जन्म-सन्त श्री लिखमीदास जी महाराज
जन्म स्थान का परिचय
पश्चिमी राजस्थान के नागौर जिला एवं शहर से पूर्व की ओर करीब एक किलोमीटर दूर पर ग्राम चैनार बसा हुआ है। नागौर से चैनार जाते समय डीडवाना सड़क के पास दक्षिण की ओर एक सोलंकियों का बास है जिसका वर्तमान नाम बड़की बस्ती है। बड़की बस्ती का प्राचीन नाम भड़का कुआं है।
अधिकांश सोलंकी सर्वप्रथम शीतपुर पाटन से उठे। चैनार के बड़की बस्ती, जेठका तथा नागौर के बाड़ी कुआं के सोलंकी जैसलमेर तथा शातलमेर से आकर नागौर तथा चैनार के जेठका में बसे। चैनार तथा नागौर के सोलंकी जोधपुर महाराजा शूरसिंह जी के समय आकर बसे। महाराजा शूरसिंह जी का शासनकाल सन् 1595 से 1619 है। जेठका से सोलंकी रतलाम गये।
जन्म
सन्त लिखमीदास जी महाराज का जन्म विक्रम संवत् 1807, आषाठ सुदी 15 पूर्णिमा 08 जुलाई, 1750 को बास बड़की बस्ती, ग्राम चैनार, जिला नागौर, राजस्थान में रामूदास जी सोलंकी, सैनिक क्षत्रिय (माली) के घर श्रीमती नत्थी के कोख से हुआ।
इष्टदेव का मन्दिर
चैनार की बड़की बस्ती बास में आज दिन भी लिखमीदासजी के इष्टदेवता बाबा रामदेव जी महाराज का मन्दिर जीर्णशीर्ण अवस्था में खड़ा है। इस मन्दिर में लिखमीदास जी के सुपुत्र गेनदास जी की समाधि है।
पड़पोते किस्तूररामजी का समाधियां
चैनार के शक्कर तालाब के पश्चिमी पाल टोडिया ( ऊंचाई से पानी में कूदने का स्थान ) के पश्चिम की ओर एक छोटा सा मन्दिर है, जहां पर लिखमीदास जी के पड़पौते किस्तूरराम जी आदि सन्तों की समाधियां है। बड़की बस्ती तथा जेठ का बास आदि के व्यक्ति होली, दीपावली तथा बीमार होने पर यहां जाया करते थे। वहां जाने पर स्वस्थ हो जाते थे।
आपका स्वरुप
आप शरीर से कुछ लम्बे, गेरूआं रंग के थे तथा साधारण वेशभूषा पहिनते थे। धन्धा खेतीबाड़ी तथा अकाल पड़ने पर लकड़ी बेचते थे।
आपका बाल्यकाल
बडे बुजुर्गो के अनुसार आप बाल्यकाल से ईश्वर की आराधना में लीन रहने लगे थे। उसी समय से आपने बाबा रामदेवजी महाराज की सेवा शुरू कर दी थी।
आपका विवाह
जब आपने युवा अवस्था में प्रवेश किया तब आपका विवाह परमाराम जी टाक की सुपुत्री श्रीमती चैनी के साथ सम्पन्न हुआ । आपके विवाह के बाद आपके पिताजी रामूदासजी इस संसार से चल बसे। आपकी माताजी आपके पिताजी की तरह भक्ति में बराबर मार्गदर्शन करती रही। जिस समय आपकी आयु 25 वर्ष की हुई थी। तब आपकी माता जी भी परमधाम सिधार गई।
आपके गुरू
आपके गुरूजी का नाम खींयाराम जी था। जाति से खीयाराम जी राजपूत थे जो नागौर जिले के ग्राम गौआं के निवासी थे । गौआं नागौर शहर के पश्चिमी दिशा की ओर स्थित है।
आपकी भक्ति
लिखमीदास जी महाराज ने राजा जनक की तरह गृहस्थी के साथ बाबा रामदेव जी महाराज की भक्ति की थी।
आप द्वारा मेला
स्वयं लिखमीदास जी ने चेत बदी अष्टमी, विक्रम संवत् 1859 में जोधपुर महाराजा भीमसिंह जी के समय प्रथम बार बाबा रामदेव जी महाराज के मेले का आयोजन भडका कुआं, वर्तमान में बड़की बस्ती, चैनार में किया था जिसमें समस्त भारत तथा संसार के विभिन्न देशों के लाखें भक्तों ने बडे उत्साह से भाग लिया तथा हरिकीर्जन किया। महाराजा भमसिंह जी का शासनकाल ई. 1793 से 1803 रहा।
लिखमीदासजी के बाल-बच्चे
लिखमीदासजी के दो पुत्र तथा एक पुत्री थी। बड़े पुत्र का नाम जगराम जी, छोटे पुत्र का नाम नेदासजी तथा पुत्री का नाम बाई गेनाथा।
अमरपुरा गुरूद्वारा प्रधान कार्यालय
अमरपुरा गुरूद्वारा का सीधा सम्बन्ध रामदेवरा से है जबकि डेह, बाड़सर, गुड़ला, गौआं आदि धाम का सीधा सम्बन्ध अमरपुरा गुरूद्वारां से है।
धामां
(1) अमरपुरा (2) डेह, (3) गुड़ला और (4) बाउसर
मण्डली के लारे
कालडी भसवानी, मौलदासजी का धोग, जेठादास जी का धोरा, असाय, हरजी की ढाणी व सुजानदेसर ( बीकानेर ) आदि।
आपके पर्चे
लिखमीदास जी ने सैकड़ो पर्चे दिये। हजारों भजन तथा दोहों की रचना की। जैसी स्थिति होती आप उसी समय उनमें से वैसी वाणी बोलते थे। संसार तथा भारत के अधिकांश भाग में प्रतिदिन सुबह शाम तथा रात को भजन बोले जाते है। कई स्थानों पर आकाशवाणी से भी आपके भजन गाये जाते है। कुछ पर्चे निम्न प्रकार से है- घोड़ी से पैदल हाथ्र नहीं आना, अमरपुरा को खाली करना, महाराजा भीमसिंह जी (जोधपुर) का अडीट ठीक करना, झुंझाले में गुंसाई जी के मिन्दर का बिना चाभी वाणी द्वारा ताला खोलना, भगवान द्वारा गाड़ी के पहिये को ठीक कर चारभुजा से दर्शन देना, क्षमा मांग कर हाकम द्वारा आपको छोडना, बाड़ी में सिंचाई करना तथा दूसरे गांव में उसी समय सत्संग करना, समाधि ली उसी दिन अहमदाबाद में मुल्लां को दर्शन देना, जैसलमेर में एक लड़के को जीवित करना, भगवान द्वारा आपके खेत की कड़ब काटना, एक साथ एक समय दो गांवों में जागरणदेना, जीवित समाधि की पूर्व में सूचना देना, समाधि वाली वस्तुएं अहमदाबाद में मूला को देना, आदि है।
आपके मन्दिर का निर्माण तथा रंगीन कलैण्डर्स छपवाये जाये
समाज तथा भक्तगणों को चाहिये कि सभी स्थानों पर आपके मन्दिर बनाये। व्यापारीगण अपने विज्ञापन के लिए आरती सहित आपके रंगीन कलैण्डर्स छपवाकर पुण्य कार्य करें। शिवगंज, अहमदाबाद, मेरमरवाड़ा आदि स्थानों पर आपका मन्दिर हैं।
समाधि
लिखमीदास जी महाराज ने विक्रम संवत् 1897 आसोज बदी 6 (षष्टमी), 08 सितम्बर, 1830 को ग्राम अमरपुरा, जिला नागौर में जीवित समाधि ली थी।