महन्त सीताबाई जी महाराज
भारत के राजस्थान प्रदेश में सैनिक क्षत्रिय (माली) समाज में अनेक महान विभूतियां हुई है। जैसे संत विद्वान, शूरवीर, भामाशाह, खिलाड़ी कवि आदी। जिन्होंने अपने अपने क्षेत्र में महान कार्य करके अपना व समाज का नाम रोशन किया है जो सदैव स्मरणीय रहेगा।
इस संत परम्परा में प्रमुख रूप से संत शिरोमणि लिखमीदासजी महाराज, गेतदासजी महाराज, देवीदानजी महाराज, श्रीरामजी महाराज, महिसा संत अजनेश्वर जी महाराज, अचसरामजी महाराज, रामबक्षजी महाराज, अचलदासजी महाराज, अचसनारायणजी महाराज लक्ष्मणरामजी महाराज खेडापा, मीठाधीश्वर शिवसतयनाथजी महाराज बीकानेर, रामजीवनजी महाराज महिला संत सुखीबाईजी महाराज, आत्मारामजी महाराज आदि।
सीताबाईजी महाराज का जन्म राजस्थान के चूरू जिला के सुजानगढ़ के हनुमान घोरा में वि.सं. 2011 मिगसर वदी अमावस वार सोमवार को हुआ। आपके पिताजी का नाम श्री तनसुखदासजी जादम व माताजी का नाम श्रीमती शिवकंवरीदेवी जादम है। सीताबाई जी महाराज ने रा.प्रा. वि. घासप मालियान बस्ती सुजानगढ़ में 01 जुलाई 1957 को प्रथम कक्षा में प्रवेश लिया। दूसरी कक्षा तक पढ़कर एवं घरेलू परिस्थितियों के कारण सन 1959 में स्कूल छोड़ दिया।
सीताबाई जी महाराज की शादी चैत्र सुदी राम नवमी को वि.सं. 2023 में पड़िहारा रतनगढ़ निवासी श्री ताराचन्द टांक पिताश्री बेगराज के साथ हुई।
आपकी शादी के कुछ वर्ष बाद भी तारचन्दजी टाक पागल हो गये। इसके बावजूद आपके ससुराल वाले उठाकर ले जाने के लिए 10-12 व्यक्ति रात को गाड़ी लेकर आये। उस समय रात्रि के एक बजे थे। बाईजी के पिताजी व भाई घर के प्रांगण में पूरे परिवार के साथ सो रहे थे। बाईजी पिताजी व भाईयों के सफेद कपड़े पहने होने के कारण वे बाईजी को पहचान नहीं पाये तब उन लोगों को आपस में कानाफूसी करते सुना गया तब भाई की आंख खुली तो देखा 10712 आदमी चारपाईयों के चारों और खड़े थे पिसी हुई लाल मिर्ची की बदबू आ रही थी तब भाई ने हल्ला मचाया कि सब अपनी आंखों की हिफाजत करे। क्यों कि उन लोगों का इरादा आंखों में मिर्ची डालने का था। हो हल्ला सुनकर पड़ोस के लोग भी आ धमके। धक्का और छीना झपटी के बाद वे लोग अपनी गाड़ी में जा बैठे और गाड़ी को स्टार्ट करके भाग गये। लेकिन बाईजी शादी के बाद कभी भी ससुराल नहीं गई। बाई ने कोर्ट में जाकर तलाक दे दिया अब ताराचन्द्रजी इस दुनिया में नहीं है क्योंकि उनका स्वर्गवास हो गया।
बाईजी के घर में पीढ़ियों से सत्संग होती आई है। इसके कारण वे साधु संगत एवं भक्ति का माहौल बना रहा। बाईजी जब 5-6 वर्ष की थी तब आंगुतकों के आराम में रह रही संत तीजाबाईजी, मोहनी बाईजी आदि संतों के सानिध्य में रहकर तथा उनसे प्रेरणा लेने से बाईजी का मन संसार से उब कर भक्ति की ओर बढ़ गया। तीजोबाई जी मोहिनी बाईजी व स्वयं बाईजी कबीर सम्प्रदाय की है। बाईजी जब 15 वर्ष की तब आपको साधु बनने का गौरव प्राप्त हुआ। वि.सं. 2026 आषाढ़ सुदी पूर्णिमा पेंगा रामजी महाराज से गुरू मंत्र लिया और उसी दिन साधु का वेश धारण करके अपने सद्गुरू के साथ हो गये। गुरूजी के सानिध्य में चार वर्ष तक कबीर कुटिया जनाणा भक्ति की। कबीर कुटिया जानाणा गांव से पश्चिम दिशा में गोचर भूमित में नाडी के पायतन में स्थित हैं बाईजी के दादा गुरू का नाम श्री पेमारामजी महाराज और उनके पुत्रों में अनबन हो गई तब वे अपनी जन्म भूमि जनाणा को त्याग कर विक्रम संवत 2041 में गोविन्द गुडा बड़सी नागौर राजस्थान में अपने गुरूजी के साथ आये। गोविन्द गुफा में आने के बाद सत्संग द्वारा भक्तों के सहयोग से केवल एक कमरे का निर्माण करवाया। धीरे धीरे लगभग 22-23 में बड़ा आश्रम बना लिया। यह आश्रम गोविन्द गुफा के उत्तर दिशा में स्थित है। इस समय आश्रम के अधिन 10 बीघा जमीन है। कबीर सम्प्रदाय का मुख्यालय काशी (बनारस) में है।
बाईजी महाराज समय के अनुसार भजन बहुत अच्छे गाती है। गाये हुए भजनों का अच्छा अर्थ करती है, जो आम आदमी को आसानी से समझ में आ जाते है।
बाईजी महाराज की भक्ति का प्रभाव सुजानगढ़, नाऊ, बारड़ा, दड़ीबा, साडनू, मंगलपुरा, नागौर, छापर, डेगाना, सीकर, जयपुर, इंदौर, हैदराबाद आदि स्थानों में है।
सीताबाई महाराज के साधु बनने पर उनका पूरा परिवार केवल माता पिता को छोड़कर नाराज हो गया था पर बाई जी की भक्ति में लगन एवं दृढ़ विश्वास के कारण सभी परिवार वालों को अन्ततः झुकना पड़ा और अब सभी उनका सम्मान करते है। उनकी बातें मानते है, सत्संग करवाते है ओर बड़े खुशी से बुलवाते है।