किसान प्रेमशंकर माली बना रहे पौष्टिक प्रोडक्ट

किसान प्रेमशंकर माली बना रहे पौष्टिक प्रोडक्ट

कभी खाए हैं मशरुम के लड्डू, बिस्किट, नमकीन और पापड़ प्रदेश में बूंदी का एकमात्र किसान प्रेमशंकर माली बना रहे पौष्टिक प्रोडक्ट

खेती को फायदे का सौदा बनाने की पहल सालभर मशरूम उगाई जा सकती है, थोड़ी मेहनत, देखभाल से 30 से 45 दिन में फसल तैयार

बूंदी मोतीचूर, बेसन या बूंदी के लड्डू, तो खाए-खिलाए भी होंगे, मशरूम की सब्जी भी खाई होगी, पर मशरूम लड्डू भी होते हैं, हममें से ज्यादातर ने सुना भी शायद नहीं होगा। नयावस्था गांव के किसान प्रेमशंकर सैनी मशरूम के पापड़ लड्डू नमकीन, बिस्किट और कई तरह के प्रॉडक्ट घर में ही तैयार कर रहे हैं। प्रेमशंकर इस नवाचार के लिए राज्यस्तर पर सम्मानित हो चुके हैं। बूंदी, कोटा, टॉक, जयपुर से जोधपुर तक से ऑर्डर भी आ रहे हैं। किसान सैनी ये नवाचार किया है, ताकि खेती फायदे का सौदा बन सके, मशरूम और इसके बने प्रॉडक्ट से लोगों को सेहत भी चंगी रहे।

वे मशरूम से बने पापड़, बिस्कुट, नमकीन, लड्डू, प्रोटीन पावडर और अन्य प्रॉडक्ट बनाकर कोटा, बूंदी, टॉक, जयपुर, जोधपुर तक सप्लाई करने लगे हैं। मशरूम के हेल्दी और टेस्टी प्रॉडक्ट लोगों को पसंद आने से ऑर्डर भी बढ़ रहे हैं। मशरूम फाइव स्टार होटल्स की सब्जी रही है।

खेत की जरूरत नहीं झोपड़ी में भी उगाई जा सकती है

प्रेमशंकर ने इस नवाचार के लिए मशरूम का बीज 100 रुपए किलो में जयपुर से खरीदा। 20 बाई 20 की पराल की झोंपड़ी में मशरूम उगाई। बीज, भूसे, देखभाल पर करीब 8 से 10 हजार का खर्च पड़ा।

कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक खेती को फायदे का सौदा बनाने और किसानों की इनकम दोगुनी करने के लिए प्रयोग, प्रोजेक्ट और प्रशिक्षण करते रहते हैं। किसान प्रेमशंकर खेती में नवाचार कर पैसा कमाना चाहते थे। केवीके की गृहविज्ञानी डॉ. कमला महाजनी ने उन्हें मशरूम की खेती और उसके प्रॉडक्ट बनाकर बेचने का सुझाव दिया। आर्या परियोजना में 21 दिन की ट्रेनिंग में मशरूम उगाने, प्रॉडक्ट बनाने और उनकी मार्केटिंग के टिप्स सिखाए गए। इसके बाद प्रेमशंकर ने घर पर ही छोटी सी जगह में मशरूम की खेती कर प्रॉडक्ट बनाने शुरू कर दिए आइडिया चल निकला। आज वे मशरूम के हेल्दी प्रॉडक्ट बना और बेच रहे हैं। दूसरे किसान भी प्रेरित हो रहे हैं। कई किसान उनके पास उन्नत पैदावार के तौर तरीके सीखने आ रहे हैं।

ये बताते हैं कि सालभर मशरूम उगाई जा सकती है, इसे अंधेरा और भूसा चाहिए। इसलिए झोपड़ी बनानी पड़ती है गर्मियों में झोपड़ी में एसी भी लगाना पड़ता है। मशरूम की फसल 40 से 45 दिन में थोड़ी मेहनत, देखभाल से तैयार हो जाती है। ना ही इसमें खेत की जरूरत है। सैनी बताते हैं कि मशरूम की कई किस्में हैं। वे ढींगरी मशरूम उगा रहे हैं। मशरूम सेहत के लिए बहुत अच्छी होती है। इसमें वसा, शर्करा की मात्रा कम होती है, जो डायबिटीज, मोटापा, ब्लडप्रेशर में फायदेमंदर रहती है। इससे बने प्रॉडक्ट में प्रोटीन, फास्फोरस, कॉपर, पोटेशियम व सेलिनियम जैसे तत्वों के अलावा विटामीन सी, बी और डी भी होता है। जो शरीर में पोषक तत्वों की कमी पूरी करता है। यह इम्युनिटी पावर बढ़ाती है और हड़ियों के लिए अच्छी है। जनरल फिजिशियन डॉ. ओपी मीणा बताते है कि मशरूम में केलोस्ट्रॉल, स्टार्च और वसा कम मात्रा कम होती होने से यह हार्ट और शुगर पेशेंट के मोटापा, ब्लडप्रेशर में फायदेमंद है। इसे बीटा ग्लुकेन नाम का तत्व होता है।

वसा कम होने से मोटापा कम होता है रेशेदार, क्षारीय तत्व ज्यादा होने से कब्ज, अजीर्ण में भी फायदेमंद है कई बीमारियों के खिलाफ इम्युनिटी पावर बढ़ाने की भी क्षमता होती है।

किसानों की आय बढ़ाने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र, बूंदी किसान युवाओं, महिलाओं को रोजगार से जोड़ने के लिए कई तरह के व्यावसायिक ट्रेनिंग दे रहा है। डॉ. कमला महाजनी, गृहवैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र

खुद ही प्रोडक्ट तैयार करने, उसकी मार्केटिंग करने की ट्रेनिंग कृषि विज्ञान केंद्र बूंदी पर उन्नत और व्यावसायिक खेती, देता है। इनमें से एक युवा किसान प्रेमशंकर सैनी भी है। – डॉ. हरीश वर्मा, अध्यक्ष, कृषि विज्ञान केंद्र

मनीष गहलोत

मनीष गहलोत

मुख्य सम्पादक, माली सैनी संदेश पत्रिका