सुश्री (डॉ.) निशा टाक – समाज की होनहार प्रतिभा
डाॅ. निशा का जन्म जोधपुर क मध्यमवर्गीय व्यवसायी श्री परसराम टाक के यहां सन् 1984 में हुआ था। निशा ने स्कूल शिक्षा सेंट पेट्रीक्स विद्या भवन से अर्जित की है। आपने प्रथम श्रेणी से दसवीं एवं बारहवी बोर्ड परीक्षा उत्तीर्ण किया। निशा ने बी.एस.सी. बायोलॉजी, प्राणी शास्त्र एवं वनस्पति शास्त्र विषयों में लाचु मेमोरियल कॉलेज से की हैं निशा ने एम.एस.सी. वनस्पति शास्त्र विभाग, जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय से की एवं उनकी विभाग में द्वितीय मेरीट रही। बायोलॉजी की प्रति प्रेम, अनुसंधान के प्रति उत्साह एवं नई चीजों को सीखने की लालक निशा में हमेशा से रही हैं। निशा मेहनती एवं सदेव दूसरों की सहायता करने वाली होनहार लड़की हैं।
निशा ने वर्ष 2008 में NET-CSIR की परीक्षा उत्तीण की एवं उन्हें पांच वर्ष तक CSIR की तरफ से छात्रवृति भी प्रदान की गई। निशा ने प्रोफेसर हुकम सिंह गहलोत के निर्देशक में मरूस्थल में पायी जाने वाली स्थानीय फलीदार पौधों( लेग्यूम ) टेफ्रोशिया ( बियानी ) की जडों में पाए जान वाले नाईट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले जीवाणुओं पर अनुसन्धान बी.एन.एफ लेब, वनस्पति शास्त्र विभाग, जे.एन.वी.यु,जोधपुर से किया है। अपनी पी.एच.डी. कार्य के अन्तर्गत बियानी की जडो में पाये जाने वाले दो सौ जड़-ग्रंथि बैक्टीरिया पर शोध किया है। आणविक उपकरण एवं बायोइनफॉर्मेटिक्स की सहायता से यह ज्ञात हुआ की मरूस्थल के लेग्यूम से जुडे
सहजीवी जीवाणु एन्सीफर, राईजोबियम एवं ब्रेडीराजोबियम की नवीन प्रजातियां हैं। थार रेगिस्तान की मृदा क्षारिय है तथा दूसरे अन्य भौगोलिक कारको की वजह से यह जीवाणु उदविकास के समय विविध प्रकार के हो गए। यह नए एण्डोफाइटस आनुवांशिकी रूप से विविध है और शुष्क पारिस्थितिकी तंत्र में रहने हेतु यह जीव उच्च ताममान व लवण में प्रति सहनशील बन जाते है। अपने इस शोधकार्य को उन्होंने विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय जर्न एवं पुस्तकों में प्रकाशित किया है। आपने विभिन्न राष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लिया एवं मौखिम प्रस्तुति भी दी है। जैव सूचना विज्ञान एवं जातिवृत्तीय जैसे क्षेत्रों में आपने विशेषज्ञता प्राप्त की है। आपने सौ से भी अधिक बैक्टीरियल न्युक्यिोटाइड अनुक्रमों को एनसीबीआई में जमा करवाया । निशा भारतीय वानस्पतिक संध एवं एसोसिएशन ऑफ माइक्रोबायलोजीसट ऑफ इण्डिया की आजीवन सदस्य है।
आपको अमेरिकन सोसायअी फोर माइक्रोबायोलोजी ने ASM-IUSSTF इंडो अमरीकन-2012 रिसर्च प्रोफेसरशिप प्रदान की जिसके अन्तर्गत निशा कैतिफार्मिया विश्वविद्यालय, लॉस एंजिल्स गई और वहां पर प्रो.एन.हिर्सच के साथ ग्रीन फलोरेसेन्ट प्रोटीन ( जी.एफ.पी ) की सहायकता से भारतीय थार रेगिस्तान में पाई जाने वाली राईजोबियम की नव प्रजातियों की थार डेजर्ट के स्थानीय एवं फसलीय लेग्यूम के साथ सहजीविता एवं अन्र्तसम्बंधो पर UCL । के ग्लास घर में अनुसंधान किया। इस जी.एफ.पी. तकनीक से सहजीविता को प्रमाणित किया जा सकता है। इस तकनीक पर विभाग में अध्ययनरत स्नातकोत्तर विद्यार्थी एवं शोधार्थीयों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
इससे पहले निशा आस्ट्रेलिया के सेन्टर फोर राईजोबियम स्टडीज (CRS) मुरडोक विश्वविद्यालय, पर्थ में क्रोफोर्ड फंड में अन्तर्गत आणविक अभिनिर्धारण पर उच्च प्रशिक्षण प्राप्त कर चुकी है जिससे विभाग में जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण ( BNF ) पर चल रहे शोधकार्य को लाभ हुआ।
निशा कृषि के लिए अतिमहत्वपूर्ण इन नवीन जीवाणुओं की खोज, संरक्षण एवं परिरक्षण कर रही है ताकि भविष्य में इनका उपयोग जैविक खाद के रूप में किया जा सके। जिससे प्राकृतिक रूप से भूमि की उर्वरता और कृषि उत्पादन बढ़ाया जा सके।
थार में नए जीवाणु की खोज रासायनिक खाद के दुष्परिणाम कम करने में होगा सहायक
थार रेगिस्तान में नाईट्राजन स्थिरीकरण करने वाले जड़-ग्रंथी जीवाणु की खोज की गई है। अभिनव बायो कैमिकल व आणविक उपकरण की सहायता से इन सूक्ष्म जीवों की पहचान की गई। भविष्य में इन सूक्ष्म जीवों को उपयोग जैविक खाद के रूप में किया जा सकेगा,जो कृषि क्षेत्र में रासायनिक खाद से होने वाले दुष्परिणाम कम करने में भी सहायक होंगे।
पौधों की वृद्धि में सहायक
आणविक अनुसंधान से यह भी पुष्टि हुई है कि टेफ्रोशिया की जड़ों में पाए जाने वाले एण्डोफाइटस आनुवंशिकी रूप से विविध हैं और पौधों की वृद्धि में सहायक हैं नवीन साइनोराजोबियम की प्रजाति का यह पूर्ण जीनोम अनुक्रम अमरीका के जॉइंट जीनोम संस्थान ( जेजीआई ) के सहयोग से किया गया है। विशेषज्ञों के अनुसार किसी भी नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले जीवाणुओं की पूर्ण जीनोम के अनुक्रम की यह पहली रिपोर्ट है।
इंडो-अमरीकन 2012 रिसर्च प्रोफेसरशिप के तहत मैंने कैलिफोर्निया विवि लॉस एंजिल्स में थार में पाई जाने वाली राइजोबियम की नई प्रजातियों की स्थानीय फसलीय लैग्यूम के साथ सहजीविता व अंतर सम्बन्धों पर अनुसंधान कर सहजीविता को प्रमाणित किया है।
डॉ. निशा टाक
( लेक्चरर ) वनस्पति शास्त्र विभाग, जे.एन.वी.यू. जोधपुर।