पद्मश्री स्वतंतत्रा सैनानी श्री धर्मपाल सैनी

पद्मश्री स्वतंतत्रा सैनानी श्री धर्मपाल सैनी

आइए जानते हैं, कौन हैं समाज गौरव धर्मपाल सैनी, क्यों पूरी जिंदगी बस्तर में खपाने का धर्मपाल सैनी ने लिया फैसला

विनोबा भावे के शिष्य रहे धर्मपाल सैनी का बस्तर से नाता 1960 के दशक में जुड़ा था। उन्होंने यहां कि बेटियों की जिंदगी को बदलने का बीड़ा उठाया और आज भी अनवरत चल रहे हैं। मूलतः मध्यप्रदेश के धार जिले के रहने वाले धरमपाल सैनी विनोबा भावे के शिष्य रहे हैं। कहा जाता है कि 60 के दशक में सैनी ने एक अखबार में बस्तर की लड़कियों से जुड़ी एक खबर पढ़ी थी। खबर के अनुसार दशहरा के आयोजन से लौटते वक्त कुछ लड़कियों के साथ कुछ लड़के छेड़छाड़ कर रहे थे। लड़कियों ने उन लड़कों के हाथ-पैर काट कर उनकी हत्या कर दी थी। यह खबर उनके मन में घर कर गई। उन्होंने फैसला लिया कि वे बच्चियों की ऊर्जा को सही स्थान पर लगाएंगे और उन्हें प्रेरित करेंगे। वह लंबे समय से छत्तीसगढ़ के बस्तर में काम कर रहे हैं। उन्होंने बस्तर में बालिका शिक्षा की अलख जगाई है। सैनी जब बस्तर आए, तो लोग बालिकाओं को आश्रम भेजने को तैयार नहीं होते थे। मगर धीरे-धीरे लोगों में जागरूकता आई और आज अधिकांश बालिकाएं उनकी संस्था और अन्य स्कूलों में शिक्षा ग्रहण कर रही हैं। उनकी संस्था में शिक्षा के साथ-साथ उन्हें विभिन्न खेलों का भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

मूलतः मध्य प्रदेश के धार जिले के रहने वाले धरमपाल सैनी 60 के दशक में विनोबा भावे से अनुमति लेकर वे बस्तर आए और बालिका शिक्षा के क्षेत्र में जुट गए। बस्तर में ताऊजी के नाम से विख्यात सैनी अब तक करीब 2300 खिलाड़ी तैयार कर चुके हैं। धर्मपाल सैनी स्वयं आगरा यूनिवर्सिटी से कामर्स ग्रेजुएट सैनी एथलीट रहे हैं। 1985 में पहली बार उनके आश्रम की छात्राओं ने खेल प्रतियोगिता में भाग लेना शुरू किया। उनके जगदलपुर स्थित डिमरापाल आश्रम में हजारों की संख्या में मेडल्स और ट्राफियां रखी हुई हैं। आश्रम की छात्राएं अब तक स्पोर्ट्स में ईनाम के रूप में 30 लाख से ज्यादा की राशि जीत चुकी हैं। बालिका शिक्षा में बेहतर योगदान के लिए 1992 में सैनी को पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया। वर्ष 2012 में द वीक मैगजीन ने सैनी को मैन ऑफ द ईयर चुना था। सरकार ने कोबरा जवान राकेश्वर सिंह की रिहाई के लिए धर्मपाल सैनी और गोंडवाना समाज के तैलम बोरैया को मध्यस्थ बनाया है। 1960 में सैनी बस्तर आए और यहीं के होकर रह गए, उनके स्टूडेंट्स और स्थानीय लोग उन्हें ताऊजी कहकर बुलाते हैं।

विनोबा भावे ने इस शर्त पर सैनी को दी थी बस्तर जाने की अनुमति:

कहा जाता है कि धर्मपाल सैनी ने बस्तर जाने के लिए जब विनोबा भावे से परमिशन मांगी तो वे नहीं माने। हालांकि धर्मपाल सैनी की जिद के बाद उन्होंने अनुमति दी, लेकिन यह शर्त भी रखी कि वह कम से कम 10 बरस तक बस्तर में ही रहेंगे।

ताऊजी की पढ़ाई छात्राएं आज प्रशासनिक पदों पर, खूब है सम्मानः

आदिवासी इलाकों में साक्षरता को बढ़ाने में धर्मपाल सैनी का अहम योगदान माना जाता है। इसी के चलते उन्हें सरकार ने पद्मश्री से नवाजा था। सैनी के आने से पहले तक बस्तर में साक्षरता का ग्राफ 10 प्रतिशत भी नहीं था। जनवरी 2018 में ये बढ़कर 53 प्रतिशत हो गया, जबकि आसपास के आदिवासी इलाकों का साक्षरता ग्राफ अब भी काफी पीछे है। बस्तर में शिक्षा की अलख जगाने के पीछे भी धर्मपाल सैनी की प्रेरणा काम करती है। उन के बस्तर आने से पहले तक आदिवासी लड़कियां स्कूल नहीं जाती थीं, वहीं आज बहुत सी पूर्व छात्राएं अहम प्रशासनिक पदों पर काम कर रही हैं। उनके विद्यालय की बच्चियां एथलीट, डॉक्टर और प्रशासनिक सेवाओं में जा चुकी हैं ।

बालिका शिक्षा में इसी योगदान के लिए धर्मपाल सैनी को साल 1992 में पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया था। 2012 में ‘‘द वीक” मैगजीन ने सैनी को मैन ऑफ द ईयर चुना था। आज सैनी जी 92 साल के हैं धर्मपाल जी सैनी बस्तर में आदिवासी छात्राओं की शिक्षा के लिए माता रूकमणि आश्रम का संचालन करते है। साथ ही वो बूड़ा आंदोलन चलाने वाले विनोभा भावे जो स्वतंत्रा सेनानी थे, उनके आप शिष्य रह चुके हैं। इसके अलावा खेल के क्षेत्र में भी आपने उत्कृष्ट काम किया है।

हमें आप पर गर्व है आपने आदिवासी क्षेत्र में विशेषकर महिलाओं और छात्राओं की शिक्षा के साथ खेलकूद में सेवायें प्रदान कर महात्मा ज्योति बा फुले के कार्यो को आगे बढ़ाने का महान कार्य किया है। हम आपके उत्तम स्वास्थ्य एवं दिर्घायु जीवन की मंगल कामना करते है।

मनीष गहलोत

मनीष गहलोत

मुख्य सम्पादक, माली सैनी संदेश पत्रिका