कांटो में गुलाब देखने की दृष्टि रामस्नेही संत श्री रामप्रसाद महाराज
कलियुग को सभी कोसते हैं। सभी क्रोध, राग, द्वेष और वासना से ग्रस्त हैं । को त्रेता और द्वापर युग के गुण गाता है तो कोई सतयुग के । कलियुग को सभी कोसते है। यह एक निराशावादी मन गुलाब के साथ लगे कांटों को ही देखता है। परन्तु जो आशावादी हैं, वे कांटों के संग गुलाब नहीं देखते बल्कि अपने सान्निध्य में आने वालों को भी वही दृष्टि प्रदान करते हैं जो कांटों के बीच खिले गुलाब को देख सकें ।
श्री बड़ारामद्वारा सूरसागर, जोधपुर के संत श्री रामप्रसाद जी महाराज ऐसे ही प्रज्ञा पुरूष हैं जो समाज में चारों ओर बिखरे कांटों की चुभन के साथ गुलाब एवं उसमें बसी खुशबू को महसूस करने की प्रेरणा देते है। वे समाज में चारों ओर व्याप्त अनैतिकता, अराजकता और असहिष्णुता के बावजूद निराश और हताश नहीं है वरन् दृढ़ आशावादी है कि भारतभूमि पर फिर नेकी और नैतिकता का साम्राज्य होगा। वे निराशा के अंधकार में भटकने वाले मानव को ‘राम नाम ‘ का अमोघ मंत्र दे रहे है। कहते है राम नाम जपते रहो, सारी बुरी प्रवृतियां पीछे हटती जाएंगी। राम नाम जपते रहो, प्रेम से जपो तो स्वत: ही सभी बुरी प्रवृतियां एवं अवरोध हट जाएंगे । क्रोध, वासना राग, द्वेष सब स्वत: हट जाएंगें ।
संत श्री रामप्रसाद जी महाराज कहते है क राम नाम जप में किसी विधि विधान, देश काल, अवस्था की कोई बाधा नहीं है। किसी प्रकार से कैसी भी अवस्था में, किसी भी परिस्थिति में, कहीं भी, कैसी भी राम नाम का जप किया जा सकता है। राम नाम जप से हर युग में भक्तों का भला हुआ है तो फिर कलियुग में क्यों नहीं होगा ? रामचरित मानस से तुलसीदास जी की एक चौपाई सुनाकर वे इसे स्पष्ट भी करते हैं। ‘कलियुग केवल नाम, अधारा, सुमिरि, सुमिरि नर उतरहिं पारा’ । तुलसीदास जी महाराज की इस चौपाई की व्याख्या करते हुए वे कहते है कि जनमानस की हालत देखकर ही रामायण में यह समझाया गया है कि कलियुग में बेशक बहुत – सी गड़बड़ियां होगी, मगर उन सबसे बचने का उपाय जितनी सरलता से कलियुग में मिल सकता है, उतनी सरलता से किसी और काल में नहीं मिला । पहले प्रभु को पाने के लिए ध्यान करना पड़ता था। त्रेता युग में योग से प्रभु मिलते थे तो द्वापर में कर्म – कांड से । ये मार्ग नितांत कठिन युग और घोर तपस्या के बाद ही फलीभूत होते थे पर कलियगु में ईश्वर को प्राप्त करना सरल हो गया है । केवल राम नाम जप ही औषधि है जिससे सभी रोग नष्ट हो जाते है ।
देश के वर्तमान हालात में राम, रामायण और राम – कथा कितने प्रांसगिक हैं? इस पर संत श्री रामप्रसाद जी महाराज का कहना है कि राम नाम जप जितना प्रासंगिक आज है, उतना पहले कभी नहीं रहा । चारों और संस्कारों का अकाल और अनैतिकता का बोल-बाला बढ़ रहा है। आज हम पश्चिम की नकल में स्वयं को धन्य समझ रहे हैं, जब जबकि पश्चिम तो पूर्व के संस्कारों से स्वयं को समृद्ध करने के सार्थक प्रयासों में रत है। उन्होंने कहा कि आज पूर्व में कोई भी प्रतिभा उभरने लगती है तो पश्चिम उसे अपने पास खींच लेता है। प्रतिभा पलायन के इस दौर में आज आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि हो रही है, हमारे पूर्वजों ने ज्ञान की जो थांती हमें ग्रंथों के रूप में सौंपी थी, वे भी आज पश्चिम को धन्य कर रही है। संस्कृत के इन ग्रंथों, जिनमें अध्यात्म, आयुर्वेद, संस्कारों, ज्ञान-विज्ञान और योग का खजाना छिपा हैं, वे पश्चिम को न केवल रास आने लगे है बल्कि वह इसे आत्मसात् करने को आतुर ह। सौंदर्य प्रतियोगिताओं का जिक्र करते हुए संत श्री रामप्रसाद जी महाराज कहते है अंग – प्रदर्शन अब पश्चिम की बजाय पूर्व में संस्कारों को लील रहा है। उन्होंने सवाल खड़ा किया कि क्या कारण है कि सदियों के बाद कोई एक दशक पूर्व से ही भारत की सुदिरियां विश्व की सर्वश्रेष्ठ सुन्दरियां चुनी जाने लगी है। अपने इस सवाल का जवाब स्वयं वे ही देते है कि इसके पीछे हमारी संस्कृति को नष्ट करने की गहरी और घिनौनी साजिश है। टेलीविजन के माध्यम से सुनियोजित ढंग से संस्कृति को विकृत और संस्कारों को नष्ट करने के प्रयास असहसनीय और अक्षम्य है।
ऐसे हालात से उबरने और उत्थान की क्या राह हो सकती है ? इस प्रश्न के उत्तर में संत श्री रामप्रसादजी का कहना था कि राम नाम जप । उन्होंने जोर देकर कहा कि राम नाम जप ही वह औषधि है जो आज के युग में अमोघ है।