21वीं सदी का आह्वान
पंचायत, स्थानीय निकाय विधानसभा, पार्लियामेन्ट तक न्यायोचित संख्या में भागीदारी के लिये माली (सैनी) कुशवाहा, शाक्य, मौर्य, मरार, कोयरी आदि समाज की सभी शाखाओं को कठिन संघर्ष करना है। आज भारत को आजादी मिले 55 साल हो गये हैं। 12 से 13 करोड़ जनसंख्या वाला समाज, कई शाखाओं और उपशाखाओं (गोत्रों) के नाम से स्थान-स्थान पर पृथक-पृथक अस्तित्व बनाए हुए है। वृहत भारतीय समाज में हमारी सामाजिक, प्रशासनिक, शैक्षणिक एवं राजनैतिक स्थिति सबसे कमजोर है। स्वतंत्र भारत में हमारी सहभागिता का इतिहास क्या है? इस पर हमे गम्भीर विचार करना है। क्या इस लोकतन्त्र में हमें न्यायोचित भागीदारी मिली हैं? क्या हमें, आई.ए.एस., आई.पी.एस. एवं न्याय पालिका में आरक्षण लाभ देने वाली अनुसूचित एवं पिछड़ी जातियों की तरह अवसर मिले हैं? क्या हमारे अखिल भारतीय महासभाओं ने व समाज के लोक सभा सदस्यों ने इस दिशों में कारगर कदम उठायें हैं? क्या प्रदेश महासभाओं ने अपने समाज के प्रतिभाशाली विद्यार्थियों के लिए शिक्षा, विज्ञान, न्यायशास्त्र, अभियांत्रिकी, मेडिकल, बुक बैंक, कोचिंग हेतु आर्थिक सहायता, छात्रावासों एवं समाज-भवनों के लिए जो करना चाहिये किया? क्या समाज-संगठन संरचना एवं संघर्ष के लिए कोई उदाहरणीय प्रसंग नजर आता हैं? क्या परिणाम निराशाजनक नहीं है। इस दयनीय स्थिति के लिए जिम्मेदार कौन हैं?
भारत के संविधान में सभी नागरिकों को स्वतन्त्रता समानता के मौलिक अधिकार प्रदान किये गये हैं। आज 10-15 प्रतिशत उच्च और चतुर जातियाँ संगठित होकर कई तरह के दांव-पेच खेलकर हमारे अधिकार छीन कर सत्ता-धन का लाभ प्राप्त कर रही हैं, अतः हमें भी अपने समाज को तेज गति से संगठित व सक्रिय कर अपने अधिकारों व सत्ता का लाभ उठाना है। आज अपने समाज की विभिन्न शाखाओं द्वारा अखिल भारतीय महासभाओं का गठन किया गया है इनके नेता समाज को अपने मौलिक अधिकारों की प्राप्ति के लिए संघर्ष हेतु जितना जागृत करना चाहिये नहीं कर सके। वो अपने पद तथा स्वार्थ का त्याग नही कर सकते और कई सामाजिक कुरीतियों तथा पुरानी रुढ़िवादिता का ही अनुसरण कर रहे हैं।
हमारा माली सैनी, कुशवाहा समाज जनसंख्या के अनुपात की तुलना में सता प्रशासन, न्यायपालिका, प्रेस की भागीदारी में नगण्य हैं। सामाजिक न्याय एवं समतावादी समाज की स्थापना के लिए पिछली सभी सरकारें उच्च एवं बलशाली जातियों के चक्रव्यूह से बाहर नही निकल पायी जो लोकतंत्रीय शासन व्यवस्था के लिए कलंक है। आरक्षण एवं संगठित होने से अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों की स्थिति हमसें बेहतर है। राजनैतिक क्षेत्र में स्वर्ण जाति के राजनेताओं ने पंचायत, नगरपालिका, नगर-निगमों, नगर परिषदों, राज्य विधानसभा, विधान-परिषदों में हमारा प्रतिनिधित्व कर छल कपट की गंदी राजनीति की हैं। संसद में जहाँ माली सैनी कुशवाहा समाज के 35-40 सांसद होने चाहिये वहाँ 10 से कम सांसद हैं। क्या हमारी राजनैतिक चेतना का दुःखद प्रसंग नहीं है?
हम किसी समाज या जाति के हक को मारना नहीं चाहते। हम सामाजिक न्याय व कानूनी समानता चाहते हैं। पिछड़े वर्ग को राजनैतिक भागीदारी से कोसों दूर रखा गया है। इस घोर उपेक्षा का संगठित होकर बदला ले सकते हैं और सामाजिक अन्याय का बोल-बाला समाप्त करा सकते है। समाजवाद की दुहाई देकर मुठ्ठी भर जातियाँ आम जनता के सभी प्रकार के अधिकारों पर कब्जा करके सता-स्वाद चख रही हैं।
हमारी अपार जन-शक्ति होते हुए भी हम एक नहीं हैं। अनेक गोत्रों, शाखाओं की अलग-अलग महासभाएँ है जो विभिन्न कमजोरियों एवं कुरीतियों से ग्रसित हैं और अपने स्वार्थ का त्याग नहीं कर सकती। हम सभी को चट्टानी एकता स्थापित करनी है। आज हम देखते है कि सभी प्रकार के ब्राह्मण एक हो रहे है जो कई तरह की शाखाओं में बँटे हुए हैं। यादव जो कई नामों से विभाजित हैं सामाजिक एकता प्रदान की हैं। ब्राह्मण, राजपूत तथा कायस्थ संगठन की एकता ने प्रशासन एवं राजनीति में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करा दिया है। हम माली सैनी कुशवाहा सैकड़ो गोत्रों में अलग-अलग राग अलाप रहे हैं, न आवाज में दम हैं और न संगठित जन शक्ति है। बिहार, महाराष्ट्र में माली सैनी कुशवाहा समाज जरूर कुछ आगे बढ़ा है।
समाज के बच्चों में अच्छे-अच्छे संस्कार डालने हैं, प्रतिभाशाली एवं मेधावी छात्रों को ज्यादा से ज्यादा आई.ए.एस., आई.पी.एस., आई.एफ.एस., आई.सी.एस., आई.आई.टी. आदि ज्यादा से ज्यादा बनाने हैं। इसके लिए समाज को सही नेतृत्व की आवश्यकता हैं। आजादी मिलने के बाद भी हम दिशाहीन भटक रहे हैं। केन्द्र सरकार या राज्य सरकारें प्रमुख जातियों के प्रतिनिधियों को शामिल करती रहती हैं, किन्तु माली सैनी कुशवाहा शाक्य मौर्य आदि पिछड़े समाज को पूरी उपेक्षा करने में उन्हें जरा भी संकोच व भय नहीं होता। 15 प्रतिशत संख्या वाले सवर्णों का प्रशासन तथा न्याय पालिका में 75 प्रतिशत से अधिक प्रतिनिधित्व है। ये गर्व से कहते हैं – अयोग्य एवं अक्षम व्यक्तियों के हाथों में देश की बागडोर नहीं दी जा सकती, जबकि हम सम्राट अशोक, चन्द्रगुप्त मौर्य, सम्राट शूर सैन, महात्मा बुद्ध, लव-कुश एवं महात्मा ज्याति राव फूले की सन्तान हैं, उनके जैसा पराम एवं शौर्य हमारी रगों में हैं।
हमे सामाजिक न्याय तभी मिलेगा जब अपनी बिखरी शाखाओं-गोत्रों को एक माला में पिरोया जायेगा, एक साथ चलना होगा एव आवाज के साथ। एक दूसरे की संवेदना को समझना होगा। इससे सामाजिक, राजनैतिक एवं शैक्षिणिक जागृति उत्पन्न होगी। ऐसे समय-समय पर एक मंच पर और अलग-अलग शाखाओं के सम्मेलन हुए हैं, जिसमें अपनी शाखाओं, उप-शाखाओं में जागृति आई है।
यदि लोकतन्त्र व्यवस्था से लाभ उठाना है तथा संवैधानिक अधिकारों को प्राप्त करना है तो सभी शाखाओं एवं उप-शाखाओं का एकीकरण कर महामंच को भारतीय संसद की तरह मान्यता प्रदान करना होगा।
एकीकरण के मंत्र के गंभीर प्रश्न तथा राष्ट्रीय स्तर पर विचार मंथन के लिए आगे बढ़े और निम्नांकित बिन्दुओं पर राष्ट्रीय बहस प्रारम्भ करें।
भावी कार्यक्रम –
- सम्पूर्ण समाज की सभी शाखाओं की एकता का ऐलान।
- समाज की जनगणना करना।
- जिला स्तर पर छात्रावासों का निर्माण।
- दिल्ली व प्रदेशों की राजधानियों में समाज भवन का निर्माण, आई.ए.एस., आई.ए.एस., आई.पी.एस. कोचिंग, लाईब्रेरी, छात्रावास सभागार, गेस्ट हाऊस एवं एकीकरण राष्ट्रीय केन्द्र।
- पंचायत एवं तहसील स्तर कतक कार्यकताओं का संगठन।
- पूर्णकालिक समाज सेवाकों एवं सेविकाओं को प्रोत्साहन।
- समाज की बहुलता वाले क्षेत्रों में गहन जागृति एवं नेतृत्व निर्माण।
- महिलाओं के सर्वांगीण विकास पर कार्य योजना बनाना। एकजुट होकर मतदान करने हेतु परस्पर संघर्ष नहीं करने का प्रण।
- जिला सम्मेलन एवं जिला संगठन हर जिले का सम्पर्क इन्टरनेट और ई-मेल डोट कॉम पर सूचना केन्द्र के माध्यम से।
- समाज की राष्ट्रीय पार्टी का गठन व (समानता पार्टी का गठन किया) स्थानीय पार्टिया बनाने हेतु आगे आना है।
- उन्नत शिक्षा के प्रति सामाजिक जागरूकता हेतु पत्रिकाओं का प्रकाशन।
- राजनीति में आगे लाने के लिए प्रमुख पार्टी प्रत्याशियों को आर्थिक सहयोग के लिए वित्त समिति का गठन करना।