तैराक किरण टाक
अंतराष्ट्रीय पैरा तैराक किरण टाक ने जीते सैकड़ों गोल्ड मैडल
दिव्यांगता को आर्शीवाद मान अंतराष्ट्रीय पैरा तैराकी में पाया मुकाम
जोधपुर। ‘‘बुलंद हो हौसला तो मुट्ठी में हर मुकाम है, मुश्किलें और मुसीबतें तो जिंदगी में आम है, डर मुझे भी लगा फासला देखकर, पर में बढ़ती गई रास्ता देखकर, खुद-ब-खुद मेरी मंजिल मेरा हौसला देखकर।‘’ यह कहना है अंतराष्ट्रीय पैरा तैराक व कोच किरण टाक का। जिसने अपने जुनून से अंतराष्ट्रीय स्तर पर तैराकी में सैकड़ों गोल्ड पदक अपने नाम किए है। जोधपुर के पूंजला क्षेत्र में निवासी किरण को तीन वर्ष की उम्र में बुखार आने पर एक चिकित्सक ने इंजेक्शन लगा दिया। जिसके कारण उनका बांया पैर पोलियो ग्रस्त हो गया। दो साल तक बिस्तर में रहने के बाद माता-पिता व परिजनों ने हर तरह का चिकित्सक उपचार करवाया। जिसे वह बैठने तो लगी परन्तु चलना मुश्किल था। लेकिन दूसरों की तरह पैरों पर खड़े होने और चलने का जुनून नहीं छोड़ा। पांचवी तक घर पर शिक्षा ग्रहण करने के बाद अपने भाई-बहनों के साथ स्कूल जाने की जिद्द करने पर छठी में प्रवेश लिया। स्कूल में जिला स्तरीय तैराकी प्रतियोगिता के लिए अपना पंजीयन करवाया तो घरवालों ने मना कर दिया। उस समय घर के पास एक तालाब में प्रतिभागी तैरने का अभ्यास करने आते थे। किरण ने भी तैरना सीखा और अपने माता-पिता को विश्वास दिलाते हुए आठवीं कक्षा के दौरान फिर से प्रतियोगिता में अपना पंजीयन करवाया। उस समय सामान्य प्रतिभागी के तौर पर पहला पुरस्कार प्राप्त किया। उसके बाद राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में भाग लेने नागौर जाने पर एक कोच ने बताया कि दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए अलग प्रतियोगिता होती है और उसी वर्ष दिल्ली में आयोजित पैरा तैराकी प्रतियोगिता में किरण ने चार स्वर्ण पदक के साथ सर्वश्रेष्ठ चैम्पियनपशिप शील्ड भी जीती।
इसके साथ किरण का पैरा गेम्स का सफर शुरू हुआ। अब किरण चार से छह घंटे अभ्यास करने लगी। वर्ष 2003 में अपने पैरों के सुधार के लिए सर्जरी करवा कर किरण बिना सहारे चलने लगी अैर पुनः अभ्यास करने लगी। मेहनत की वजह से ही वर्ष 2005 में किरण का चयन इंग्लैड में आयोजित ओपन चैम्पियनशिप में हुआ। जहां अंतराष्ट्रीय पैरा तैराकी प्रतियोगिता में किरण ने देश के लिए पहला स्वर्ण पदक हासिल किया। यहां से किरण के सपनों को पंख लग चुके थे। फिर किरण ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और कॉमनवेल्थ 2010 और 2018 में भाग लेकर देश के लिए खेलती गई और पदक अपने नाम करती गई। वर्ष 2008-09 में तैराकी के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान के लिए उन्हें खेलों के प्रतिष्ठित महाराणा प्रताप पुरस्कार वर्ष 2017 में नवाजा गया। किरण ने अपनी तरह संघर्ष कर रही दिव्यांग प्रतिभाओं को तराशने के लिए कोच बनने का विकल्प चुना और नेताजी सुभाष राष्ट्रीय खेल संस्थान (एनएसएनआईएसद्) से डिप्लोमा किया जिसकी वजह से किरण का भारतीय खेल प्राधिकरण ( साईद् ) का कोच बनने का सपना पूरा हो गया। कोच बनने पर अन्य पैरा खिलाड़ियों को अपने से बेहतर बनने के लिए किरण प्रोत्साहित भी करने लगी। वर्तमान में स्पोर्ट अथोरिटी ऑफ गुजरात में काम कर रही है। किरण ने कहा कि मेरी दिव्यांगता मेरे संकल्प के लिए आशीर्वाद थी। जिसे मेरे जीवन में आना था और मुझे सफल बनाना था।
किरण के इस सफर में बहुत दिक्कतें भी आई मुझे याद है उसे प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए धन की आवश्यकता पड़ने पर वो अनेकों सामाजिक संस्थाओं में स्वयं गई लेकिन वहां से सहयोग कम और भरोसा ज्यादा मिला लेकिन किरण टाक ने कभी हार नहीं मानी। समाज की होनहार बेटी किरण के मुख पर हमेशा मुस्कराहट रहती है जो उसके बुलंद हौसलें को बताती है हमें किरण पर गर्व है आज किरण जिस मुकाम पर पहुंची है वो सब उसकी स्वयं की कड़ी मेहनत का नतीजा है उसका कोई गॉड फादर नहीं है।