शताब्दी पुरुष स्वर्गीय श्री रामेश्वर सिंह गहलोत
मात्र 14 वर्ष में उम्र में गीत संगीत का कार्य, हजारों मारवाड़ी गीतों एवं संगीत को नया आयाम दे गीतकार, लोक कलाकारों संगीतकारों को तैयार करने वाले एच.एम.वी. के उत्तर भारत के संस्थापक अध्यक्ष वाले रामेश्वर सिंह गहलोत इनके निर्देशन में राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री जयनारायण व्यास ने देशभक्ति के अपने लिखे गीतों को रिकॉर्ड एवं आवाज दी।
नगर पालिका के चैयरमेन रहते अनेकों विकास कार्य जिसमें प्रमुख जालोरी बारी को चोड़ा करवाना। राजेन्द्र चौक घंटाघर में पार्क व दुकानें बनवाना, सीताराम बेबी पार्क बनवाना, गांधी अस्पताल के सामने रास्ता चोड़ा करवाना, रावण के मेले के अयोजन की शुरूआत करवाना। जोधपुर रोटरी क्लब के संस्थापक सदस्य महाराजा हनुवंत सिंह के | साथ टेनिस खेलने वाले हमारे समाज के युग पुरूष ।
104 वर्ष पूर्व स्थापित मारवाड़ी गीतों की प्रथम कंपनी मारवाड़ रिकॉर्ड कंपनी के डॉयरेक्टर गीतकार संगीतकार बाबूजी के नाम से मशहूर परम आदरणीय श्रीमान रामेश्वर सिंह गहलोत की पुण्यतिथि पर सादर नमन, विनम्र श्रद्वाजंलि सरल, मृदुभाषी व कर्तव्यनिष्ठ शताब्दी पुरुष रामेश्वरसिंह गहलोत सूर्यनगरी में किसी परिचय के मोहताज नहीं है। चालीस के दशक में सूर्यनगरी के लोक कलाकारों की आवाज लाख की बनी रिकार्ड पर अंकित कर देश के कोने-कोने पर पहुंचाने वाले करिश्माई व्यक्तित्व के धनी रामेश्वर सिंह गहलोत ने मारवाड़ी रेकर्डस म्यूजिकल वापस मारवाड़ी रिकॉर्ड कम्पनी सिर्फ गीत संगीत के रिकॉर्ड ही तैयार नहीं किए व गीतकार, गायक संगीतकार भी तैयार किए आज जब न तो लाख की बनी इन रिकॉद को बजाने के यंत्र माने ग्रामोफोन उपलब्ध है। कंपनी ने सौ वर्ष पूर्व हजारों मारवाड़ी गीतों का गीत संगीत देकर देश विदेश में न केवल लाख की रिकॉर्ड पर धूम मचाई थी। ‘लटकी छोड़ दे जोगीड़ा तू तो असल फकीर’ मारवाड़ी रिकॉर्ड कम्पनी ने सिर्फ गीत संगीत के रिकॉर्ड ही तैयार नहीं किए वरन गीतकार, गायक व संगीतकार भी तैयार किए। संस्थान में म्यूजिक मास्टर तुलसीदास डांगी, मगराज भगत मास्टर दूल्हा, मास्टर इमामक्स भीष्मदेव चेदी, गणपतलाल दांगी, गोपालदास, मुन्नीलाल पंडित शिवराम बाबूलाल माथुर तथा धीरासेन जैसे कलाकारों को देश भर में मशहूर कर दिया। बाद में पंडित शिवराम व बाबूलाल आदि ने फिल्मी जगत में काफी नाम कमाया जबकि गणपतलाल डांगी जयपुर आकाशवाणी में धूम मचाते रहे। इनके वंशज आज भी आकाशवाणी में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
आज जब न तो लाख को बनी इन रिकॉर्ड्स को बजाने के यंत्र याने ग्रामोफोन उपलब्ध है तथा इसके बाद वजूद में आई तकनीक कैसेट्स के रूप में भी लुप्त प्रायः हो रही है तथा सीडी व डीवीडी का जमाना भी अब गया। ऐसे में इस कम्पनी द्वारा बनाए गए हजारों रिकार्ड्स का खजाना किसी प्रकार सहेजने के प्रयास में लगे है दुर्गासिंह को चौथी पीढ़ी के दिपेश गहलोत रियासती काल में लोकपर्व, लोक त्यौहार, शादी विवाह व अन्य अवसरों पर लोक ‘गम दिए मुस्तकिल, कितना नाजुक है दिल ये न जाना, हाय हाय ये जालिम जमाना’ चोटी कलाकार राजसी ठानी शौकत के साथ गाते थे राजसी दौर में गायकों, गायिकाओं के संगीतकार नौशाद की बनाई धुन पर चालीस के दशक में फिल्म शंहशाह के लिए के. व संगीतकारों को दरबार में स्थान मिलने के साथ ही संरक्षण भी प्राप्त था तब लेगा, एल. सहगल का गाया यह गीत आज भी आम लोगों में चर्चित है। यह बहुत कम लोग जानते मांगनियार, बोली सहित अन्य जातियों के कलाकार भी मधुर लोक संगीत व गीत की समझ है कि उन दिनों इस मशहूर गीत को बनाने में मारवाड़ी रिकॉर्ड कम्पनी का बहुत बड़ा हाथ रखते थे लोकसंगीत की यह परंपरा कालांतर में राजमहलों से निकल कर पारसी थियेटरों था नाटक मंडलियों तथा रास अथवा मंचीय कार्यक्रमों की शोभा बनने लगी। बोलते सिनेमा के आविष्कार के साथ ही लोक संगीत फिल्मी संगीत का अंग बन गया। इसके फलस्वरूप देश में रिकार्डिंग कंपनियों का प्रभाव हुआ जिसे अंग्रेज व्यापारियों व भारतीय धनकुबेरो का वरहस्त प्राप्त था मारवाड़ी लोक गीतों व संगीत को जोधपुर में ही रिकॉर्ड करने के लिए सूर्यनगरी के जिस सपूत ने अपने सीमित साधनों व सीमित पूंजी के दम पर आरम्भ किया उनका नाम दुर्गासिंह गहलोत था। सोजती गेट क्षेत्र में सिलाई का व्यवसाय करने वाले दुर्गासिंह गहलोत ने वर्ष 1934 में पहले एचएमवी रिकॉर्डिंग कम्पनी की एजेंसी खोली, बाद में कम्पनी के तकनीशियनों की मदद से जोधपुर में ही रिकॉर्डिंग स्टूडियो शुरू करते हुए यहां के मशहूर लोक गायको संगीतकारों कलाकारों की आवाज व संगीत रिकॉर्ड करना आरम्भ किया। द मारवाड़ी रेकर्ड्स म्यूजिकल वॉयस के नाम से शुरू की गई इस कम्पनी के तहत जोधपुर में ही कलकत्ता से रिकॉर्डिंग इंजीनियर आते तथा यहाँ के गायक व गायिकाओं, मिस जस्सी, मिस बाबूड़ी, मिस जेठी, धापी, कल्लू, खुशाली, लच्छू, सिकरलाल, शंकरलाल, रमजान खां, वजीर खां इमामुद्दीन व अल्लाजिलाई आदि के गीत संगीत रिकॉर्ड किए गए। दुर्गासिंह के आरंभिक प्रयासों को उनके पुत्र रामेश्वरसिंह गहलोत ने परवान चढ़ाया। उन्होंने चालीस के दशक में लगभग प्रतिमाह तीन से चार गीतों की रिकॉर्डिंग करते हुए स्थानीय गायकों, वादको व संगीतकारों को देश भर में मशहूर कर दिया।
एक विवाह समारोह में संगीतकार नौशाद ने शादी के गीतों का एक मारवाड़ी रिकॉर्ड सुना जिसके बोल ‘थेभल आया हो किराम जी देस हमारे..’ यह गीत सुनते ही इसकी धुन नौशाद के जेहन में फिट हो गई तथा शहनशाह का गीत बन गया। इसी प्रकार फिल्म ‘अनमोल घड़ी’ का गीत ‘आवाज दे कहां है…, बैजूबावरा का अंखियां मिला के जिया भरमा के चले नहीं जाना… और हो जी हो… तू गंगा की मौज मैं जमुना की धारा जैसे मांड व राजस्थानी लोकगीतों की तर्ज पर आधारित सैकड़ों गीतों ने चालीस व पचास के दशक में देश भर में धूम मचाई। मारवाड़ी रिकॉर्ड म्यूजिकल वॉयस ने इस प्रकार न सिर्फ स्थानीय कलाकारों को प्रोत्साहित किया वरन् यहां की जबरदस्त लोककला को जाने अन्जाने में फिल्मों के माध्यम से लाखों लोगो तक भी पहुंचाया।
गीतों की रिकॉर्डिंग के पहले कई दिनों तक रिहर्सल होती थी व इस दौरान सभी साजिदी, गायकी, संगीतकारों तथा अन्य सहयोगियों का खाना भी वहीं बनता था। पंचास के दशक में राज्य के मुख्यमंत्री रहे जयनारायण व्यास ने भी इस कम्पनी में स्वयं के ही लिखे हुए गीत रिकॉर्ड करवाए थे। आज भी यह रिकॉर्ड तथा इसका कवर भी सम्भाल कर रखा हुआ है। इस रिकॉर्ड के एक और ‘भारत आजाद करायो रे म्हारो बाबो गांधीजी तथा दूसरी और एक भजन’ आजा म्हारे कंठ बैठना भवानी…’ रिकॉर्ड किया हुआ है।
कुल्ले के सामने ग्रामोफोन वाला हिज मास्टर्स वॉयस का विश्व प्रसिद्ध लोगो आज एंटीक पीस की गिनती में आता है यही हाल ग्रामोफोन बाजे पर बजने वाली लाख की चूड़ियों तथा कालांतर में बनी प्लास्टिक की ईपी व एलपी रिकॉर्ड्स का हुआ है। अस्सी के दशक में ऑडियो को दुनिया में आई क्रान्ति में ग्रामोफोन व रिकॉर्डस की जगह ऑडियो टेप ने हथिया ली। मोम की डिस्क पर रिकॉर्ड को तकनीक की जगह स्कूल वाले टेप ने ली तथा रिकॉर्डिंग तकनीक में बदलाव भी आया चालीस पचास व साठ के दशक में मोम की डिस्क पर रिकॉर्ड होने वाले गीत सत्तर के दशक समाप्त होने तक नई तकनीक से रिकॉर्ड होने लगे। इस दौरान मारवाड़ी रिकॉर्ड्स कम्पनी ने मारवाड़ के आंचलिक गीत-गणगौर, महाराजा मानसिंह की आंगरिक गाल नाजुकड़ी ब्याण लोक प्रचलित गाल शिकरी होली ये बावरियो, खड़ी खड़ी मोरी जान, सौनो सोलवां का मगरी छोड़ दे, बतवी, चरखां, मांड राग लूर सारंग के गीत, भजन, जयपुरी बोली के गीत, मेवाती गीत, मालवी गीत जैन चाएं मालवी व जैसलमेरी गीत भी रिकार्ड किए। इन गीतों में शंकरलाल चावड़ा, धनीराम, पूसाराम, मोतीलाल पुष्करणा, मांगीलाल चौधरी, मिस जस्सी, रामकुंवर, विजयकुंवर, मोहनी इमामुद्दीन बाबू, युसुफ, लक्ष्मीचंद बारहट, फतेहकंबर, सुरैया बेगम, चांद शिवपुरी, रामचन्द्र मेहरा एंड पार्टी, धीरा सेन, शमीम खान, महेश माथुर आदि गायकों ने अपनी आवाज दी। मीम की डिस्क वाली रिकॉर्ड पर ठीक 3 मिनट व 14 सैकंड्स में गाना पूरा करना पड़ता था, जबकि स्कूल वाले टैप पर इस तरह के आठ से नौ गाँत रिकॉर्ड होते थे राजस्थानी गीतमाला नरसिंह जी की कथा राजा मोरध्वज तेजाजी की कथा, व्याय के गीत, नूर मोहम्मद लेगा एंड पार्टी के गाए गीत जिनमें कुरजा, गौरबंध, चरखो, हिचकी हाँडी, आदि प्रमुख है। एक अन्य कैसेट जिसमें चालीस के दशक के लोकप्रिय गायक शंकरलाल के विशुद्ध मांड राग पर गाए गीत अवलं, जलाल बिलाली, रतन राणो मणिहारी, व यो आलोली पंछी कवियों तथा कव्वाल जैसे दुर्लभ गीत शामिल है। पचास के दशक में राज्य के मुख्यमंत्री रहे जयनारायण व्यास ने भी इस कम्पनी में स्वयं के हो लिखे हुए गीत रिकॉर्ड करवाए थे। आज भी यह रिकार्ड तथा इसका कवर भी सम्भाल कर रखा हुआ है। इस रिकॉर्ड के एक और भारत आजाद करायो रे म्हारो बाबो गांधीजी तथा दूसरी और एक भजन ‘आजा म्हारे कंठ बैठना भवानी’ रिकॉर्ड किया हुआ है। उनके पुत्र स्वर्गीय जबरसिंह ने कम्पनी के आरम्भ से लेकर अब तक को कैटलॉग सम्भाल कर रखे हुए है। ये इन्हें ऑरोजिनल रिकॉर्डस से भी ज्यादा सम्भाल कर रखते है। उन दिनों रिकॉर्डस के विपणन के लिए प्रकाशित नागरी सप्लीमेंट के रूप में बने सूची पत्रों परर तत्कालीन गायिकाओं व गायको के चित्र छपे हुए है।
जीवन परिचय
रामेश्वरसिंह गहलोत का जन्म 26 सितम्बर, 1917 को हुआ। उनके पिता दुर्गासिंह गहलोत शहर के प्रतिष्ठित व्यवसायी थे तथा सोजती गेट पर एक जनरल स्टोर चलाते थे। इस दुकान में राजा-महाराजाओं की पोशाकों के अलावा पोलो खिलाड़ियों के कपड़े भी तैयार होते थे। इसके अलावा यहां अन्य सामग्री भी बिकती थी। रामेश्वरसिंह गहलोत को मिडिल तक की शिक्षा दरबार स्कूल में हुई। इसके बाद उन्होंने स्वयंपाठी के रूप में एकाउंटेंट की शिक्षा ग्रहण की शिक्षा के बाद उनका जुड़ाव हिन्दू सेवा मण्डल से हो गया। राजनीति के प्रति उनको रूचि वैसे शुरू से ही थी, अतः वर्ष 1943 में वे निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में पहली बार नगरपालिका सदस्य बने। उस समय हिन्दू सेवा मण्डल ने उन्हें भरपूर सहयोग दिया, हालांकि चुनाव जीतने के बाद वे लोक परिषद से जुड़ गए। उस समय चैयरमेन जयनारायण व्यास थे, जिनके साथ रामेश्वरसिंह के पनिष्ठ संबंध रहे वर्ष 1951 में वे नगरपालिका में सदर्थ कमेटी के संयोजक तथा अगले वर्ष मे नगरपालिका के चैयरमैन बने और करीब ढाई वर्ष तक इस पद पर रहते हुए नगर के विकास में भरपूर योगदान देने का प्रयास किया। वर्ष 1954 में चुंगी के मुद्दे को लेकर जयनारायण व्यास के साथ उनके मतभेद हो गए और उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया। रामेश्वर सिंह नगर में चुंगी लागू करने के सख्त खिलाफ थे तथा इस मामले को लेकर उनके आव्हान पर नगर में बाईस दिन लंबी हड़ताल चली। अंततः व्यास को मध्यस्थता से ही समझता हो सका। वर्ष 1943 से खादी धारण करने वाले रामेश्वरसिंह गहलोत ने इसके बाद चुनाव नहीं लड़े ये शुरू से ही जयनारायण व्यास के अनुयायी रहे तथा उनके साथ पारिवारिक संबंध भी थे।
नगरपालिका के चैयरमेन रहते हुए उन्होंने जालोरी गेट की बारी को तोड़कर रास्ता चौड़ा करवाया। राजेन्द्र चौक घंटाघर के पास पार्क व दुकानें बनवाने सिवांची गेट को कोट की बारी तोड़कर रास्ता चौड़ा करवाने, आागर में सीताराम बेबी पार्क बनवाने, फुलेराव घाटी के पास पार्क बनवाने महात्मा गांधी अस्पताल के सामने बारी तोड़कर रास्ता चौड़ा करने आदि
कई कार्य भी उनकी देखरेख में हुए यह सभी विकास कार्य जनता के पैसे से किए जाते थे। इससे पहले विकास कार्यों के लिए एक अलग से विकास कार्यालय होता था, लेकिन रामेश्वरसिंह ने बाद में विकास कार्य करवाने का अधिकार सरकार से नगरपालिका को दिलवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालांकि बाद में नगरपालिका से यह अधिकार पुनः छीन लिया गया और नगर सुधार न्यास बनाकर उसे यह अधिकार दे दिए गए।
सांस्कृतिक नगर जोधपुर में पहले दरबार की ओर से रावण का मेला आयोजित किया जाता था, लेकिन कुछ न कुछ नया करने का प्रयास करने वाले रामेश्वरसिंह ने वर्ष 1953 में पहली बार नगरपालिका की ओर से रावण का मेला आयोजित किया था। कुछ वर्ष और सक्रिय रहने के बाद 1963 में उन्होंने राजनीति से खुद को बिल्कुल अलग कर लिया। राजनीति के दौरान वे शुरू से अंत तक कांग्रेस के सदस्य रहे थे जोधपुर में रोटरी क्लब के संस्थापक सदस्य रहे हैं। युवावस्था में टेनिस खेलने के शौकीन रहे रामेश्वरसिंह के तत्कालीन दरबार हनुवंत सिंह के साथ भी घनिष्ठ संबंध थे, लेकिन उन्होंने इन संबंधों को कभी भी नहीं भुनाया और सदैव अपनी मेहनत पर विश्वास करते रहे। राजस्थान में मारवाड़ी गानों की रिकॉर्डिंग की शुरूआत का श्रेय हालांकि उनके पिता स्व. दुर्गासिंह को ही है, लेकिन वर्ष 1937 में पिता के निधन के बाद रामेश्वरसिंह ने इस कार्य को आगे जारी रखा। उनके पिता ने मारवाड़ी रिकार्ड का काम 1934 में शुरू किया था, जो भाषाई क्षेत्र के गानों के मामले पहला प्रयास था उनकी कंपनी पंडित शिवराम के पिता पंडित तुलसीदास के संगीत निर्देशन में यह रिकॉर्डिंग दिल्ली जाकर की थी। ‘बाबू साहब’ के नाम से प्रसिद्ध रामेश्वरसिंह को आज भी अच्छी तरह याद है कि फरवरी के महिने में हुई इस रिकॉर्डिंग के लिए उन्हें कितनी कठिनाई हुई थी। उस समय गाना बजाना अच्छा नहीं माना जाता था, अतः गायक ढूंढे नहीं मिलते थे। आखिर में जोधपुर के ही बाबू भगतन को गाने के लिए तैयार किया गया। उस समय एक ही दिन में अट्ठारह गानों की रिकॉर्डिंग की गई थी, जिनमें राग मांड पर आधारित मौड़ा क्यूं आया शामिल था उस समय कुल चौबीस गानों के रिकार्ड जारी किए गए थे, जिससे पूरे भारत में मारवाड़ी गीतों को एक अलग पहचान मिली।
इसमें रिकार्ड हाथों हाथ मिलने से प्रोत्साहित ‘मारवाड़ी रिकार्ड कंपनी’ ने वर्ष 1935 में लाहौर जाकर रिकॉर्डिंग कराई, जिसमें राजस्थानी गीतों के अलावा गजल व कव्वाली के जलवे भी थे। इसके बाद इस कंपनी ने भारत भर में अपनी पहचान बना ली। शादी के मौके के लिए तैयार की गई इनकी रिकॉर्डिंग में ‘पाट’ बैठने से लेकर ‘विदाई’ तक के गीत मौजूद हैं, जिसे हर तरफ वाहवाही मिली।
मात्र चौदह वर्ष की उम्र में दुकान पर बैठना शुरू करने वाले रामेश्वरसिंह गहलौत वर्ष 1937 में इस व्यवसाय में पूरी तरह जुट गए थे। उन्होंने करीब चौदह सौ गानों की रिकॉर्डिंग की, जिसमें मारवाड़ी गीतों के अलावा भजन भी शामिल है। इसके लिए उनका एच.एम. वी कंपनी के साथ अनुबंध था एच. एम. बी. ने उत्तर भारत में सर्वाधिक बिक्री के लिए उन्हें पुरस्कृत भी किया था। इसके अलावा वे एच.एम.वी. कंपनी के नादन डीलर्स एसोसिएशन के संस्थापक अध्यक्ष व सचिव भी रहे आज भी उनके खाने में करीब डेढ़ हजार मारवाड़ी गीतों का संग्रह है। उन्होंने मेवाती गानों की भी रिकॉर्डिंग की थी। यही नहीं उन्होंने स्वयं भी कई गानें व भजन लिखे हैं। इसके बाद वर्ष 1984 में कैसेट को रिकॉर्डिंग का काम भी शुरू किया, जो कभी उनके पुत्र बरसिंह संभाले हुए थे। स्वास्थ्य को देखते हुए रामेश्वरसिंहने वर्ष 1989 में स्वयं को इस कार्य में बिल्कुल दूर कर लिया था।
माली समाज के इस महान व्यक्तित्व को को 5 नवंबर 2005 को निधन पर माली समाज मैं शोक की लहर छा गयी उनके निधन पर माली समाज ही नहीं वरन पूरे जोधपुर के मारवाड़ी संगीत के चाहने वालों में शोक व्याप्त है। सभी ने श्री गहलोत के निधन को अपूरणीय क्षति बताया।
हमारे परिवार कुलस्तम्भ बड़े पिताजी ने आजीवन सादगी और मुदुव्यवहार से अपने जीवन मे सभी को प्रभावित किया। वर्तमान मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत भी प्रथम बार मुख्यमंत्री बनने के बाद उनसे मिलने आएं और उनके द्वारा स्थापित किए गए राजनीति के श्रेष्ठ आयामों के बारे में साथ आएं सभी राजनेताओं को सीख लेने को कहा।
ऐसे आदर्शवादी राजनेता, संगीतज्ञ महान व्यक्तित्व के धनी के वंशज होने का हमें गौरव प्राप्त हुआ है। हम उनके बताएं धर्म, न्याय और सतपत के मार्ग पर चलने का प्रण लेते है।