भाग्यश्री बानायत (माली)

भाग्यश्री बानायत (माली)

विशम परिस्थितियों में पढ़ कर दृढ़ इच्छा शक्ति से आई.ए.एस. बनी, युवाओं के लिए प्रेरक व्यक्तित्व

विश्व में कोरोना के कारण अभूतपूर्व हालात बने हुए है। इसके पहले भी विविध देशों में विविध प्रकार की संक्रमित बीमारियाँ, नैसर्गिक आपदा, मानव निर्मित आपदा आयी है, लेकिन उसका असर समूचे विश्व में नहीं था। अभी हम सभी ऐसी स्थिति से गुजर रहे है, जिसका सामना किस तरह से करना है, यह कोई भी नहीं जानता। इसलिए समूचे विश्व के सामने यह एक चुनौती है।

सरकार और विविध यंत्रणाओं की ओर से चेतावनी के अलग-अलग उपाय किए जा रहे है। भारत सरकार ने 24 मार्च 2020 से लॉकडाऊन का निर्णय लिया है, जिसका कड़े रूप से क्रियान्वयन भी हो रहा है। इन हालातों में कुछ अधिकारी बहुत ही साहस एवं नई कल्पनाओ से इस निर्णय का क्रियान्वयन कर रहे है। अपने कार्य से आम जनों को राहत पहुंचा रहे है।

भारतीय संस्कृति में रेशम वस्त्र को बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। इसलिए इस वस्त्र की मांग भी अधिक रहती है। किसानों के लिए रेशम की खेती किफायती साबित हो रही है। दुरदर्शन में रहने के दौरान ‘‘आमची माती,आमची माणसं ’’ (मराठी) इस कार्यक्रम में हमने रेशम की खेती पर एक डाकुमेंट्री बनाई थी।

रेशम की खेती का, रेशम उद्योग का विकास हो, इसके लिए महाराष्ट्र सरकार ने रेशम संचालनालय की स्थापना की । इस संचालनालय का मुख्यालय नागपुर में है। वर्तमान में रेशम संचालनालय के संचालक पद पर भाग्यश्री बानायत-धिवरे कार्यरत है।

लॉकडाऊन शुरू होने के कारण महाराष्ट्र के रेशम किसान संकट में आए है। सरकार ने रेशम को पीक करके अभी तक घोषित नहीं किया है। इसे अभी भी जीवनावश्यक वस्तूओं की सूची में स्थान नहीं मिला है। इसलिए लॉक डाऊन के चलते अब तैयार रेशम कारखानों में कैसा पहुंचाया जाए, यह एक बड़ी समस्या किसानो के सामने थी। अगर समय पर कारखानों तक यह रेशम नहीं पहुंचाया गया, तो किसानों को बहुत नुकसान उठाना पड़ता।

रेशम संचालक भाग्यश्री बानायत-धिवरे ने परिस्थिति की गंभीरता को पहचनाकर सरकार से संपर्क साधा और रेशम किसानों को लाइसेन्स उपलब्ध कराए। जिससे किसानों का सभी रेशम संबंधित कारखानों में पहुँच सका। इस बात से किसानों को बहुत राहत मिली है और वे आर्थिक नुकसान से भी बच पाये है। आगे जब भी लॉक डाऊन खुलेगा तब कारखानों को आवश्यक कच्चा माल उनके पास ही उपलब्ध होने से वे तुरंत ही काम शुरू कर सकेंगे ।

भाग्यश्री घर में कोई भी पाशर्वभूमी नहीं होते हुए, ग्रामीण क्षेत्र की रहते हुए भी वे भारतीय प्रशासकीय अधिकारी बन सकी। उनकी प्रारंभिक शिक्षा अमरावती जिले के हिवरखेड स्थित जिला परिषद स्कूल में हुई। आगे मोर्शी स्थित महाविद्यालय से बीएससी की शिक्षा पूरी की। माँ तुलसाबाई, पिता भीमराव दोनों भी शिक्षक होने से उनके घर में शैक्षणिक वातावरण था। इसलिए बीएससी के बाद भाग्यश्री ने भी बी.एड किया, एक साल एम.एस.सी भी किया। लेकिन उस बीच उनके पिता का दिल का दौरा पड़ने से निधन हुआ। जिससे उनका परिवार बिखर गया।

ऐसे हालातों में रिशतेदारों ने साथ देना जरूरी था। लेकिन जायदाद को लेकर उनकी पिता की मृत्यु के बीस दिन पूरे भी नहीं हुई थे की, भाग्यश्री को माँ के साथ कोर्ट में हाजिर होना पडा। इस घटना ने उन्हें संघर्ष का एहसास कराया। अब उन्हें आर्थिक रूप से सक्षम होना बहुत जरूरी था।

अमरावती महानगरपालिका में उन्हें शिक्षा विभाग में विषय विशेषज्ञ के रूप में काम मिला। माँ को संभालते हुए, घर का काम करके वे गाँव से अमरावती आना-जाना करती थी। इसी बीच वे प्रतियोगी परीक्षाएं भी देने लगी।

अमरावती में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी की कोई संस्था तथा निजी कोचिंग क्लास नहीं थे। इसलिए उन्होंने स्व-अध्ययन पद्धति पर जोर दिया। पिता का नहीं होना, माँ की बीमारी, खुद की भी कुछ स्वास्थ्य समस्याएँ इन सभी पर मात कर वे मेहनत कर रही थी। उनके इन प्रयासों को सफलता मिलने लगी और वर्ष 2005 में प्रकल्प अधिकारी, 2006 में तहसीलदार, 2007 में सहायक आयुक्त, विक्रीकर विभाग ऐसे महाराष्ट्र लोकसेवा आयोग की प्रतियोगी परीक्षाओं में उनका चयन होता गया। लेकिन वे इसी पर संतुष्ट नहीं थी, उन्हें और आगे बढ़ना था।

फिर वर्ष 2007 में नायब तहसीलदार व प्रकल्प अधिकारी, शिक्षण विभाग इन दोनों में क्लास-2 के पद पर उनका चयन हुआ। किस पद पर पदस्थ होना चाहिए, इस पर उन्होंने अपने माँ से पूछा तो माँ ने जबाव दिया-तुम्हें जो अच्छा लगे, तुम वहीं करों। हालांकि भाग्यश्री को लग रहा था की, माँ शिक्षा में कार्यरत थी, इसलिए वे उन्हें उसी का चयन करने की सलाह देगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। भाग्यश्री को आई ए एस ही होना था। इसलिए उन्होंने दोनों पद छोड़ दिये। एक ओर अनुपस्थिति से उनकी अमरावती महानगरपालिका की नौकरी भी छूट गई और दूसरी ओर उन्होंने दोनों पद अस्वीकार कर दिये थे ।

उनके हाथ में अच्छे पद की नौकरी थी, लेकिन अब वे इसे खो चुकी थी। वह डटकर केंद्रीय लोकसेवा आयोग की परीक्षा देती रही। वर्ष 2010 में कुछेक की अंको से उनका चयन हो न पाया। लेकिन इस असफलता से खुद को संभालते हुए, वर्ष 2011 में उन्होंने कड़ी मेहनत की और वर्ष 2012 में उनका भारतीय प्रशासकीय अधिकारी के रूप में चयन हुआ। परीक्षा उत्तीर्ण होना, उनके सामने चुनौती थी। इसलिए उन्होंने इस परीक्षा के बारे में, उसकी पढ़ाई को लेकर किसी को भी नहीं बताया था। मुख्य परीक्षा के लिए भाग्यश्री ने मराठी साहित्य और इतिहास इन विषयों का चयन किया था।

इस पद के लिए उनका साक्षात्कार बहुत बड़ी चुनौती थी। जिसे उन्होंने बहुत ही अच्छे से पूरा किया। साक्षात्कार के दौरान सभी सवालों के जवाब दिए। अमरावती जिले की होने से उन्हें एक सवाल पूछा गया, जिले की मुख्य समस्या क्या है ? इसके जवाब में उन्होंने कहा की, किसानों की आत्महत्या ही सबसे बड़ी समस्या है। फिर उन्हें अगला सवाल पूछा की, अगर आप वहाँ जिलाधिकारी हुई, तो इस समस्या का समाधान कैसे करेगी? तब भाग्यश्री जी ने, खेत तालाबों के निर्माण से पानी उपलब्ध कराने पर इस समस्या का समाधान कर सकते है। उस समय उन्हें ‘शेत तळी’ इस मराठी शब्द का हिंदी, इंग्रजी में योग्य शब्द सुझ नहीं रहा था। इसलिए उन्होंने दुभाषी की मांग की और उनकी मांग पूरी भी की गई। फिर भी वे विस्तार से परीक्षकों को नहीं समझा पा रही थी। मामला बिगडता हुआ देखकर उन्होंने सीधा कागज लिया और खड़े रहकर खेत तालाब का चित्र निकालकर अपनी बात को, अपनी संकल्पना को उनके समक्ष स्पष्ट किया।

चुनाव मंडल की प्रमुख वरिष्ठ महिला अधिकारी थी। उनकी बारे में सब कहते थे की, वे बहुत ही कम अंक देती है। इसलिए चयन होगा या नहीं, इसी दुविधा में भाग्यश्री थी। खुशी की बात ये की, उनका चयन हुआ। उस साल चयनित होने वालों में वे महाराष्ट्र की अकेली महिला उम्मीदवार थी।

आपने प्रशासकीय अधिकारी होना ही क्यों चुना ? यह पूछने के बाद भाग्यश्री ने उनके जिंदगी का किस्सा बताया। जिसमें वे कहती है- एक बार एक रुबाबदार, वरिष्ठ पुलिस अधिकारी पोलीस वर्दी में उनके घर आए, उन्होंने भाग्यश्री से उनके पिता के बारे में पूछा। उनके पिता को देखते ही उस पुलिस अधिकारी ने उन्हें नमन किया,उनके पाव छुये। उस समय वो पुलिस अधिकारी भावुक हो गए थे। उनके पिताजी ने अपने छात्र को पहचान लिया। गाँव का वो एक बिगडा हुआ लड़का था। जिंदगी में वो लड़का कुछ कर सकेगा, इस बात से उसके पिता सब आशा छोड़ चुके थे। लेकिन उनके पिताजी ने उस लड़के को ऐसा सबक सिखाया,ऐसी शिक्षा दी, की, आगे उसने कभी भी स्कूल को बंक नहीं किया। आगे वहीं लड़का पुलिस अधिकारी बन गया। जब वह अपने गुरु से मिलने आया था, तब वह सीआयडी में बड़े पद पर कार्यरत था।

इस घटना से भाग्यश्री को लगा की, उन्हे भी पुलिस अधिकारी होना चाहिए। भाग्यश्री ने अपनी इच्छा को अपने पिता के सामने रखा। तब पिताजी ने कहा की, बडी सोच रखो। उनकी इसी बात से प्रशासकीय अधिकारी बनने की प्रेरणा मिली।

विदर्भ के ग्रामीण क्षेत्र की भारतीय प्रशासकीय अधिकारी के रूप में वे पहली महिला अधिकारी है। भाग्यश्री का चयन नागालैंड कैडर लिए हुआ। मसुरी से प्रशिक्षण पूरा होने के बाद नागालैंड सरकार की सेवा में वह पदस्थ हुई। वहाँ पर पदस्थ होने के लिए बहुत लोगों ने उन्हें फिर से इस निर्णय को लेकर विचार करने के लिए कहा। लेकिन खुद पर भरोसा, आत्मविश्वास और पति भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी संजय धिवरे के प्रोत्साहन से भाग्यश्री ने वहाँ पर जाना तय किया। इसी बीच उनकी माँ की तबीयत बहुत खराब हो गई थी। माँ का ध्यान कैसे रखा जाएगा, इस बात से वे चिंतित थी, लेकिन उनके पति ने बहुत ही सहजता से माँ की जिम्मेदारी स्वीकार की।

नागालैंड में भाग्यश्री ने उपविभागीय अधिकारी-फेक, अतिरिक्त जिला आयुक्त-कोहिमा, उपसचिव- गृह विभाग, सचिवालय इन पदों पर बखूबी काम किया। भाग्यश्री ने बताया की, एक दौरे में उनके सन्मानार्थ भोजन दिया गया था। भोजन से पहले सभी को एक पेय दिया गया। भाग्यश्री जी उसे पीने ही वाली थी, की उनका ड्राईवर जोर-जोर से कहने लगा, मैडमजी उसे ना पिये…. फिर उन्होंने उसे नहीं पिया, पता चला की, वो शोरा (शराब) है। भोजन से पहले सभी ने शोरा यानि की शराब लेना नागा संस्कृति का एक भाग था।

ड्राईवर को पता था, की उनकी मैडम पुरी शाकाहारी है। उन्होंने उनके अफसर को पूछा, क्या खाना चाहिए ? उसने बडी सहजतासे कहा चावल खाइए ,क्योंकि उसमें सिर्फ मछली होती है। अंत में स्वयं के सन्मानार्थ आयोजित किए गए भोजन में उन्हें भूखा रहना पड़ा ।

नागालैंड में काम करना एक प्रकार से बहुत बड़ी चुनौती है। जिसका भाग्यश्री ने बहुत ही साहस एवं धैर्य से उसका सामना किया।

नागालैंड के तत्कालीन राज्यपाल महामहिम पी. बी. आचार्य सर के आमंत्रण पर मैं नागालँड गया था। नागालैंड बहुत ही दूर-दराज क्षेत्र है। वहाँ पर कभी भी पहाड़ गिरती है और यातायात बंद होती है। चुनौतीपूर्ण भौगोलिक, राजकिय, सामाजिक स्थिति को पहचानकर एक महाराष्ट्र की महिला अधिकारी का नागालैंड कॅडर का स्वीकार करना यह बहुत ही धैर्य एवं साहस की बात है। ये बात सिर्फ भाग्यश्री के लिए ही नहीं, बल्कि देश की सभी महिलाओ लिए गर्व की बात है।

महाराष्ट्र सरकार मे प्रतिनियुक्ति से वे वर्ष 2018 में रेशम संचालक हुई। इस पद पर वह बहुत ही सराहनीय काम कर रही है। रेशम की खेती के लिए अपारंपरिक राज्य में किए गए कार्य पर उन्हें तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, वस्त्रोद्योग मंत्री स्मृति इराणी के हाथों सम्मानित किया गया है ।

पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभाताई पाटिल के हाथों उन्हें ‘विदर्भ कन्या’ के रूप में वर्ष 2016 को मुंबई के एक कार्यक्रम में सम्मानित किया गया। इसके अलावा भाग्यश्री कई पुरस्कारों से सम्मानित है। उन्हें लिखने में भी रुचि है। वे महाराष्ट्र टाइम्स (मराठी समाचार-पत्र) के लिए ‘‘सहज सुचलं’’ यह स्तंभ लिखती है। इसके अलावा उन्होंने आकाशवाणी के दर्पण, युवावाणी के लिए लेखन किया है। उनके लेखन पर उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कार से भी नवाजा गया है। साहित्य के प्रति रुचि होने से विविध साहित्य सम्मेलन में भी उनकी सहभागिता रहती है। भाग्यश्री ‘‘संचयी विचार धारा’’ की कार्यकारी संपादक भी है।

ग्रामीण क्षेत्र से होने के कारण उन्हें इस बात का एहसास है की, यहाँ पर कितनी सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वे स्वयंके अनुभवों से ग्रामीण क्षेत्र में स्पर्धा-परीक्षाओं को लेकर जनजागरण एवं निः शुल्क मार्गदर्शन करती है। साथ ही महिला सक्षमीकरण के लिए भी वे हमेशा प्रयासरत है। बेटा-बेटी में भेदभाव न करें, बल्कि दोनों को भी समान समझना चाहिए, यहीं संदेश परिजनों को दे रही है। अपने पिता ने कभी भी बेटी होने पर भेदभाव नहीं किया, इस बात पर उन्हें बहुत गर्व है।

भाग्यश्री के बारे में लिखने के लिए मुझे जिनकी मदद हुई, वे मिशन आईएएस के प्रमुख प्रा. डॉ. नरेशचंद्र काठोले सर, भाग्यश्री के बारे में कहते है की, भाग्यश्री में किसी भी प्रकार की बड़प्पन की भावना नहीं है। बहुत ही सरल, सीधे-साधे ढंग से वे रहती है, उनके विचारों में-उनके आचरण में सहजता, सरलता, बहुत ही प्रभावी वक्तृत्व शैली है, जिससे वे दूसरे ही क्षण में छात्रो के मन में अपना स्थान बना लेती है।

उनके पति संजय धिवरे, भारतीय राजस्व सेवा अधिकारी है। उनकी बेटी सनोजा स्कूल में पढ़ रही है। प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्रों से संदेश के रूप में वह कहती है की युवाओं ने बड़ी संख्या में प्रतियोगी परीक्षाओं की ओर बढ़ना चाहिए। असफलता मिलने पर निराश न हो, बल्कि ओर भी कड़ी मेहनत से प्रयास करें और सक्षम रूप से सेवा करने की मानसिक तैयारी भी रखें। चूंकि आई ए एस की सेवा में 24 घंटे रहना पड़ता है।

सच कहें तो, भाग्यश्री का जीवन एक किताब का विषय है। एक लेख में उनका जीवन वर्णन, उनके अनुभव को बताना संभव नहीं है। इसलिए उनके बारे में जो भी अधिक जानना चाहते है, या जानने की इच्छा रखते है वे यु ट्यूब पर उनके प्रेरणादायी कार्यक्रम, बातचीत जरूर देख सकते है।

‘पहले करें फिर कहें’ विचार को सार्थ करनेवाली भाग्यश्री को भविष्य की असीम शुभकामनाएँ….

मनीष गहलोत

मनीष गहलोत

मुख्य सम्पादक, माली सैनी संदेश पत्रिका