राजस्थान की प्रथम महिला चिकित्सक बनीं डॉ. पार्वती गहलोत

राजस्थान की प्रथम महिला चिकित्सक बनीं डॉ. पार्वती गहलोत

वर्ष 1936 में विदेश से शिक्षा प्राप्त कर राजस्थान की प्रथम महिला चिकित्सक बनीं डॉ. पार्वती गहलोत

समाज सुधार और शिक्षा प्रसार के सन्दर्भ में स्वामी दयानन्द सरस्वती (1824-1883) और आर्यसमाज का विशेष योगदान रहा है। वैदिक धर्म का प्रचार करने के लिए महाराजा जसवन्तसिंह द्वितीय (1873-1895) के निमन्त्रण पर स्वामीजी का जोधपुर में 31 मई, 1883 को आगमन हुआ। मंडोर निवासी श्री किशोरसिंह गहलोत भी उन भाग्यशाली व्यक्तियों में से एक थे जो स्वामी दयानन्द के व्याख्यान सुनने के लिए नियमित रूप से जाते थे। किशोरजी स्वामी जी की शिक्षाओं से अत्यन्त प्रभावित हुए। परिणामस्वरूप उनके तीनों पुत्रों (सर्वश्री रामप्रताप, सालगराम और जगदीशसिंह गहलोत) पर भी दयानन्द और आर्यसमाज की शिक्षाओं का स्थायी प्रभाव पड़ा।

श्री राम प्रताप जी ( प्रताप जी ) गहलोत ने अपनी पुत्रियों पार्वती तथा रामकुंवर तथा पुत्र गोविन्दसिंह के लिए शिक्षा की उत्तम व्यवस्था की। यह सुखद आश्चर्य की बात है कि कालान्तर में श्री राम प्रताप जी की दोनों पुत्रियाँ तथा पुत्र डॉक्टर बने। उनके पौत्र-प्रपौत्र आदि भी डॉक्टर बने है। सुश्री पार्वती गहलोत का जन्म 21 जनवरी, 1903 को हुआ। उनके पिताश्री प्रताप जी शिक्षा प्रेमी तथा प्रगतिशील सामाजिक विचारों के प्रबुद्ध व्यक्ति थे। उस समय संयुक्त परिवार होते थे जहां कोई भी विषम परिस्थिति आने पर सभी सहयोग करते थे। व्यापारी चाचा सालगराम जी गहलोत ने पार्वती जी के शिक्षण का भार अपने कंधों पर लिया, उल्लेखनीय है कि (सुश्री) पार्वती गहलोत प्रख्यात इतिहासकार और समाजसुधारक जगदीश सिंह गहलोत की भतीजी थी।

उस समय में कन्या को अपने घर से बाहर निकलने की मनाही थी। तथा कथित ऊँची जातियाँ भी अपनी बालिकाओं को विद्यालय में भेजने की नैतिक अपराध की संज्ञा देती थी। महात्मा ज्योतिराव फूले की भाँति गहलोत परिवार ने अपनी मेधावी पुत्री को लुधियाना मेडिकल कॉलेजमें शिक्षा लेने भेजा जो एक अपूर्व साहसिक कदम था। पार्वती गहलोत राजस्थान की प्रथम महिला डॉक्टर बनी तो तत्कालीन सभी भारतीय समाचार पत्रों ने इस उपलब्धि को विशेष खबर के रूप में सविस्तार प्रकाशित किया। परिवार में प्रताप जी और सालगराम जी ने मिलकर आपस में सहयोग रखकर स्त्री शिक्षा की यह नींव डाली। इसी क्रम में सालगराम जी ने अपनी पुत्री संतोष गहलोत को भी इंद्रप्रस्थ स्कूल दिल्ली से पढ़वाया और फिर उनका दाखिला लेडी हार्डिंग कॉलेज दिल्ली में हुआ। आज जब हम अपनी बच्चियों को अभी भी बाहर पढ़ने के लिए भेजते हुए कई बार सोचते हैं तो यह विचारणीय विषय है कि गहलोत परिवार के भाइयों ने उस समय कितना साहसिक कदम उठाकर अपनी बेटियों को बार पढ़ाया होगा। (उस समय यह शिक्षा जोधपुर क्या राजस्थान में भी उपलब्ध नहीं थी)। यह किशोर सिंह जी के परिवार की प्रगतिशीलता और नई सोच का ही परिणाम था कि उनके परिवार में एक के बाद एक कई लोग डॉक्टर बने। पार्वती जी के छोटे भाई गोविंद सिंह गहलोत भी अपने समय के कुछ प्रथम डॉक्टरों में रहे हैं।

मारवाड़ रियासत के महाराजा ने डॉ. पार्वती गहलोत की कुशाग्रता, दक्षता और कर्तव्यनिष्ठा से प्रभावित होकर उन्हें इंग्लैण्ड में उच्च शिक्षा पाने हेतु भेजा। सन् 1936 में वह इंग्लैण्ड से लौटी तो वे दूसरा कीर्तिमान स्थापित कर चुकी थी। राजस्थान की वह प्रथम महिला डॉक्टर थी जिसने विलायत में शिक्षा प्राप्त की।

भारत की प्रमुख समाज सेविका डॉ. पार्वती गहलोत की तुलना महाराष्ट्र के महात्मा ज्योतिराव फूले की पत्नी से की जा सकती है जो भारत की प्रथम शिक्षिका थी। उन दिनों मारवाड़ के प्रधानमंत्री अंग्रेज ही होते थे। सर डोनाल्ड फील्ड डॉ. पार्वती गहलोत की विशेषज्ञता, कार्यकुशलता और रोगियों के प्रति निष्ठा से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उन्होने डॉ. पी. गहलोत का सार्वजनिक अभिनन्दन किया जिसमें चांदी का एक सौ एक तोले का स्मृतिचिहन् प्रदान किया। जोधपुर राज्य के उच्च अधिकारियों, प्रकाण्ड बुद्धिजीवियों, संभ्रांत उद्यमियों और समाजसेवियों ने उस समारोह में पार्वती देवी को ‘मरुधरा की फ्लोरेन्स नाइटेंगल’ घोषित किया। मारवाड़ के प्रमुख नागरिक श्री जसवन्तराज जी मेहताने कहा- ‘‘डॉ. पार्वती गहलोत एक युगप्रवर्तक महिला है जिसने यह प्रमाणित कर दिया है कि हमारी महिलाओं में पुरुष के समान विलक्षण प्रतिभा होती है। हमें डॉ. पार्वती गहलोत की तरह अपनी बहिनों, बहुओं और बेटियों को शिक्षा देनी चाहिये। इससे हमारी सभी सामाजिक कुरीतियाँ समाप्त हो जायेगी तथा समाज का सर्वांगीण अभ्युदय होगा।’’

उम्मेद अस्पताल, जो पहले जसवन्त जनाना अस्पताल कहलाता था, उसकी प्रथम महिला अधीक्षिका ने कहा कि ‘मेरे इंग्लैण्ड प्रवास के समय डॉ. पार्वती गहलोत ने कुशल चिकित्सका एवं दक्ष सर्जन का कार्य किया। ये विश्वस्तर की डॉक्टर हैं। इन्होंने जटिल से जटिल ऑपरेशन कर अपनी असाधारण क्षमता का परिचय दिया है।’ मारवाड़ के प्रधानमंत्री सर डोनाल्ड फील्ड ने कहा – ‘डॉ. पार्वती गहलोत एक समर्पित चिकित्सक हैं। अस्पताल के अतिरिक्त दूर-दराज के गांवों में भी वह गंभीर रोगियों को देखने जाती है। यह एक बहुत बड़ा सेवाकार्य है।’

दिन-रात चिकित्सारत होते हुए भी आप नारी-जागरण का भी महत्वपूर्ण कार्य करती थीं। जोधपुर के महाराजा ने उन्हें वेतन के रूप में एक सौ रूपया मासिक आजीवन सवारी भत्ता स्वीकृत किया ताकि वे दिन-रात प्रजा की सेवा करती रहे। स्मरण रहे कि 1936 में बड़े-बड़े अधिकारियों को भी एक सौ रूपये मासिक वेतन नहीं मिलता था।

स्थानीय उम्मेद अस्पताल की अधीक्षिका के पद पर उन्होंने काफी वर्षो तक महिलाओं और शिशुओं की दिन-रात सेवा की। वे सदैव हँसमुख रहती, रूग्ण महिलाओं को उपचार के साथ मानसिक सांत्वना देती तथा उन्हें सहज रूप से स्वास्थ्य-विज्ञान के सूत्र भी समझाती रहती थी। रोगिणी महिलाओं के लिए वे डॉक्टर, शिक्षिका और अभिभाविका, यहाँ तक कि करुणामयी ममतापूर्ण देवी के समान थीं। उनके द्वार सभी के लिए खुले रहते थे विशेष रूप से अशिक्षित पिछड़े परिवार की स्त्रियों हेतु। इसी तरह वे अपनी ‘ड्यूटी’ का कोई समय नहीं मानती थी तथा चैबीसों घण्टे गम्भीर रोगियों को जीवनदान देने के लिए तत्पर रहती थी।

डॉ. पार्वती गहलोत के कठोर अनुशासन और कर्तव्यपरायणता का सम्मान प्रधानमंत्री और महाराजा भी करते थे। वे कभी अस्पताल की मर्यादाओं और नियमों का उल्लंघन किसी को नहीं करने देती थी। एक बार जोधपुर के स्वास्थ्य मंत्री के भाई रात्रि को उन्हें कॉटेज वार्ड में मिलने गये तो उन्होंने उन्हें तत्काल बाहर निकाल दिया। तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री को इस त्रुटि के लिये क्षमायाचना करनी पड़ी। डॉ. पार्वती गहलोत ने एक नया कीर्तिमान स्थापित किया इतने लम्बे सेवा काल में उन्होंने एक दिन भी बीमारी की छुट्टी (मेडिकल लीव) नहीं ली। यहाँ तक कि सामान्य अवकाश भी नहीं लिया।

अपने जीवनकाल में ही डॉ. पार्वती गहलोत को उल्लेखनीय मान-सम्मान तथा यश मिला। उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई थी। मारवाड़ी समाचार (रियासती अंक, कलकता) ने अपने 17 जुलाई, 1940 के अंक में श्री उम्मेद जनाना हॉस्पिटल के विधिवत् उद्घाटन (31 अक्टूबर, 1938) के समाचार के साथ-साथ डॉ. पार्वती गहलोत का चित्र भी प्रकाशित किया था।

उनका व्यक्तित्व अत्यन्त सौम्य, सादगी तथा सरलता से परिपूर्ण था। वे आत्ममुग्ध अंहकार से पूर्णतया मुक्त थी। सादा जीवन, उच्च विचार, मानवीय संवेदनशीलता तथा सहज जीवनशैली उनके व्यक्तित्व के अभिन्न अंग थे। बालिकाओं की शिक्षा में उनकी विशेष रूचि थी। 27 अक्टूबर, 1988 को जोधपुर की इस महान् विभूति का देहावसान हुआ।

मनीष गहलोत

मनीष गहलोत

मुख्य सम्पादक, माली सैनी संदेश पत्रिका