माली – सैनी जाति की उत्पति
मानव सभ्यता
मानव – सभ्यता का उद्भव मानव की उत्पति से प्रारम्भ हुआ। मानव प्राणी का सबसे पहले जन्म कहाँ हुआ, इस विशय में विद्वानों की धरणाएँ अलग-अलग हैं । कई विद्वान् उसे सीरिया से, कई शिवालिका गिरिमाला से तो कई भारत के दक्षिण के पठार दण्डाकारण्य से उसे अनुमानित करते हैं। सम्भवतः मनुष्य भारत में ही पहले पहल उत्पन्न हुआ हो।
मानव – सभ्यता का उद्भव मानव की उत्पति से प्रारम्भ हुआ। मानव प्राणी का सबसे पहले जन्म कहाँ हुआ, इस विशय में विद्वानों की धरणाएँ अलग-अलग हैं । कई विद्वान् उसे सीरिया से, कई शिवालिका गिरिमाला से तो कई भारत के दक्षिण के पठार दण्डाकारण्य से उसे अनुमानित करते हैं। सम्भवतः मनुष्य भारत में ही पहले पहल उत्पन्न हुआ हो।
आर्य सभ्यता
मनुष्यों की समस्त जातियों में आर्य जाति सबसे श्रेष्ठ मानी जाती है। भारत में आर्यसभ्यता का विकास सरस्वती नदी के किनारों पर हुआ । प्राचीन काल में यमुना पूर्व की ओर न बहकर पश्चिम की ओर बहती थी और वह सरस्वती नदी में जाकर मिलती थी । आर्य लोग सरस्वती नदी को अत्यन्त पवित्र नदी मानते थे । इसी के किनारों पर वेदों की रचना हुई थी।
वर्णभेद
प्राचीन काल में आर्यों के अनेक समूह थे और उनमें कोई जातिप्रथा नहीं थी। उन पर कबीलों के नियम ही उस समय लागू होते थे। बाद में गुण और कर्म के अनुसार चार वर्णो की रचना हुई। वर्णव्यवस्था समाज का एक अंग प्रमुख बन गया । ब्राह्माणों के कर्म था यज्ञ करना, वेदादि धार्मिक ग्रंथों को पढ़ाना तथा अन्य वर्णों को धर्म का मार्ग दिखाना। दूसरा वर्ण क्षत्रिय था जिसका मुख्य कार्य था कबीलों की रक्षा करना, यज्ञ करना, वेदों का अध्ययन करना व समाज को नियंत्रण में रखना। तीसरा वर्ण वैश्य था जिसका मुख्य कार्य था कृषि तथा वाणिज्य-व्यापार करना, वेद पढ़ना आदि । चैथा वर्ण शुद्र था जिसका काम था उक्त तीनों वर्णों की सेवा करना अर्थात् उनकी सुविधा के लिये कार्य करना। गीता में भगवान् श्री कृष्ण ने कहा है –
‘‘चातुर्वण्र्यं मया सृष्टं गुणकर्म विभागशः।
तस्य कर्ता मां विद्वम, कर्तारमव्यम्।।’’
अर्थात् चारों वर्णों की उत्पति मेरे द्वारा उनके गुण और कर्मों के अनुसार की गई है। इसका अभिप्राय यह है कि जो लोग बुद्धि और ज्ञान बल के आधार पर समाज के मुखिया बने, वे ब्राह्माण कहलाये और जिन्होंने बाहुबल से समाज की रक्षा की, वे क्षत्रिय कहलाये, जिन्होंने कृषि और वाणिज्य द्वारा समाज का भरण – पोषण किया, वे वैश्य बने और शेष लोगों से इन तीन वर्णों की सेवादि का काम लिया जाने लगा।
क्षत्रिय वर्ण
इस प्रकार सम्पूर्ण आर्यजगत् ईश्वर का ही स्वरूप था जिसे कर्मों के आधार पर चार वर्णों में बांटा गया ताकि समाज का कार्य सुचारू रूप से चलता रहे। आगे चलकर यह अनुभव किया गया कि सामूहिक शासन ठीक नहीं है, अतः समूह में अपना प्रतिनिधि शासक बनाने का विचार किया और इसी कारण समूह द्वारा निर्णय लेने के बाद उसके प्रतिनिधियों ने एक क्षत्रिय को राजा बना दिया। शास्त्रों में क्षत्रिय के गुण इस प्रकार वर्णित किये गये हैं –
‘‘धृतव्रतः क्षत्रिय यज्ञनिष्कृतों, वृहदिनाध्वराणाभर्याश्रियः।
अग्निहोता ऋतसापों अदुहो से अष्टजनु वृत्रतये।।’’
अर्थात् क्षत्रिय नियमों का पालक, यज्ञ करने वाला, शत्रुओं का संहारक, युद्ध में धीर तथा युद्ध क्रियाओं का ज्ञाता होता है। क्षत्रिय शासक सदैव धर्म से डरते थे। वे ऐसा कोई कार्य नहीं करते थे जो धर्म के विरूद्ध होता था।
शास्त्रों में ऐसे भी उल्लेख है कि यदि राजा धर्म के नियमों का उल्लंघन कर उचछृंखल बनने का प्रयत्न करे तो जनता और ऋषि मिलकर उसे राजसिंहासन से हटा दें तथा उसके परिवार के अन्य योग्य सदस्य को राजसिंहासन पर शुभाशीन करें।
राजवंश
आर्यों के क्षत्रिय वर्ण में सूर्य नामक एक पुरूष हुआ जिसके वंशज सूर्यवंशी कहलाये। उन्होंने अपना संश-चिह्मगगनमंडल को प्रकाशित करने वाले सूर्य को बना लिया। प्राचीन काल में सूर्यवंशियों के अयोध्या, विदेह और वैशाली आदि राज्य थे। इस वंश की आगे चलकर अनेक शाखा-उपशाखाएँ बन गईं लेकिन वे सूर्यवंशी ही कहलाये यथा का कुत्सथ वंश, रघुवंश आदि।
ब्रह्माजी के एक पुत्र अर्थात् आदिकालीन ऋषि के वंशज सोम की संतति सोमवंशी ( चन्द्रवंशी ) कहलाई। इस वंश के छठे राजा ययाति के पुत्र राजा यदु के वंशज यदुवंशी कहलाए और यदुवंश की उनचालीसवी पीढ़ी में श्रीकृष्ण हुए। सोम अर्थात् चन्द्र का पुत्र बुध कहलाता था। उसकी पत्नी इला से पुरूरवा उत्पन्न हुआ। पुरूरवा की राजधानी प्रयाग के पास प्रतिष्ठानपुर ( पोहन गांव ) थी। इसके वंशज चन्द्रवंशी क्षत्रिय कहलाए। इसी वंष में ययाति और काश आदि हुए। काश ने काशी नगरी बसाई थी। ययाति के पांच पुत्र हुए- यदु, द्रुहृय, तुर्वासु, अनु और पुरू। पुरू के वंशज पौरव कहलाए और यदु के वंशज यादव कहलाए। यावद वंश में धन्धक और वृष्णि नामक दो बड़े प्रसिद्ध राजा हुए। अन्धक के वंश में उग्रसेन और कंस हुए जिनका मथुरा पर शासन था। वृष्णिवंश में कृष्ण हुए। वृष्णिवंश द्वारका जाकर वहाँ राज्य करने लगा। कन्नौज के चन्द्रवंशी राजा गाधि का पुत्र विश्वरथ था जो बाद में ऋषि विश्वामित्र के नाम से प्रसिद्ध हुआ। पौरव वंश में दुष्यन्त बड़ा शक्तिशाली राजा था। उसका पुत्र भरत चक्रवर्ती सम्राट् था जिसके नाम से हमारा देश भारत कहलाया। पौरव वंश में आगे चलकर भीष्मपितामाह, धृतराष्ट्र, पांडु, युधिष्ठर, अर्जुन और पीरक्षित आदि हुए।