सुखीबाई जी महाराज
– मदनसिंह सोलंकी, नागौर
विश्व के हिन्दुसतान देश में राजस्थान प्रदेश के पांचाल राजा द्रुपद के अधिकार क्षेत्र की नगरी महाभारत के जंगल जनपद नामक क्षेत्र की राजधानी महाकवि वृन्द, भक्त शिरोमणि मीराबाई, संत लिखमीदासजी, संत तारकीनजी, हीराबाईजी विद्वान, अब्दुल फजल फैजी, शूरवीर तेजाजी, अमरसिंजी राठौड़ तथा देश के लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण का सर्वप्रथम जवाहरलालजी नेहरू ने इसी धरती पर उद्घाटन किया था।
इसके अलावा नागपुर, अहिच्छपुर, नाग, हन, अहिपुर और वर्तमान में इनका नाम नागौर है।
नागौर जिले का क्षेत्रफल 17718 वर्ग कि.मी. है। वह राज्य के केन्द्र में 24.37 आकांक्ष उत्तर से 26 आक्षांस 63.05 पूर्वी देशान्तर से 75.02 देशान्तर के बीच आया हुआ है। यहां औसत वर्षा 31.29 सेन्टीमीटर होती हैं इसके उत्तरी पूर्वी भाग में कुछ पहाड़ियां है जो अरावली पर्वतमाला की श्रृंखलाएं है।
ऐसे स्थान पर किसी भाग्य वाले प्राणी का नाम मिलता है, जेसे मैने निम्नलिखित कविता तथा दोहों में कहा है –
धन्य है धन्य है तने रे, नागीणांरी धरती।
कोई चीज की कमी कोनी, सगली थारे भरती ।
नागीणा की छोड़ो बात, भाग वालों के आवे हाथ।
मदनसिंह को बुद्धि बल पईस्यो दे हमेशा साथ ।
नागीणों नारों से अड्डो नार अठे ही जल्मे।
मदनसिंह सुगलत अडे जद, खाल फोड़ दे पल में ।
नागीणा की धरती नामक मेरी कविता राष्ट्रीय स्तर पर इन्फैक्ट पत्रिका में जुलाई सितम्बर 1990 वर्ष 2, अंक 2 के अंतिम पेज पर प्रकाशित हुई जिसके सम्मान के रूप में चैक प्राप्त हुआ।
जन्म
पश्चिमी राजस्थान के नागौर जिला एवं शहर से पूर्व की ओर लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर ग्राम चेनार बसा हुआ हैं नागौर से चैनार जाते समय डीडवाना सड़क के दक्षिण की ओर जगावता बास बसा हुआ है जिसमें लगभग 80 मकान है तथा यह सभी सैनिक क्षत्रिय (माली) मारोटिया टाक हैं इसी मौहल्ले में मांगीलालजी टाक के घर वि.सं. 2014 कार्तिक वदी छठ को सुखीबाईजी का जन्म हुआ। इनकी माता का नाम श्रीमती झमकारी है।
शिक्षा
बचपन में इनके माता पिता ने इनको पौशाल या स्कूल नहीं भेजा। इसीलिए शिक्षा से वंचित रहना पड़ा लेकिन साधु संगत में आने पर मेहनत करके शिक्षा प्राप्त की। आज आप गीता, रामायण आर्दि धार्मिक ग्रन्थ आसानी से पढ़ लेती है तथा उनका अर्थ भी भक्तगणों को समझाती है।
विवाह
आपका विवाह लगभग 13-14 वर्ष की आयु में नागौर के कंवरीलालजी भाटी के साथ सम्पन्न हुई। आप तीन वर्ष तक ससुराल रही। लेकिन किसी कारणवश सम्बंध विच्छेद हो गये।
ईश्वर भक्ति की और आकर्षित
सम्बंध विच्छेद ( तलाक ) हो जाने के बाद आपने दूसरी जगह जाना उचित नहीं समझा। आपका मानना था कि यदि वास्तव में मेरे भाग्य में पति सुख होता तो यह सम्बंध विच्छेद नहीं होता। सच्चा सुख प्राप्त करने के लिए ईश्वर भक्ति की ओर मन लगाया और तीन चार वर्ष तक पिताजी के घर में ही ईश्वर का नाम लिया।
शरीर की परीक्षा
लगभग बारह वर्ष तक चैनार के रामसभा में साधु संतों के निर्देशन में तपस्या की, लेकिन चारद नहीं ओढ़ी अर्थात साध्वी की पौशाक धारण नहीं की। इस अवधि में मन पर पूर्ण रूप से विजय प्राप्त कर ली।
चादर अभिषेक
सैनिक क्षत्रिय (माली) रामसभा चैनार में रामस्नेही सम्प्रदाय के संत श्री पुरखारामजी महाराज की बरसी पर प्रति वर्ष की भांति दिनांक 7.12.1993 को रात्रि में सत्संग का आयोजन किया गया। जिसमें सतों ने भक्तों ने भाग लिया। इसमें रामस्नेही सम्प्रदाय के खेड़ापा पीठाचार्य श्री 1008 श्री पुरूषोत्तमदासजी महाराज ने भाग लिया।
दिनांक 8.12.1993 को दोपहर एक बजे सुखीबाईजी महाराज का सादर अभिषेरी रमतारामजी महारजा के कर कमलों द्वारा सम्पन्न हुआ। जिसमें सैकड़ो श्रद्धालुओं ने भगा लिया। रमताराजी मेड़ता रोड में भक्ति में लीन है।
वर्तमान में आप सैनिक क्षत्रिय ( माली ) रामसभा चैनार में विराजमान है तथा ईश्वर की भक्ति में लीन है। प्रतिदिन रामसभा में काफी संख्या में औरतें बच्चे तथा पुरूष आते है उनको प्रतिदिन रामायण गीता आदि पढ़ कर सुनाती है तथा उनका अर्थ समझाती है।
सत्संग में अनको भजन बोलने के लिए नहीं कहा जाता तो कोई फर्क नहीं पड़ता एक बोलने के लिए कहे तो एक सही और भजन कम बोलने वोले हो तो तो आप सारी रात अकेली भजन बोल लेती है। कहने का तात्पर्य यह है कि आप में किसी प्रकार का घमण्ड तथा ईश्या की कोई चीज नहीं है। आज के युग में बिरला ही ऐसा महाराज मिलता है।
मदनसिंह मन ने केवे भजले भाया राम।
ई शरीर को कांई पतो पल में आवे काम।।
नाम ही सुखी है सुखी संतोष में सुख।
मदनसिंह सोलंकी के हरि स्मरण मेटे दुख।।
मन में एक भ्रम का प्रवेश हो जाता है तो उसको निकालना आवश्यक हो जाता है क्योंकि एक भ्रम अनेक वास्तविकताओं पर अदृश्य डाल देता है।