरजादने अलोपसी तो चोमोतर (74) गायां मारियाँरों पाप लागसी नै श्रीठाकुरजी सूं गंगजीसूं बेमुख होसी इण लिखत मूजबचालसी संवत् 1257 माह सुद 7’ ‘

कवत
राजा पृथ्वीराज गौरी शाह बाशाह। सप्रसत मालीयात मिल बांधी मरजाद।।1।।
कुसमारों महादेव अजमेरों चहूआन मुकदम। इतरी करकम बरताई आद।।2।।
प्रथम बील ब्यास ब्राम्हण रा बेटा। राजों रतनो थरप्या राव।।3।।
कनकजनेउ दीनी परी। पोथीदे पूजिया पा।।4।।
स्वाल कपटी आदिकर सगपन। औरपटीसूं की नोऐब।।5।।
भाभी पलेलगावे नहीं भोले। इतरोपंचां कियो कतेव।।6।।
मद्य सांसरी फिरी मनाई। फुलमाली कियो फरे।।7।।
सांची कहूं कानदे सुणजों। इतरों लिखत हुओं अजमेर।।8।।
भाट धनी दोनों मिल भेला हाथजोड़ थरप्या जगदीस।।9।।
साढी चवदेहजार गोत मलयातने मटराजेरतने दी अमर असीस।।10।।

इस पंचायत में गांव-गांव के माली बुलाये गये थे। महादेव के पास बाप-दादों की दौलत बहुत थी जिससे उसने सबक मानमनवार की और उनमें जो-जों राजकुली निकले, उनको अपने शामिल लिखत लिखने मेंले लिया। तीन राजकुली माली परमारया पडियारया और सोलंकी जाति के लिखत लिखे पीछे जालोर से आकर शामिल हुए थे सो इस पहिचार के वासते उनकी औरतों का नाक छिदाना बदस्तुर बहाल रखा। फिर यह राजपूत माली दूसरे मालियों को रूखसत करके नागोर में आकर बसे। सिर्फ महादेव अजमेर में रहा। उसकी औलाद वहीं चैधरी है। खेता माहुर, जिसको इन्होंने मथुरा से बुलाकर मुरब्बी बनाया था और जिसके दस्तखल लिखत में महादेव के पीछे हैं, इनमें मिल गया और महादेव ने बादशाह से अर्ज करके पुष्करजी के पास उसको जमीन दिला दी। फिर वहाँ से उसकी औलाद मारवाड़ में आई। राजकुली माली खेता की औलाद के माहुरमालियों को अपने से बड़ा समझते हैंऔर उसके सिवाय और किसी माहुरमाली में सगपन (सगाई सम्बन्ध) नहीं करते।