जेठाराम उर्फ गणेश पंवार
राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा से समाज को गौरवान्वित करने वाले डीडवाना के इटली निवासी
इटली में राजस्थानी भाषा के राजदूत के रूप में सिंगर जेठाराम सैनी को गोरे लोग भी जानने लगे है। मायड़ भाषा में अपनी विशिष्ट शैली और अंदाज के माध्यम से सुरों के साधक ने युराप का कोई शहर नहीं छोड़ा होगा जहां उनके भजनों, गीतों की लय ताल नहीं बजी हो। अपने व्यवसाय एवं नौकरी के अलावा जो भी समय बचता है उसे बस भजन और गीतों के लिए ही छोड़ रखा हो जैसे।
सैनी जेठाराम का अब इटली के शहर में स्थाई निवास हो गया है। यहीं नहीं अपनी अपणायत, मुस्कराहट के जरिये राज्य से जाने वाले इन तक पहुंचने वाले प्रत्येक व्यक्ति को यथोचित समय, मान सम्मान दे कर उसका आतिथ्य भी करने में कहीं चूक नहीं करते।
यहाँ तक पहुंचने का मार्ग और उसके संघर्ष की गाथा हम सभी को प्रेरित करने वाली है। साधाराण से परिवार में जन्म लेकर अपना लक्ष्य साधना कितना कठिन है यह जेठाराम जी से ज्यादा कौन जान सकता है वैसे बचपन से ही पूत के पग पालने में दीखने लग गये थे। बाल्यवस्था में गीत और संगीत की साधना युवावस्था में पहुंचते पहुंचते परवान पहुंच गई। डीडवाना शहर एवं उसके बाहर भी उनकी आवाज की गूंज होने लगी। समाज के अलावा भी उनके सार्वजनिक कार्यक्रम होने लगे। कुल मिलाकर यह कहें कि उनका भजन पकने लगा था। सृजनात्मक प्रतिभा अंकुरित हो गई थी। भजनों के नामदारों में डीडवाना व उसके आस पास के क्षेत्रों में अपनी अलख से जाने पहचाने लगे। लेकिन कहते है पापी पेट सभी को थका देता है। धीरे धीरे जमीनी सच्चाई सामने आने लगी। गीत और भजनों से घर नहीं चल सकता था। तीन भाई दो बहिनें भरा पूरा परिवार कमाने वाले केवल एक। जेठाराम के पिताजी श्री हनुतारामजी के अकेले कंधों पर बोझ कुछ ज्यादा ही था। ऐसे में घर में सबसे बड़े होने के नाते अपने बड़े होने का दायित्व निर्वाहन करने के लिए जेठाराम जी ने डीडवाना में कभी बैंक में कभी बिजलीघर में अपनी श्रम साधना की।
विवाह के बाद जिम्मेदारियों का बोझ बढ़ने लगा था। उनकी पत्नी श्रीमति मुन्नीदेवी भी इन्हें जितना हो सके मदद करती पर सब कुछ होते हुए भी गाड़ी पटरी पर आने का नाम नहीं ले रही थी। जितना भी कुछ कमाते घर में खप जाता। संगीत साधना के लिए समय तक नहीं मिलता। ऐसे में उन्हे लगने लगा कि इन सपनों को जो उन्होंने बचपन में साधे थे पूरे नहीं हो सकेंगे। कुछ संकल्प कुछ विकल्पों की तलाश करते करते वे दुबई के लिए निकल गए। कुछ समय दुबई मे गुजारने के बाद सऊदी अरब में ही गुजरे। यहां पर एक बिजली कंपनी में लगे रहे। भजन कीर्तन यहा संभव नहीं हुए मन फिर निरंतर भजनों की ओर सक्रिय होने लगा, इस पशोपेश में सऊदी अरब को छोड़ कर फिर से डीडवाना लौट आए।
फिर से एक संकल्प। हर बार टूटते बिखरते जेठाराम जी ने हार नहीं बानी फिर से डीडवाना में होली पर लोकगीत गाते हुए छाने लगे कहते है संगीत में वो शक्ति है जो थके हुए को भी नाचने के लिए विवश कर देती है ऐसा ही कुछ जेठाराम जी के साथ हुआ होली के धमालो ने फिर से जीवन में धमाल मचा दिया धिरकते पांवो में घुघरूओं की नाद बजने लगी, कंठ से गीत नृत्य के जरिए लय ताल में अपने सारे दुखों को भूल गए।
वे बताते है कि ऐसी ही किसी सामाजिक कार्यक्रम में गा रहे थे तभी उनसे एक जौहरी मिलने आया और उन्हें पूछने लगा कि क्या मेरे साथ अपनी संगीत की स्वर लहरियों को निखरने के लिए यूरोप चलोगे। अंधे को तो जैसे कोई दो आंखे मिल गई थी।
जेठाराम जी ने दुबारा अपनी उड़ान को अवसर दिया। जर्मनी, पेरिस और इटली में इनके राजस्थानी गीत भजन सराहे जाने लगे। बहुत विचार कर उन्होंने इटली के शहर वेनिस पादवा सिटी को चुना और आज डीडवाना का यह लाल सिंगर जेठाराम उर्फ गणेश पंवार अपनी आवाज को अपनी ताकत बना कर अगस्त 1999 से इटली युरोप में राजस्थानी के राजदूत बन कर राजस्थानी भाषा का प्रचार प्रसार ही नहीं समाज का नाम रोशन कर रहे है। जेठाराम जी ने इटली में सलासार हनुमान जी के मंदिर को बनवानें में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई यहीं नहीं यूरोप में आपके ऑनलाइन शो होते है और फेस बुक पर राजस्थान एसोसियेशन यूके पेज के माध्यम से भी भजनों के कार्यक्रमों का आयोजन कर वहां रह रहे भारतीय लोगों को मायड़ भाषा और धर्म और अध्यात्म से जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य कर रहे है। अपनी जमीन से जुड़े होने के कारण आपने अपने पुत्र का विवाह डीडवाना में आयोजित समाज के सामूहिक विवाह में कर आदर्श उदाहरण भी प्रस्तुत किया था जिस पर समाज की ओर से आपको सम्मानित भी किया गया।
हमें मरूधरा के इस लाल पर गर्व है।