फेस-टू-फेस : शफ़ा की खेती में रमें है माली !

साइंस और टेक्नॉलाजी के इस युग में जहां मेडिकल सेवाओं की तरक्की आसमान छू रही है, मंदसौर में एक शख्स ऐसा भी है जो हड्डी और नसों की तकलीफें अपने हाथों की कुछ टेक्नीक्स आजमा कर ठीक कर देते है और आश्चर्य ये कि दिनभर में 100 से अधिक लोगों की मोच, जकड़न या एसे ही कष्टों को दूर करने की उनकी फीस है शून्य याने कुछ नहीं।

ये मसीहाई शख्सियत है जगदीश माली की जिन्हें मंदसौर ही नहीं देश भर से आए मरीजों को ठीक करने का पुण्य हासिल है। जगदीश माली बताते है कि उनकी मां कस्तूराबाई वैद्य थी जिनसे उन्होंने ये हुनर 8 साल की उम्र से सीखना शुरू कर दिया था और 18 साल का होते होते वे पूर्ण रूप से लोगों को ठीक करने लगे थे। यह क्रम जगदीश जी अनवरत यानी 60 की उम्र तक करते आ रहे हैं जगदीश भाई का जीवन कड़े संघर्ष की दास्तान है आज भी वे सुबह से देर रात तक अपने खेत पे काम करते है, ज्यादा अर्जेन्ट मरीज उनके खेत पर ही आ जाते है, अपनी गरीबी और अभावों के कठिनतम समय में भी उन्होंने अपने इस सेवा कार्य के बदले एक रूपया तक नहीं लिया वे इसे बालाजी और सांवरिया सेठ की कृपा बताते है, अंदाजा है कि वे आज भी अगर मिनिमन 10 रूपए भी एक पेशेन्ट से लें तो लखपति करोड़पति यूं हो सकते है, जगदीश भाई अपने नाती पातों से भरे पूरे परिवार मैं खुश है उनके परिवार के किसी सदस्य ने उन्हें इस काम से कभी नहीं रोका। पोतियां अरूणा, तरूणा, चंचल, विनिता और वंचिता बताती है जब स्कूल में उनकी सहेलियां कई बार दादाजी की बात करती है तो उन्हें गर्व होता है, पोते अभिषेक, देवेष और राघव भी चाहते है कि ये परम्परा आगे चलती रहे। जगदीश माली ने जीवन भर नाम कमाया है और कमाई है दुआ उन्हें सन्तोष है कि उनका बेटा सुनील भी इस सेवा के लिए तैयार है याने जगदीश दादा के छोटे से कमरे से कराहते हुए आकर हंसते हुए जाने वाले लोगों का काफिला अभी अगली पीढ़ी तक जारी रहने वाला है।

मनीष गहलोत

मनीष गहलोत

मुख्य सम्पादक, माली सैनी संदेश पत्रिका