श्री धर्मसिंह सैनी
दुनियां मे कुछ करने वालों को, सदा सत्कार मिला करते।
धर्मसिंह सैनी का जन्म 3 जनवरी 1950 को पिता हरचन्द सैनी के परिवार ग्राम मादस तहसील-फिरोजपुरा फिरका जिला – मेवात द्धहरियाणाद्ध में हुआ। मात्र 12 वर्ष की अल्प आयु में पिता का साया सर से उठने के कारण शिक्षा का क्रम कक्षा 5वीं में रूक गया। पिता के आकस्मिक निधन के कारण परिवार में ज्येष्ठ पुत्र होने के नाते परिवार की सारी जिम्मेदारियां खेलने-कुदने की उम्र में कमजोर कन्धों पर आ गई। बस फिर क्या? कब दिन निकला कब रात ढली, उनको कुद भी याद न रहा। माँ सौमौती देवी पति के निधन से टूट सी गई। बारह वर्ष के बालक धर्मसिंह सैनी ने थोड़ी सी खेती में मेहनत मजदूरी करके परिवार को सम्बल प्रदान किाय। मादस गांव में वेद प्रचार करने के लिये आर्य समाज के उपदेशक आया करते थे, आर्य विद्वानों, उपदेशकों के सम्पर्क एवं प्रेरणा से आप आर्य समाज की विचार धाराओं से जुड़े। बस यहां से आपका जीवन ही बदल गया और मानव सेवा को अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया।
‘‘सुकर्मों से उठें ऊंचे, जमाना उन्हें सर झुकाता।
गिराने से किसी के वे गिराये जा नही सकते।।’’
युवावस्था में आपको P.W.D. में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के पद पर राज सेवा करने का मौका मिला। मेवात जिले में मुस्लिम आबादी 80 प्रतिशत से ऊपर है और हिन्दु आबादी 20 प्रतिशत से कम ऐसे इलाकों में गौ एवं हिन्दुत्व की रक्षा करना बड़ा कठिन कार्य है परन्तु ‘‘ जिनके हौसले बुलन्द हो उन्हें तूफान डरा नहीं सकते”। विषम परिस्थितियों में भी आप धर्म एवं गौ रक्षा में सतत लगे हुये है। गांव मादस में आपके एवं आचार्य आनन्द मित्र व कुछ ग्रामीणों के सहयोग से सन् 1994 में आर्ष गुरूकुल की स्थापना की गई जहां अनेक ब्रह्मचारी आर्ष शिक्षा पद्धति से शिक्षा ग्रहण कर रहे है। अपने ही भाईयों ने आप पर कई बार लाठी व पत्थर बरसाये और आपको एवं आचार्य आनन्द मित्र को झूठे मुकदमों में साढ़े आठ साल तक उलझाये रखा।
काटों से नेंह लगाने वालों को, नहीं फूलो के हार मिला करते।
तूफानों से टकराने वालों को, नहीं कूल कगार मिला करते।।
आप समाज से अन्धविश्वास, मृत्युभोज, भ्रूण हत्या, मूर्तिपूजा, दहेज जैसी कुरूतियों को मिटानें में प्रयासरत हो। आप आचार्य आनन्द मित्र के साथ गौ कसी को रोकने के लिये प्रयासरत हो।
लहू से नहाती जमीं हर तरफ, जर्रे-जर्रे में बदहवासियों की तलब।
आतिस से जलता है यह चमन, सारब जाने न पाये करो कुछ जतन।।
उक्त लाईने आपके सहयोगी आचार्य आनन्द मित्र पर पूर्ण चरितार्थ होती है। आपका ज्येष्ठ पुत्र दयानन्द आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत की दीक्षा लेकर सन्यास आश्रम में प्रवेश कर गौर रक्षा को पूर्ण समर्पित हो गया। आज उनकी ‘‘श्री दयानन्द गौशाला” आठ बीघा जमीन में बनी हुई है ‘‘दयानन्द ऐतिहासिक सद्कार्यो के बारे में आगामी अंको में प्रकाशन करेंगे” आपके 5 पुत्र एवं 4 पुत्रियां है आपकी धर्मपत्नी श्रीमती चमेली देवी की अतिथि सेवा की दूर-दूर तक चर्चा है।
जेल यात्राएं :
आपने गौरक्षा एवं संस्कृति व संस्कृत बचाओं के नेतृत्व में जन्तर-मन्तर दिल्ली पर गौ रक्षा हेतु आन्दोलन किया जिसके तहत दिल्ली पुलिस ने आपको गिरफ्तार कर जेल में डॉल दिया गया।
जो बने रहनुमा जग भर के, उनको तपना पड़ता है जीवन में।
दुनियां की पीर मिटाने वालो को, नहीं सुख आधार मिला करते।।
पद :
आपके सद्कार्यो के कारण आपने ‘‘आर्य युवक परिषद मेवात” के प्रधान पद केा शिशोभित किया। आर्य समाज मादस के प्रधान पद एवं आर्ष गुरूकुल मादस में आजीवन महासचिव पद का उत्तरदायित्व आप भली भांति संभाल रहे है।
सम्मान :
हरियाणा आर्य युवक परिषद-‘पलवल’ व आर्ष गुरूकुल मादस के द्वारा एवं वेद प्रचार मण्डल मेवात द्वारा और विचगांव 84 पाल द्वारा सक्रिय सदस्य, श्रेष्ठ समाजसेवी, समाज गौरव आदि-आदि सम्मानों से आपको विभूषित किया गया।
पाषाणो को गति देने वालों को, कंकालो में ज्वाला भरने वालों को।
प्रतिकूल धार के लड़ने वालों को, नहीं पथ आसान मिला करते।।