संत श्री जोगारामदास जी महाराज
विद्यार्थी जीवन से संन्यास की ओर – संत श्री जोगारामदास जी महाराज
हनुमान बगीची, तपयोग आश्रम, हाऊसिंग के पीछे, पाली (राज.)
माली समाज में अनेक संत-महात्माओं का आविर्भाव हुआ है जिन्होंने अपनी ईशभक्ति व महान् गुणों से न केवल माली समाज को अपितु मानव मात्र तथा इस धरा को भी गौरवान्व्ति किया है। ऐसे ही संतों में श्री जोगारामदास जी महाराज भी एक हैं। आपके सांसारिक माता-पिता जूनी बागर, महामंदिर, जोधपुर निवासी श्री लादूरामजी परिहार एवं श्रीमती सरियाबाई हैं। आपका जन्म जोधपुर शहर में ही 4 मई 1957 को हुआ। वर्तमान में आप हनुमान बगीची, तपयोगाश्रम, पाली (राज.) में साधनारत है। आपने माध्यमिक स्तर की औपचारिक शिक्षा प्राप्त की। तत्पश्चात् वन विभाग मे ‘‘गार्ड’’ के रूप में सेवाए प्रदान की। संसार में वैराग्य होने पर एकान्त स्थान ( श्मशान भूमि ) पर जाकर तपस्या की। संसार सागर को पार करने के लिए गुरु रामाशंकरजी महाराज की शरण में उनके बर ( पाली ) स्थित आश्रम में गये और 1979 में होली के दिन गुरु दीक्षा प्राप्त की। कुछ वर्ष यहां तपोसाधना करने के पश्चात् गुरुदेव की कृपा से पाली ( हनुमान बगीची ) में आश्रम स्थापित किया। आश्रम में आपके सद्प्रयत्नों तथा ईश्वर की अनुकम्पा से विशाल हनुमान मंदिर का निर्माण हुआ। आश्रम में ही अतिथि भोजन शाला, संत भोजन शाला, भक्तों के लिए आवास, भण्डार गृह आदि का भी निर्माण करवाया जा चुका है। भक्त वत्सल हनुमानजी आपके प्रमुख आराध्य हैं।
महाराजजी के सद्प्रयत्नों से पाली स्थित हनुमान बगीची आश्रम में परोपकार के अनेक कार्य संचालित हैं। पक्षियों को अनाज, पशुओं का चारा, रोगियों को निःशुल्क आयुर्वेदिक औषधि वितरण, चिकित्सा परामर्श, आगन्तुक साधु-संतों की सेवा आदि प्राणी मात्र के लिए हितकारी गतिविधियों का संचालन करते हुए आप अपने मानव-साधु जीवन को सार्थक कर रहे हैं। आपके तपयोगाश्रम, पाली में नवनिर्मित विशाल हनुमान मंदिर में हनुमान जी की 6 फीट ऊँची भव्य प्रतिमा की स्थापना 23 फरवरी, 2004 को सम्पन्न हुई आश्रम में प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव के रुप में पांच दिवसीय भव्य आयोजन 19 फरवरी से 23 फरवरी 2004 तक चला। इस शानदार पाँच दिवसीय धर्म महोत्सव में 19 फरवरी 2004 को गणपति पूजा, अरणी मंथन, एवं अग्नि स्थापना, कलश-यात्रा, महात्माओं के प्रवचन, 20 फरवरी 2004 को हवन, ध्वज व कलश की बोलियां, रात्रि में भजन संध्या, 21 फरवरी 2004 को हवन, आरती की बोली, सुंदरकाण्ड का पाठ, 22 फरवरी 2004 को हवन, हनुमान जी का महाभिषेक व आरती, प्राण-प्रतिष्ठा की मुख्य बोली 23 फरवरी को यज्ञ की पूर्णाहूति, प्राण प्रतिष्ठा व आरती, संत-महात्माओं का सम्मान एवं प्रसाद वितरण जैसे कार्यक्रम सम्पन्न हुए। महाराज एवं उनके पाली स्थित आश्रम की ओर से सभी धर्मप्रेमी, श्रद्धालु सादर आमंत्रण दिया गया था।