सैनिक क्षत्रियकुलों की खांपें

देवड़ा

चैहानों की एक खांप देवड़ा है। सांभर के चैहानों की एक शाखा नाडोल में राज्य करती थी। इस शाखा के चौहान लाखण के वंश में आसाराव हुआ जिसकी पत्नी वाचाछल देवीस्वरूपा थी। उसके वंशज देवड़ा कहलाये। इन्हीं के वशजों में से लुम्बा ने वि.सं. 1368 में परमारों से चन्द्रावती व आबू छीन लिया। इनके वंशज शिवीभाण ने वि.सं. 1462 में सराणवा पहाड़ी पर दुर्ग बनाकर शिवपुर नामक नगर बसाया जो बाद में सिरोही कहलाया।

चालुक्य (सोलंकी)

चालुक्यवंशी क्षत्रिय सोलंकी भी कहलाते हैं। इस वंश की उत्पत्ति चन्द्रवंश से हुई है। इसकी पुष्टि ‘वीर नारायण मंदिर’ के अभिलेख कुलौनुंग के ताम्रपत्र और चोलदेव के अभिलेख से होती है। हेमचन्द्र लिखित ‘द्वयाश्रय’ काव्य में भी चालुक्यों को चन्द्रवंशी लिखा गया हैं। चालुक्यों को सोलंकी कहलाने का कारण उत्तर के चालुक्यों का ‘च’ के स्थान पर ‘स’ का प्रयोग करना है। अतः चालुक्यों से सालुक्य होकर अंत में सोलंकी हो गया है। विजयचन्द्र (1211-1126) और नरेश था। उसके वंशज चालुक्यों का मूल पुरूष मूलराज ( 941-996 ई.) था। उसके एक वंशज जयसिंह सिंहराज (1094-1142 ई.) ने नाडोल (पाली जिला) के चाहमान शासक आशाराज को अपना सामन्त बनाया था। सांभर के शिलालेख से ज्ञात होता है कि सिद्धराज ने शाकम्भरी के अर्णोराज को भी पराजित किया था। अतः तभी से ही इस क्षेत्र में चालुक्यों का आवागमन आरम्भ हुआ। सोलंकियों के नख हैं – लुदरेचा, लन्धा, लासेचा।

कच्छवाहा

कच्छवाहा अयोध्या के राम के बड़े पुत्र कुश के वंशज हैं। वे सूर्यवंशी हैं। कुश के वंशज होने के कारण कुशवाहा भी कहलाते हैं। कुश का एक वंशज कूरम था। अतः ये कूरमवंशी भी कहलाते हैं। ग्वालियर के ‘सास-बहू मंदिर’ के वि.स. 1045 के शिलालेख में इनको कच्छपघात, कच्छपारि आदि भी कहा गया है। इसी वंश के शासक नरवर के सोढदेव के पुत्र दूल्हराय ने वि.स. 1185 के लगभग आमेर के पास माची के कस्बे को जीत कर जमवाय रामगढ़ में अपना राज्य स्थापित किया था। माची गांव वर्तमान जयपुर नगर से 14 मील उत्तर-पूर्व में बसा हुआ है पहले वह मीणों के अधिकार में था। दूललराय ने माची को जीत कर वहाँ पर जमवामाता का मन्दिर बनवाया और माची का नाम रामगढ़ रखा। यह सन् 1137 की घटना है। बाद में जयपुर के निकट खोह जीतकर उसने खोह को अपनी राजधानी बनाया। उसने गेटोर, भोरवाड़ा आदि को भी जीता। उसके उत्तराधिकारी काकिल ने आमेर को 1207 में जीता और उसे ढूंढाड़ राज्य की राजधानी बनाया जो 1727 तक बनी रही। बाद में यहाँ के कच्छवाहा विभिन्न क्षेत्रों में जा बसे।