भामाशाह कर्ण के नाम से प्रसिद्ध उद्योगपति श्रीमान शिवसिंहजी कच्छवाहा

भामाशाह कर्ण के नाम से प्रसिद्ध उद्योगपति श्रीमान शिवसिंहजी कच्छवाहा

एशिया के सबसे बड़े लाइम स्टोन माइंस के मालिक भामाशाह कर्ण के नाम से प्रसिद्ध उद्योगपति श्रीमान शिवसिंहजी कच्छवाहा ने पूरे मारवाड़ में सर्व समाज के सभी वर्गों को दशक पूर्व करोड़ का दान पुण्य करने के साथ स्कूलों हेतु भवनों का निर्माण करवाया। हर अमावस्या को आप द्वारा हजारों लोगों को भोजन और धोती कपड़े निशुल्क दिए जाते थे।

नगर सेठ एवं पिताजी की नाम से भी आपको जाना जाता है

22 अक्टूबर 1963 को यकायक एक तारा आसमान से टूटा और लोगों पर बज्रपात कर गया। जोधपुर में राजस्थान का एक दानवीर इस संसार ये महाप्रयाण कर गया। हजारों लोग अनुपात करने लगे और पिताजी आज हमें छोड़ गये। कहते हुए फूट-फूट कर रोने लगे। यह महान व्यक्ति थे श्री शिवजीसिंहजी कच्छवाहा, जिसने, जहाँ भी, उनके स्वर्गवास का समाचार सुना, यह हतभ्रम रह गया।

श्री शिवजीसिंहजी कच्छवाहा का जन्म जेठ माह की गुरुपूर्णिमा, विक्रम संवत् 1959 (21 जून 1902) को नागोरी बेरा, मण्डोर में श्री अमरसिंहजी के घर में उनके जन्म पर उनके माता-पिता ने बहुत ही खुशियाँ मनाई और मिठाइयाँ बाँटी समाज के सभी वर्गों ने तब भगवान से प्रार्थना की कि यह बालक दीर्घायु हो और माता-पिता की कीर्ति को बढ़ावे। लोगों के आशीर्वाद खूब फले-फूले और उन्होंने न केवल 81 वर्ष की आयु पाई बल्कि परिवार की, अपने नगर तथा समाज में यश पताका फहराई।

बाल्यकाल में श्री सुमेर विद्यालय में शिक्षा प्राप्त कर उन्होंने इस कहावत को सही सिद्ध किया कि ‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात’ वाल्यकाल से ही वह कुशाग्र बुद्धि तथा उद्यमी थे। विद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने के बाद वह 15 वर्ष की अल्प आयु में जीविकोपार्जन हेतु सोजत चले गये और वहाँ चूने का व्यवसाय प्रारम्भ किया। उस समय इस व्यवसाय के चलाने में उन्हें काफी कठिनाइयाँ लेकिन उन्होंने कठिनाइयों को अपनी कार्यकुशलता से दूर कर दिया। इसी कारण उद्योग आज इतना बढ़ गया है कि वह ‘सोजत उनके द्वारा प्रारम्भ किया हुआ वह छोटा-सा बल्कि सारे भारत में प्रसिद्ध हो गया है। गुजरात लाइम कम्पनी’ के नाम से न केवल राजस्थान में कम्पनी के माल की मांग दिनों-दिन बढ़ती ही महाराष्ट्र, आसाम, पंजाब आदि प्रान्तों में इस जा रही है। इस कारण इस उद्योग में करोड़ों रुपयों की पूंजी लगी हुई है तथा हजारो श्रमिक इस उद्योग के कारण अपनी जीविका चला रहे है। यहाँ का हाईड्रेटेड लाइम उद्योगों के लिये यह उद्योग न केवल सोजत रोड़, बल्कि अत्यन्त उपयोगी एवं उच्च स्तर का माना जाता फैल गया है शिवजीसिंहजी की यह विशेषता सोजत नगर, मंडला, अटपड़ा आदि स्थानों पर थी कि वे इन विस्ततृ क्षेत्रों में लगे उद्योगों व इकाइयों को प्रतिदिन सम्भालते थे। अपने स्वर्गवास के पूर्व के दिन तक वे सभी श्रमिकों व भी कर्मचारियों से मिल कर गये थे और तब तक किसी ने यह सोचा भी नहीं था कि वे हमसे बिछुड़ जायेंगे । वास्तव में उनका बिछुड़ना सब पर एक वज्रपात है। सभी वर्ग के तथा सभी आयु के लोग उन्हें “पिताजी” के नाम से सम्बोधित करते थे। जिसने जब और जहाँ पर उनके स्वर्गवास का समाचार सुना, वह रो पड़ा और इसी कारण यह समाचार सुनते ही सोजत रोड़ तथा सोजत नगर की सभी दुकानें व संस्थाएं बंद कर दी गयीं और सभी ने शोकसभाएं कर उनके प्रति श्रद्धांजलियाँ अर्पित की। हजारों लोग सोजत रोड में इकट्ठे हो गये। उन्हें तो यह दुःख हुआ कि वे उनका अन्तिम दर्शन नहीं कर सके क्योंकि उनका अन्तिम संस्कार जोधपुर में हुआ

था। श्री शिवजीसिंहजी में विलक्षण व्यावसायिक प्रतिभा थी और इसी कारण उन्होंने पांच मजदूरों की सहायता से काम करना प्रारम्भ कर वे अपने उद्योग को ऐसा चलाने लगे कि उनके महाप्रयाण के समय 5,000 मजदूर उसमें काम करने लगे। श्रमिकों के प्रति उनका व्यवहार बड़ा स्नहेपूर्ण था और इसी का परिणाम था कि आपको इकाइयों में कभी श्रमिक अशांति नहीं हुई। हड़तालों की बात तो काफी दूर थी ये कि शिक्षण संस्थाओं तथा धार्मिक भवनों के निर्माण रहे। पिछले चुनावों में काफी लोगों ने श्री वे दान देते ही रहते थे। उनकी ओर से यह छूट थी राजेन्द्रसिंहजी अटपड़ा पंचायत के निर्विरोध संरपंच श्रमिकों को अपने बालक समझते थे और उनकी के लिये कोई भी चुना मुफ्त में ले जा सकता है। प्रकाशसिंहजी को विधानसभा का उम्मीदवार उन्नति के लिये बराबर सोचते रहते थे। इसी कारण श्रमिकों के परिवारों तक जब उनके स्वर्गवास का समाचार पहुँचा तो वे परिवार भी फूट-फूट कर रोने लगे। यह उनके सद्भाव तथा अगाध प्रेम का ही परिचायक है श्री शिवजीसिंहजी अपनी दानवीरता के लिये सर्वत्र प्रसिद्ध थे अनेक विद्यालयों को आर्थिक सहायता देने तथा गरीबों की पुत्रियों के विवाह हेतु सहायता देते रहने के कारण उनको यह लोग सहायता हेतु घेरे ही रहते थे तथा उन्हें “सेठ राजा की शिक्षण संस्थाएँ, गौ-शाला प्याऊ आदि तथा मण्डोर का किसान कन्या विद्यालय एवं आसपास श्री सुमेर उच्च माध्यमिक विद्यालय और श्री उम्मेद कन्या माध्यमिक विद्यालय को समय-समय पर दानशीलता का परिचय दिया। आप श्री सुमेर उच्च हजारों रुपये का दान देकर आपने अपनी माध्यमिक विद्यालय के निदेशक मण्डल के अध्यक्ष भी रह चुके हैं और उस समय इस विद्यालय ने काफी तरक्की की। स्त्री-शिक्षा के क्षेत्र में आपका योगदान चिरस्मरणीय रहेगा। आपने बनाना चाहा लेकिन उन्होंने अपने उद्योग के हित यह उचित नहीं समझा। वह एक साधारण सैनिक की जनता की सेवा में लगे रहना चाहते हैं। वास्तव में वह एक योग्य पिता के योग्य पुत्र है। स्वर्गीय श्री शिवजीसिंहजी की धर्मपत्नी श्रीमती रामकुंवरजी (सुपुत्री स्वतंत्रता सेनानी ठेकेदार मोतीसिंहजी सांखला निवासी विजय चौक भी अपनी दानशीलता, सद्व्यवहार एवं जोधपुर) भी मृदुभाषिता के लिए सर्वत्र प्रसिद्ध थी। पति-पत्नी को सभी शिव-पार्वती का जोड़ा कहते थे । उनका कर्ण” ही कहते थे। इनकी धर्मपत्नी रामकुंवरीजी सैकड़ों बालिकाओं को शिक्षा के लिये प्रोत्साहित भी स्वर्गवास हो गया है। ये सही अर्थों में परिवार भी इस दानवीरता में बराबर हाथ बटाती रहती थी। वे सोजत रोड़ की पंचायत तथा न्याय पंचायत के कई वर्षों तक अध्यक्ष रहे। उनकी ईमानदारी तथा निष्पक्षता की सदा सभी वर्गों ने प्रशंसा की । यों वह सोजत रोड़ कृषि मण्डी के भी अध्यक्ष रहे और उनके सद्प्रयत्नों से कृषि उत्पादकों के व्यापार को काफी बढ़ावा मिला। पाली जिले के उद्योग संघ के भी वे अध्यक्ष रहे थे। जोधपुर के सुप्रसिद्ध सिनेमा आनन्द थियेटर के निदेशक मण्डल के भी वह अध्यक्ष थे। जोधपुर नगर की अनेक संस्थाओं व विभिन्न स्थानों की संस्थाओं को समय-समय पर

किया और अपनी पुत्रियों को भी अच्छी शिक्षा दी। इसी कारण उनकी पुत्रियां भी पंचायत समिति आदि की सदस्याएँ बन सर्कों । आपने अपने पुत्रों को भी अच्छी शिक्षा दी और उन्हीं के पदचिन्हों पर चलकर वे अच्छे उद्योगपति बन सके हैं। उनके दोनों पुत्र श्री प्रकाशसिंह तथा श्री राजेन्द्रसिंह, न केवल व्यवहार कुशल व मधुर भाषी हैं बल्कि उच्च स्तर के उद्योगपति एवं राजनीतिज्ञ भी हैं। उनकी लोकप्रियता इसी से सिद्ध होती है कि उनके ज्येष्ठ पुत्र श्री प्रकाशसिंहजी सोजत रोड़ पंचायत के निर्विरोध सरपंच रहे तथा कनिष्ठ पुत्र श्री पालक थी। आर्थिक रूप से परेशान लोगों की सहायता देने में दोनों कभी चूक नहीं करते थे। श्री शिवजीसिंहजी के जीवन को देखकर भगवान् महावीर के वे शब्द याद आते है कि ‘मनुष्य जन्म से नहीं कर्म से महान होता है।’ उन्होंने एक कर्मयोगी, निष्ठावान् विभूति के रूप में अपने जीवन में सद्कार्य किये जो आने वाली पीढ़ी को निरन्तर प्रेरणा देते रहेंगे।

उत्तर भारत के मेगा हाइवे पर स्थित पूरे भारत का एक मात्र सर्किल है जो श्री शिवसिंह कच्छवाह के सम्मान में बना हुआ है।

मनीष गहलोत

मनीष गहलोत

मुख्य सम्पादक, माली सैनी संदेश पत्रिका