बिहार के लेनिन श्री जगदेव प्रसाद

बिहार के लेनिन श्री जगदेव प्रसाद

‘रांझणा’ की तरह ही हुई थी बिहार के लेनिन श्री जगदेव प्रसाद की हत्या
समाज गौरव जगदेव प्रसाद की पुण्यतिथि 25 सितंबर पर विशेष

धनुष और सोनम कपूर की सुपरहिट फिल्म रांझणा का अंतिम दृश्य याद होगा, जब सत्ताधारी पार्टी ने सत्ता के लिए चुनौती बन रहे धनुष की सभा में उपद्रव कराकर हत्या करा दी थी। कुछ ऐसा ही दृश्य 1974 में बिहार में सचमुच बना था। धनुष की जगह निशाना बने थे सत्ता और सामंतों को चुनौती दे रहे शोषित समाज दल के अध्यक्ष जगदेव प्रसाद, जिन्हें बिहार लेनिन भी कहा जाता है।

1974 का वह साल था, जब शिक्षक दिवस के दिन यानी पांच सितंबर को जगदेव प्रसाद की हत्या करवा दी गई थी। रांझणा को मारने में सत्ताधारी पार्टी ने गुंडों का इस्तेमाल किया था, जबकि जगदेव प्रसाद की हत्या में सामंती गुंडे और सरकारी अमला शामिल था। प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि उस दिन अरवल जिला के कुर्था में उनकी जनसभा थी। हजारों की भीड़ उमड़ रही थी। प्रशासन लोगों को कार्यक्रम स्थल तक पहुंचने में अवरोध पैदा कर रहा था। जगदेव प्रसाद का भाषण जैसे ही शुरू हुआ, सभा में उपद्रव शुरू किया गया और एक डीएसपी ने जगदेव प्रसाद पर गोली चला दी। कुछ और भी गोलियां चर्लाइं। दलित छात्र नेता लक्ष्मण चैधरी वहीं शहीद हो गए। कुल 27 राउंड गोलियां चली थीं। रांझणा की मौत तो अस्पताल में हुई थी, लेकिन जगदेव प्रसाद को वह भी नहीं मयस्सर नहीं हो सका। जगदेव प्रसाद के गले में गोली लगी और वे बुरी तरह से घायल हो गए। समर्थकों ने उन्हें जीप में बिठाकर अस्पताल ले जाना चाहा। परंतु सत्ता और सामंतों के पालतु वर्दी वाले गुंडों ने लाठी बरसाकर समर्थकों को भगा दिया और घायल जगदेव प्रसाद को अस्पताल के बजाय थाने ले गए। कहा जाता है कि थाने में उनके सीने को बंदूकों के कुंदे से तब तक पीटा गया, जब तक कि मौत न हो जाए।

भगत सिंह की तरह शव गायब करने की साजिश:

जगदेव प्रसाद की हत्या की खबर सुनते ही जनता बौखला गई। जैसे ब्रिटिश हुकूमत ने जन आक्रोश से बचने के लिए भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के शव को गायब करने की साजिश की थी, वैसी ही साजिश जगदेव प्रसाद के साथ भी की गई। कहा जाता है कि प्रशासन ने उनके शव को डाल्टेनगंज के जंगलों में ले गया। उनकी मौत की खबर भी समचार में प्रसारित करने से रोक दिया गया। हालांकि बीबीसी ने उनकी मौत की समाचार दे दी। बीबीसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि कुर्था में शांतिपूर्वक चल रही जनसभा में पुलिस ने जगदेव प्रसाद की हत्या कर दी। हत्या दोपहर में की गई थी लेकिन अगले दिन सुबह तक जगदेव प्रसाद का शव का पता नहीं चल सका। पटना में बीपी मंडल, रामलखन सिंह यादव, भोला प्रसाद सिंह, दारोगा प्रसाद राय जैसे नेताओं ने तब के मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर से मिलकर कहा कि जगदेव प्रसाद की लाश अगर पटना में जल्द नहीं लाई गई तो पूरा बिहार जल जाएगा। इस दबाव के कारण शव को प्रशासन छह सितंबर को दोपहर तक पटना लेकर पहुंचा। सात सितंबर 1974 को उनकी अंतिम यात्रा में लाखों लोग शामिल हुए।

सत्ता और सामंत को इसलिए था खौफ :

जगदेव प्रसाद की राजनीति डॉक्टर राममनोहर लोहिया की सोशलिस्ट पार्टी से शुरू हुई थी। 1967 में जब संविद सरकार बनी और मुख्यमंत्री महामाया प्रसाद बनाये गए, तब उनका लोहिया से मतभेद हो गया। मुख्यमंत्री का पद एक सवर्ण को दिये जाने का विरोध किया और पार्टी से अलग हो गए। शोषित दल बनाया और अगले साल 1968 में महामाया प्रसाद की सरकार गिरने के बाद सरकार भी बनाई। अहीर जाति से सम्बंध रखने वाले बीपी मंडल को मुख्यमंत्री बनवाया खुद जगदेव बाबू बने सिंचाई मंत्री क्योंकि जगदेव बाबू की दिलचस्पी राजनीति में कम और समाज को जागृत करने में अधिक था। उन्होंने बताया कि शोषण की नींव धर्म पर टिकी हुई है। भाग्य और भगवान आदि काल्पनिक बातों से लोगों को डराकर शोषण किया जा रहा है। सभी इंसान बराबर हैं। न तो सामंतों को विशेष अधिकार प्राप्त है और न ही सवर्णों को। उनका नारा गली-गली गूंज उठा था- 100 में 90 शोषित है, 90 भाग हमारा है। जगदेव प्रसाद ने ही पिछड़ों और दलितों की गठजोड़ की रूपरेखा तय की थी, जो सामाजिक न्याय का रास्ता बना। धर्म और उसके नाम किए जा रहे पाखंडों को जगदेव प्रसाद जिस तरह उजागर कर रहे थे और शोषितों को जगा रहे थे, वह सामंतों और सत्ताधीशों को खटकने लगा।

उनकी हत्या भी जिस तरह से हुई थी, साफ जाहिर है कि उसका षड्यंत्र काफी पहले से रचा जा रहा होगा। हत्या से पहले ही कुर्था और आसपास के तमाम पुलिस अधिकारी सवर्ण नियुक्त किए जा चुके थे। जगदेव प्रसाद ने अपने कई साथियों से कहा था कि कुर्था वाली सभा में कुछ अनहोनी हो सकती है क्योंकि प्रशासन में उनके कुछ करीबी लोगों ने संकेत दिए थे। रांझणा के धनुष को भी तो उसके शुभचिंतक पुलिसवाले ने आगाह किया ही था। परंतु, जगदेव प्रसाद और धनुष दोनों ही अपने लक्ष्य को लेकर इतने भावुक, समर्पित और जुनूनी थे कि जान पर खेल गए। धनुष का जुनून और जगदेव प्रसाद कुशवाहा का शोषितों को जगाने के लिए।

5 सितम्बर के शहादत दिवस पर शोषितों के इस मसीहा को विनम्र श्रद्धांजलि अमर शहीद जगदेव प्रसाद, संस्थापक राष्ट्रीय महामंत्री शोषित समाज दल का श्हादत दिवस है। आज ही के दिन पाँच सितम्बर 1974 में बहुसंख्यक समाज नब्बे प्रतिशत लोग कल्याण हेतु आंदोलन के क्रम में पुलिस की गोली से कुरथा ब्लॉक में मारे गये थे। सात सूत्री माँग आज भी अधूरा है जबकि दलित राष्ट्रपति, ओबीसी समुदाय से पीएम/ सीएम है। बताओ भाईयों/बहनों नब्बे प्रतिशत समुदाय के लोग गुलाम है या अजाद है। मेरी समझ से भारत के नब्बे प्रतिशत जनसंख्या बाले लोग गुलाम है और दस प्रतिशत जनसंख्या बाले समुदाय के लोग स्वतंत्र हैं । कैसे ? पढ़े और समझे बहुसंख्यक समाज के लोग के लिए काका कालेलकर आयोग ने 1956 में भारत सरकार के सिफारिश किया, लेकिन कुछ नहीं मिला।

मनीष गहलोत

मनीष गहलोत

मुख्य सम्पादक, माली सैनी संदेश पत्रिका