नगर सेठ स्व. श्रीमान शंकर लाल परिहार
हमारे गौरवशाली इतिहास के महापुरुष
नगर सेठ शंकरलाल परिहार का जन्म 13 दिसबंर, 1904 को सूरसागर जोधपुर में रामदास परिहार के यहां हुआ। आपकी माता का नाम श्रीमती लक्ष्मीबाई था। चार वर्ष की उम्र में ही आप पर आपके पिताजी का साया उठ गया। अतः आपका लालन पालन आपकी माताजी ने किया। आपने कुछ अर्से तक बाल्य अवस्था में अपने पितामह छोगालाल बाद में ठेकेदार प्रतापसिंह कच्छवाह के संरक्षण में काम धंधे का अनुभव प्राप्त किया। 20 वर्ष की आयु में ही आपने पत्थर का कारोबार स्थापित किया, जिसमें आपकी निरंतर प्रगति होती रही। आपकी मिलनसारी, कुशलता, त्याग, शांत स्वभाव, व्यवहार कुशलता से आम जनता ने सेठजी की उपाधि दी व छोट-बड़े सभी लोग आपको सेठजी के नाम से जानने लगे। सेठ साहब की रूचि समाजसेवा व धार्मिक कार्यो में भी बराबर रही।
सन्1935 में जोधपुर नगर में अकाल से राहत पाने के लिए एक आपातकालीन योजना हेमावास, पाली व सरदार समन्द बांध नहर बनाने के लिए बनी। उसमें नहर के लिए विशेष भाग को बचाने के लिए राज्य सरकार ने आपको ठेका दिया। आपने पूरी लगन से नहर का कार्य पूरा किया व गर्मी प्रारम्भ होने से पूर्व कार्य पूरा किया व जोधपुर तक पानी पहुंचा दिया। जोधपुर के तत्कालीन महाराजा श्री उम्मेदसिंह जी ने नहर का उद्घाटन के समय अपने कर कमलो से सनद प्रदान कर आपको सम्मानित किया। सन्1939 से 1944 में जोधपुर सरकार ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जोधपुर में जब अमेरिकन वायुसेना, ब्रिटिश वायुसेना व भारतीय वायुसेना का केन्द्र बनाया गया, तब आपको उस वक्त हवाई अड्डे बनाने के कार्य में सारा पत्थर सप्लाई का कार्य सौंपा गया जिसे आपने समय पर पूर्ण किया।
जोधपुर के प्रसिद्ध उम्मेद भवन बनाने का कार्य तब की राज्य सरकार ने पी.डब्ल्यू.डी. से कराया तब भी उम्मेद भवन में पत्थर सप्लाई का कार्य आपने कुशलतापूर्वक यथासमय पर पूरा किया। शिक्षा के क्षेत्र में आप सूरसागर में कन्या पाठशाला बनान के कार्य में अग्रणी थे। शिक्षा प्रचार संघ की स्थापना व जोधपुर आर्यसमाज भवन बनाने में भी आप आगे रहे। धर्म के क्षेत्र में कालूरामजी की बावड़ी के महादेवजी का मन्दिर की स्थाई आमदनी के लिए दूकानें बनाने में आप सबसे आगे रहे। आप समाज की श्री सूमेर स्कूल की कार्यकारिणी में कई वर्षो तक सदस्य रहे। सूरसागर आर्य समाज के भी वर्षो तक प्रधान रहे। जाति संगठन व कुरीतियाँ मिटाने में आपने समाज हित के कई प्रंशसनीय कार्य किये।
आप ऑल इण्डिया सैनी कुशवाहा समाज स्वर्ण जयंति समारोह गुड़गांव ( हरियाणा ) 8 मार्च, 1975 में अध्यक्ष बनाए गए। राजनैतिक क्षेत्र में भी आपको काफी ख्याति मिली। कुछ वर्षो तक आप सूरसागर क्षेत्र में नगर परिषद के सदस्य भी रहे व 1954 – 55 में जोधपुर नगर परिषद के अध्यक्ष पद पर रहकर भी सेवा की।
आपका व्यापार क्षेत्र पत्थर तक ही सीमित नहीं था। आपने पेट्रोल का व्यापार भी स्थापित किया व कई बस सर्विस चलाई। अंत में जयपुर में क्षीरसागर होटल 1963 में स्थापित किया। आपको खेती का भी बड़ा शौक था। आपका फार्म लक्ष्मी कूप के नाम से सूरसागर क्षेत्र में प्रसिद्ध है।
स्वर्गवास के पूर्व आपने यह स्पष्ट हिदायत दी कि मेरे स्वर्गवास के बाद कोई मौसर नहीं किया जाए। अंतिम रूप से उठावणा तीसरे दिन कर दिया जाए व कोई उनके पीछे कपड़े साफे न लेवे। सिर्फ दस्तूरी के रूप में उनके बड़े लड़के के मामाणे के सिवाय और किसी से साफे नहीं लिये जाए। आपके कार्य समाजसेवा, निःस्वार्थ त्याग, तपस्या, भावी पीढ़ी के लिए सदा प्रेरणा के स्त्रोत बने रहेंगे।
समाज के ऐसे महान व्यक्तित्व के धनी शंकरलाल परिहार को हम सादर नमन करते हुए विनम श्रद्वाजंलि अर्पित करते है।