समाज के युवा श्री तरुण सैनी नाम मात्र के शुल्क पर शिक्षा प्रदान कर रहे है, आज 8 लाख ऑन लाईन स्टूडेंट्स और 40 लाख फ्लोवर्स है
ऑस्ट्रेलिया में नौकरी छोड़ 2 साल पहले ऑनलाइन स्कूल शुरू किया, अब 5 करोड़ टर्न ओवर रू. 250 रु. में ज्वॉइन कर सकते हैं क्लास
हरियाणा के अंबाला जिले में रहने वाले तरुण सैनी एक किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनकी 12वीं तक पढ़ाई गांव में ही हुई । इसके बाद उन्हें स्कॉलरशिप मिली और वे ऑस्ट्रेलिया चले गए। वहां मेलबर्न यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने 4 साल तक डोर टू डोर सेल्समैन का काम किया। इसके बाद वे ऑस्ट्रेलियाई सरकार के एक एजुकेशन प्रोजेक्ट से जुड़ गए। करीब ढाई साल काम करने के बाद 2018 में तरुण भारत लौट आए और एक ऑनलाइन एजुकेशन प्लेटफॉर्म लॉन्च किया । जिसके जरिये वे हिंदी, अंग्रेजी के साथ-साथ लोकल लैंग्वेज में स्टूडेंट्स को ऑनलाइन एजुकेशन प्रोवाइड करा रहे हैं। देशभर से हर महीने 8 लाख स्टूडेंट्स उनकी लाइव क्लास अटैंड करते हैं। 40 लाख से ज्यादा उनके ऑनलाइन सब्सक्राइबर्स हैं। ऑनलाइन स्कूल का टर्नओवर 5 करोड़ रुपए है।
एक ही प्लेटफॉर्म पर हर सब्जेक्ट की क्लास हो इसलिए शुरू किया स्टार्टअप
अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए 31 साल के तरुण बताते हैं कि उनके गांव में पढ़ाई की बेहतर सुविधा नहीं थी। आसपास कोई बेहतर टीचर भी नहीं था । उन्हें ट्यूशन के लिए 30 से 35 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता था। वे सुबह जल्दी घर से निकलते थे और वापस लौटते-लौटते शाम हो जाती थी । वे कहते हैं कि जब तीन साल पहले मैं इंडिया लौटा तो देखा कि अभी भी हमारे यहां हालात बहुत ज्यादा नहीं बदले हैं। गांवों में स्मार्टफोन तो पहुंच गया है, लेकिन बेहतर स्कूल नहीं हैं। अभी भी गांव के बच्चों को ट्यूशन के लिए दूर शहर जाना पड़ता है। ऊपर से जितने सब्जेक्ट्स, उतने टीचर । यानी स्टूडेंट्स का पूरा दिन यहां से वहां जाने में ही निकल जाता है।
तरुण बताते हैं कि चूंकि मैंने एजुकेशन फील्ड में काम किया है तो तय किया कि क्यों न इन बच्चों की सहूलियत के लिए कुछ काम किया जाए। शुरुआत में तरुण और उनकी टीम ने कुछ महीने रिसर्च में बिताए । वे अलग-अलग राज्यों में गए। वहां गांवों और पंचायतों का दौरा किया। लोगों से मिले। गांव के बच्चे कैसे पढ़ते हैं, बोर्ड की तैयारी करने वाले छात्रों को क्या-क्या दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इसको लेकर डेटा कलेक्ट किया। फिर अगस्त 2018 में वेबसाइट और यूट्यूब के जरिए विद्याकुल नाम से ऑनलाइन स्कूल की शुरुआत की ।
तरुण कहते हैं कि शुरुआत में एजुकेशन फील्ड में काम करने वाले लोगों ने हमें भरपूर सपोर्ट किया। कोटा के अजय त्यागी ने हमें सबसे पहले फंड दिया था। इसके बाद कई लोगों ने हमें फंड दिए । अब तो हम सेल्फ डिपेंडेंट हो गए हैं। साल 2019 से हमने सही तरीके से काम करना शुरू कर दिया। इसके बाद अगले साल यानी फरवरी 2020 में हमने अपना ऐप भी लॉन्च कर दिया ।
लोकल लैंग्वेज पर फोकस किया ताकि गांव के बच्चों को नहीं हो दिक्कत
तरुण कहते हैं कि देश में कई ऑनलाइन एजुकेशनल प्लेटफॉर्म हैं, लेकिन ज्यादातर अंग्रेजी मीडियम में हैं। ऐसे में हिंदी भाषी राज्यों या जहां लोकल लैंग्वेज की डिमांड ज्यादा है, उन्हें इसका ठीक तरह से लाभ नहीं मिल पाता है। देश में करीब 70 प्रतिकात बच्चे स्टेट बोर्ड से ताल्लुक रखते हैं। अकेले यूपी बोर्ड के छात्रों की संख्या सीबीएसई वालों से ज्यादा है। ऐसे में लैंग्वेज की वजह से ज्यादातर छात्र ऑनलाइन एजुकेशन से दूर रह जाते हैं । इसलिए हमने हिंदी और लोकल लैंग्वेज पर ज्यादा फोकस किया ।
तरुण के मुताबिक अभी वे यूपी, बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश सहित 10 राज्यों को कवर कर रहे हैं। इसके साथ ही वे गुजराती और मराठी में भी ऑनलाइन एजुकेशन उपलब्ध करा रहे हैं। उनकी टीम में हर सब्जेक्ट के टीचर्स की लिस्ट है। करीब 100 टीचर अभी उनके साथ जुड़े हैं। वे कहते हैं कि अभी हमारा फोकस हिंदी भाषी स्टेट बोर्ड पर है। क्लास 9वीं से लेकर 12वीं तक के बच्चे हमसे जुड़े हैं। वे अपने मोबाइल ऐप के जरिए या कंप्यूटर की मदद से ऑनलाइन क्लास से जुड़ सकते हैं। हमारा ऑनलाइन क्लास फिजिकल क्लास की तरह ही होता है । चैप्टर वाइज और सब्जेक्ट वाइज टीचर्स के लेक्चर्स फिक्स्ड रहते हैं।