मरूधर जननी का अपूर्व त्याग जसधारी गोरां धाय मां

मरूधर जननी का अपूर्व त्याग जसधारी गोरां धाय मां

मारवाड़ के प्रशस्त  इतिहास में वीरागंना गोरां धाय का अपूर्व साहस व त्याग का परिचय एक निर्णायक घटना थी अन्यथा मारवाड़ का स्वरूप ही दूसरा होता। वीरागंना गोरां धाय टाक नें अपनी आत्मा के अभिन्न अंष नवजात पुत्र को मारवाड़ की रक्षा के लिए समर्पित कर दिया। वीरागंना गोरां धाय टाक का जन्म 4 जून 1646 को एक सैनिक क्षत्रिय (सैनी) टाक परिवार में हुआ। वह माता रूपा देवी व पिता रत्ना टाक की पुत्री थी।

रूपाधाय महाराजा श्री जसंवत सिंह प्रथम की धाय थी। उनके नाम से रूपाधाय बावड़ी मेड़तीगेट के अन्दर है। गोरां धाय का विवाह मण्डोर के भलावत गहलोत परिवार में मनोहर गोपी भलावत के साथ हुआ। जब संवत् 1735 में जोधपुर नरेश महाराजा जसंवत सिंह का स्वर्गवास काबुल के मार्ग में जमरुद के थाने में हो गया और बादशह औरंगजेब की आज्ञा से उनकी रानीयां आदि जब वहां से चलकर दिल्ली पहुंची तब वे मय राजकुमार अजीत सिंह के सहित दिल्ली में शाही पेहरे में ले ली गई। बादशाह औरंगजेब नें जोधपुर राज्य को हड़पने के लिए महाराजा की मृत्यु के बाद जन्मे हुए राजकुमारों को औरस नहीं माना और उन पर अपना कब्जा करना चाहा। एक राजकुमार का तो काबुल से दिल्ली पहुंचने पर स्वर्गवास हो गया। उधर रानीयों और राठौड़ सरदारों को बादशाह के रंग-ढंग को देखकर संदेह हो गया। इसलिए राठौड़ दुर्गादास आदि सरदारों नें राजकुमार अजीत सिंह को शाही पेहरे से जैसे-तैसे निकाल कर मारवाड़ की तरह भेजने का उपाय किया। राजकुमार की धाय गोरां ने सफाई कर्मचारी का स्वांग भराकर उसकी टोकरी में अजीत सिंह जी को सुलवाकर ज्यों-त्यों पेहरे से बाहर निकाल देना तय हुआ। इस योजना के अनुसार संवत् 1736 सावंत वदी एकम् सोमवार को धाय ने अपने बालक पुत्र को राजकुमार की जगह सुला दिया और राजकुमार अजीत सिंह को एक टोकरी में लेटाकर और उसके ऊपर कूड़ा-कचरा बिखेर कर सफाई कर्मचारी के वेश  में शाही पेहरे से बाहर पहुंचा दिया और बच्चे को मुकनदास खिंची को सुपुर्द कर दिया। मुकनदास सपेरे का स्वांग भरे हुए उस किशनगढ़ की हवेली से कुछ ही दूरी पर बैठा हुआ था। स्वामी भक्त मुकनदास खिंची राजकुमार को अपने पिटारे में रखकर पुंगी बजाता हुआ मारवाड़ की तरफ चल पड़ा। इस घटना के दूसरे ही रोज बादशाह को संदेह हुआ कि बालक राजकुमार हाथों से न निकल जाए इसलिए उसने कोतवाल को आज्ञा की मृत राजा कि रानीयों को राजकुमार सहित शाही महल में ले आओ और यदि कोई सामना करे तो उसे सजा दो। इस पर दुर्गादास की संरक्षता में राठौड़ वीर लड़ने को तैयार हो गये और युद्ध ठन गया। रानीयां भी युद्ध में जुझकर काम आई। युद्ध के पश्चात  जो नकली राजकुमार बादशाह के हाथ लगा उसे जोधपुर के डेरे से गिरफ्तार हुई दासियों को दिखाकर उसने अपनी तसल्ली कर ली और उसे अपनी पुत्री जेबुनिषा को परवरिश के लिए सौंप दिया। बादशाह ने इस नकली राजकुमार का नाम “मुहम्मदी राज“ रखा और यह औरंगजेब की सेना में रहकर बीजापुर में दस वर्ष की आयु में प्लेग से मर गया। गोरां धाय का अपूर्व त्याग मारवाड़ के इतिहास में अमर पद पा गया और इसलिए इसका नाम जोधपुर राज्य के राष्ट्रीय गीत “धूसा“ में गाया जाता है।

मुकन जैदेव गोरां जसधारी, धिन दुरगौ राखियों अजमाल।। धूंसो।।गोरां धाय 48 वर्ष की आयु में सैनिक क्षत्रिय जाति की पुरातन श्मशान भूमि खांडिया कोट, जगतसागर की बारी, हाई कोर्ट रोड़, जोधपुर के पास संवत् 1761 शाके 1626 की जेठ वदी 13 शनिवार को अपने पति मनोहर के साथ सती हो गई। सती स्थल पर सवंत् 1768 दुज भादो वद 4 मंगलवार को छतरी का निर्माण किया गया। इसकी याद में गोरां धाय बावड़ी का निर्माण 1712 ई. में त्रिपोलिया बाजार, जोधपुर के दक्षिण-पूर्व में स्थित है। आजकल गौरिंधा बावड़ी के नाम से जानी जाती है।

सैनिक क्षत्रिय समाज (सैनी) को गोरां धाय टाक के व्यक्तित्व एवं कृतत्व को उजागर कर इस बलीदानी चरित्र को जन-जन तक पहुंचाना हमारा कर्तव्य है। यदि हम अपने बलिदानी नर-नारीयों के अवदान को विस्मृत कर देगें तो इतिहास हमें माफ नहीं करेगा।

प्रस्तुति: – आनंद सिंह परिहार
लेखक, संपादक एवं प्रकाशक
(जसधारी गोरां धाय)

मनीष गहलोत

मनीष गहलोत

मुख्य सम्पादक, माली सैनी संदेश पत्रिका