श्री नन्दू जी

श्री नन्दू जी

विश्व की साढे चार लाख दुर्लभ माचिसों का शहंशाह

सामान्यता मनुष्य सामाजिक नीति नियमों को मददेनजर रखकर ही अपने मापदण्डों को निर्धारित करता हैं इन्हीं अपने दैनिक क्रियाकलापों एवं गतिविधियों को संचालित निर्धारित भी करता है पर कभी कभी वह इन सामाजिक नियमों एवं कानूनों से परे कुछ अजीब सोचने एंव करने लग जाता है। कुल मिलाकर मन का आवेग किसी एक विशेष पहलू पर वेगमान हो जाता है। यह वेग विधेयात्मक और निषेधात्मक भी हो सकता हैं प्रायः निषेधात्मक स्वरूप को सनक कहते है समाज में ऐसे सनकियों की कोई कमी नहीं है इस दायरे में अतिविशिष्ट प्रसिद्ध एवं आम लोग भी आते है।

राजस्थान की सांस्कृतिक राजधानी कहलाने वाले शहर सूर्यनगरी में भी सनकियों की कोई कमी नहीं है। सनकियों की इसी फेहरिस्त में एक जाना पहचाना नाम है नन्दकिशोर गहलोत। राजस्थान परिवहन निगम की केन्द्रीय कार्यशाला जोधपुर में द्वितीय रेणी के कर्मचारी अप होस्टर के रूप में कार्यरत यह व्यक्ति अपने परिचितों के अलावा पूरे देश में माचिसों वाला नन्दू के रूप में प्रसिद्ध प्राप्त कर चुका है।

महामन्दिर क्षेत्र के शक्तिनगर में रहने वाला नन्दू पिछले 40 वर्षों से दुनिया भर की दुर्लभ माचिसों का संग्रह करता आ रहा है। राष्ट्रीय एंव विश्व रिकार्ड बनाने के उद्देश्य से जारी उसका यह शौक कब आदत में बदल गया खुद उसे भी पता नहीं चला।

जब मैं नन्दू से साक्षात्कार लेने उसके घर पहुंचा तो उसने बताया कि मुझे बचपन से ही खाली माचिसे संग्रहित करने के प्रति अनुराग पैदा हो गया। कब यह अनुराग कब और कैसे पैदा हुआ यह तय कर पाना बहुत मुश्किल है मेरे लिए। पहले पहल तो यह मेरा खेल हुआ करता था और खेल खेल में यह रूचि मेरी जिन्दगी में कब धड़कन की भांति समा गई मुझे पता ही नहीं चला।

50 वसंत पार कर चुके मिडिल पास नन्दू ने चर्चा के दौरान अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि मैं मुश्किल से 10 वर्ष की उम्र का था जब मुझे रंग बिरंगी माचिसों के प्रति आकर्षण पैदा हुआ और इसी आकर्षण ने मुझे माचिसे इकट्ठा करने की इंस्पिरेशन दी तब से अब तक अनवरत यह लत जारी है। मैं रात दिन इस कार्य में संलग्न हूं क्यों कि मेरी जिन्दगी का एकमात्र उद्देश्य लिम्बा बुक ऑफ  इण्डियन रिकॉर्डस गिनीज बुक व ऑफ  वल्र्ड रिकॉर्डस में बने ऐसे माचिस संग्रहण के सभी रिकार्डों को धाराशाही करना है।

माचिसों के पीछे अंधी दौड़ ने जहां मेरी पढ़ाई में खलल डाली वहीं माता पिता और परिवारजनों ने भी समय समय पर खूब जी भरकर डांटा फटकारा। कई बार डांट फटकार के बाद भी कड़ी के चलते मेरी खुब धुलाई भी हुई। लेकिन सब प्रयासों ने मेरे शौक को मंद या बंद तो नहीं किया हां लेकिन मेरा यह जुनून और तेजी से बढ़ने लगा।

मेरे इस जुनूनीपन को देखते हुए मेरे घरवालों ने कई बार तो मेरे इस शौक को छुड़वाने की दृष्टि से कई बार मेरे सारे के सारे संग्रह को कई बार फाड़ा तो कहीं बार इनकी बिन मौसम की होली जली। तब कहीं जाकर मेरी समझ में यह बात घुसी कि सिर्फ इकट्ठा करना और सहेजना ही काफी नहीं है उसे सुरक्षित रखना भी संग्राहक की बहुत बडी जिम्मेदारी है।

बचपन से लेकर आज तक जो जो माचिसे नन्द को मिली उन्हें नन्दू सहेजता रहा। आज दिन तक नन्दू के पासं उसके खजाने में लगभग 4 लाख 50 हजार से अधिक देशी विदेशी और दुर्लभ माचिसे संग्रहित है। उसके इस अनोखे प्रकार के मैच बॉक्स म्यूजियम में माचिस कम्पनियों द्वारा समय समय पर जारी विशेष प्रकार की माचिसों के सेट और संभवयता एक ही बार जारी हुई माचिसें भी संग्रहित है। उसने अपने इस विशालतम संग्रह को सुविधा की दृष्टि से कई भागों में विभक्त कर लिया है जिसे मोटे तौर पर धर्म सम्प्रदायों के महापुरूष] रेंगने वाले सरीसृप, इमारतें, अंक, विज्ञापन, पशु पक्षी, इतिहास के प्रसिद्ध  चरित्र, फिल्म अभिनेता, अभिनेत्रियां, क्रिकेटर इत्यादि भागों में बांटा जा सकता है। इनके इस खजाने में विदेशी माचिसों की श्रृंखला में चीन सिंगापुर, नेपाल, पाकिस्तान, अमेरिका, कनाडा इत्यादि देशा की कई माचिसे मौजूद है।

मनीष गहलोत

मनीष गहलोत

मुख्य सम्पादक, माली सैनी संदेश पत्रिका