माली जाति का प्रमाणिक इतिहास
माहुर माली
स्वर्ण की औलाद जिसका खिताब महाबर हुआ था, कुछ अर्सें बाद माहुर कहलाई। मालियों की यह सब से पुरानी और असली कौम है।माहुर माली राजपूताने की पूरबी रियासतों और उनसे मिले हुए मुलकों में ज्यादा हैं जबकि वे मारवाड़ में कम है। शहर और कस्बे जोधपुर में जहाँ सब जगह से ज्यादा यानी 4000 घर मालियों के हैं। सिर्फ एक घर माहुर माली का है जिसके मोरिसआला खीमा के बेटे को संवत 1255 के करीब मारवाड़ के माली राजपूत मथुरा से लाये थे। खेता की औलाद के कुछ माली नागौर और सोजत में भी रहते हैं।माहुरों की खांपों के नाम मुउेरवाल, चूरीवाल, दांतलया, जमालपुरया, और दधेड़ा आदि हैं। जो जयपुर, अलवर, हांसी, हिसार, दिल्ली, आगरा, मथुरा और वृंदावन की तरफ बसी हुई हैं।
खांपें – माहुर माली
माहुर मालियों की 24 खांपे हैं जिनमें से नीचे लिखी हुई खांपों के नाम ही हमें मालूम हो सके हैं:-
- मथुरया माली जो मारवाड़ में रहते हैं। यह अपने को सुदामावंशी बताते हैं और कहते है कि सुदामा कंस का माली था। जब भगवान् श्रीकृष्ण मथुरा में कंस को मारने के लिये पधारे थे तो सुदामा ने उनको फूलों के हार पहिनाये थे और उसकी बहन कुब्जा ने चंदन घिसकर उन पर लगाया था। वह कुबड़ी थी। भगवान ने लात मारकर उसकी कूबड़ मिटा दी। फिर जब वे कंस को मारकर आये तो कुब्जा के घर ठहरे थे। खेता खीमा का बेटा इसी खानदान से था। उसको राजपूत मालियों ने मथुरा से पुष्करजी बुलाकर अपने शामिल कर लिया था।
- अरडिया
- छरडिया
- मोराणा
- अमेरया
- बिसनोलिया – नारनोल में इनका निवास स्थान है।
- अदोपिया – ये मालवे में रहते हैं।
- धनोरिया
- तुरंगणया माली अजमेर में बसे हुए है।
मुरार माली
माहुर के खानदान में कई पीढ़ी पीछे मुरार नामक व्यक्ति हुआ। जिसकी ओलादों में कहार अर्थात् भोई, सगरबंसी माली, पीतलया माली गिने जाते है। वे सिर्फ पीतल का ही गहना पहिनते हैं।
खांपें – मुरारमाली
इस थोक में विशेष करके वे माली आते हैं जिनके बाप-दादें परशुराम जी के डर से माली बने थे। इनकी खांपी के नाम निम्नलिखित सुनने में आये हैं –
1. फूलेरया
2. काछी
3. सगरवंशी
4. गुजराती
5. बहरा
6. ढीमरया
7. रेवा या कीर वे माली हैं जो नदियों के किनारों पर खेती बाड़ी करते हैं।