अविनाश कुमार कुशवाह को स्कल्पचर आर्ट में प्रणव मुखर्जी ने भी दिया राज्य स्तरीय पुरस्कार
कल पंचर जोड़ने को मजबूर थे जो हाथ, आज कला की दम पर पा रहे सम्मान अविनाश कुमार कुशवाह, स्कल्पचर आर्ट में प्रणव मुखर्जी ने भी दिया राज्य स्तरीय पुरस्कार
सम्मान : ग्वालियर / मिर्जापुरा । कहते है कलाकार की कला को चाह कर भी दबाया और अनदेखा नहीं किया जा सकता । चाहे उसके सामने समस्याओं का पहाड़ हो या फिर घर-परिवार की जिम्मेदारियों का भार, वे भी कलाकार की कला को दबा नहीं सकते। इस बात को चरितार्थ करता है मिजांपुर में जन्मे अचिनाश मौर्या (कुशवाहा) का जीवन । युवा कलाकार अविनाश के जीवन की कहानी कला और दायित्व के बीच की है। एक ओर अपनी सोच में खोया-खोया रहने वाला यह कलाकार समाजसेवा के लिए महामहिम से प्रणव मुखर्जी के हाथी सम्मान पा चुका है तो वहीं अपने परिवार के दायित्वों को रा करने के लिए साईकिल की पंचर जोड़ने से भी पीछे नहीं हटा। उसने अनेक संघर्षो के बावजूद भी अपनी कला का गला नहीं घुटने दिया ।
उत्तर प्रदेश के अनुसार जिले के एक ग्राम खटहा पोस्ट पटिहटा तहसील चुनार में 13 अप्रैल 1995 को जन्म अविनाश मौर्या कुशवाहा एक गरीब पंचर सुधारने की दुकान ही पूरे परिवार के रोजी-रोटी का स्त्रोत है। आपकी मां का नाम श्रीमती मनोरमा देवी है, जो एक कुशल गृहणी हैं और एक छोटा भाई है आकाश बाबू मौर्य । स्पकल्पचर क्ले मोडलिंग, पीओडी, फाइवर एवं स्टोन वर्क की कला में माहिर अविनाश को स्काउट गाइड में उत्कृष्ट सेवा के लिए भी 2012 में प्रणव मुखजीं द्वारा राज्यपाल पुरस्कार लखनऊ में दिया गया । इस पुरस्कार को पाने के बाद उनके परिवार ने उन्हें साइकिल मरम्मत की दुकान पर पंचर जोड़ने के कार्य से मुक्त कर उन्हें कला निखारने की इच्छा मन लिए भारत भवन भोपश्न अपने चाचा दूर के रिश्तेदार के यहां पहुंचे। लेकिन कुछ दिन रूकने पर उन्हें वहां सतुष्टि नहीं मिली तो अविनाश ने ग्वालियर आकर श्वसकीय ललित कला महाविद्यालय में एडमिशन से लिया और अपनी कला को निखारा। इसके बाद युवा कलाकार अविनाश ने विगत वर्ष 2014 में 20 से 22 मई तीन दिवसीय सामूहिक कला प्रदर्शनी का आयोजन कर अपनी कलाकृतियों को जनमानस के समक्ष प्रस्तुत किया और कलाप्रमियों की वाह-वाही लूटी। ( बेलचर्स ऑफ फाइन आर्ट ) बीएफए के थर्ड इयर के छात्र अविनाश मौर्य ने कुश प्रकाश को मनोभाव बताते हुए कहा की हाईस्कूल की परीक्षा 2010 में जनता जनांदन इण्टर कॉलेज भुड़कुडॉ मिजांपुर ( उ.प्र. से उत्तीर्ण की और 2011 में ) डिप्लोमा इन कम्पयूटर एप्लिकेशन डीसीए कोर्स भी किया। उन्होंने बताया कि परिवार को आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण मुझे अक्सर पिताजी की दुकान साइकिल मरम्मत और पंचर जोड़ने के कार्य में हाथ बंटाना पड़ता था । मेरी रूचि पड़ाई-लिखाई में न होने और ये मान दुकान पर काम करने के कारण में गहरी सोच में डूबा रहकर अधिकतर शांत-शांत की रहता था, जिस कारण कुछ लोग मुझे पागल कहकर मेरा उपहार भी करते थे। पर मुझे विश्वास था कि मै अपनी कला को अंजाम अवश्य दूंगा ।